एक करोड़ की खरीद पर चिकित्सा अधीक्षकों तथा निर्देशकों ने खड़े किए हाथ
दिल्ली के अस्पतालों के चिकित्सा अधीक्षकों और निर्देशकों के वित्तीय अधिकार एक करोड़ रुपए तक किए जाने के निर्णय की समीक्षा करने की मांग उठने लगी है;
नई दिल्ली। दिल्ली के अस्पतालों के चिकित्सा अधीक्षकों और निर्देशकों के वित्तीय अधिकार एक करोड़ रुपए तक किए जाने के निर्णय की समीक्षा करने की मांग उठने लगी है। दरअसल कई अस्पतालों में इन अधिकारियों ने यह अतिरिक्त जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया है। उन्होंने काम का अत्याधिक भार होने के कारण मुख्यमंत्री के आदेश की पुर्नसमीक्षा का आग्रह किया है।
हालांकि सरकार ने यह सुविधाजनक कामकाज के नजरिए इस नीति को लागू किया था लेकिन अब इससे असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है और अस्पताल प्रशासन तथा रोगी सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। मुख्यमंत्री ने गत 12 अगस्त को निर्णय लिया था कि अब दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले प्रत्येक अस्पताल के अधीक्षक एक करोड़ रुपए तक के चिकित्सा उपकरण और दवाइंयां खरीद सकते हैं। अभी तक छोटे अस्पतालों के चिकित्सा अधीक्षक को 10 लाख रुपए और बड़े अस्पतालों के चिकित्सा अधीक्षक को 50 लाख रुपए तक की ही खरीदारी करने का अधिकार था। दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता ने बताया कि यदि यह फैसला वापिस नहीं लिया तो ऐसा न हो कि गोरखपुर जैसी स्थिति दिल्ली में भी पैदा न हो जाए। विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि अस्पतालों के चिकित्सा अधीक्षक तथा निर्देशक पहले से ही काम के बोझ से दबे हैं।
इतने व्यापक स्तर पर दवाइयां व उपकरण खरीदने की प्रक्रिया के लिए वे असमर्थ हैं। चिकित्सा अधीक्षकों का तर्क है कि न उनके पास इतनी विशेषज्ञता और न ही इतना स्टाफ कि वे इस स्तर पर खरीद-फरोख्त कर सकें। इसलिए चिकित्सा अधीक्षक कह रहे हैं कि यह अतिरिक्त बोझ डालना अनुचित है। बेहतर होगा कि यह दायित्व सेन्ट्रल परचेज एजेंसी को सौंप दिया जाए। श्री गप्ता ने कहा कि यदि चिकित्सा अधीक्षकों तथा निर्देशकों पर एक करोड़ रुपए तक कि दवाइयां और उपकरण खरीदने के लिए दवाब बनाया जाता है तो अस्पताल के प्रशासन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा और मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।