नई दिल्ली। Air Pollution In India: वायु प्रदूषण शायद कोविड महामारी के बाद से भारत का सबसे बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है। यह हर साल और बिगड़ता जाएगा, जब तक कि तत्काल कार्रवाई नहीं की जाती। यूके में भारतीय मूल के श्वसन रोग विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए तो हालात साल दर साल और बिगड़ेंगे। विशेषज्ञों ने कहा कि देश में सांस संबंधी बीमारियों का संकट धीरे-धीरे विकराल रूप ले रहा है। इसका अभी तक ठीक से पता नहीं चल पाया है और न ही इसके समाधान के लिए पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं। ब्रिटेन में प्रैक्टिस करने वाले कई वरिष्ठ डॉक्टरों ने कहा कि भारत में सांस की बीमारियों के बड़े संकट की आशंका है। इन बीमारियों की लहर भारतीय नागरिकों और भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दीर्घकालिक असर डाल सकती है।
जीवाश्म ईंधन से प्रदूषण
उन्होंने पिछले दशक में हृदय संबंधी बीमारियों में वैश्विक वृद्धि को सिर्फ मोटापे से नहीं बल्कि शहरी परिवहन से विषैले उत्सर्जन के बढ़ते संपर्क से जोड़ा, जिसमें आटोमोबाइल और विमान शामिल हैं, विशेष रूप से भारत, यूके और अन्य देशों के शहरों में देखा गया है। केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मंगलवार को माना कि दिल्ली में लगभग 40 प्रतिशत प्रदूषण जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के कारण परिवहन क्षेत्र से होता है, जबकि उन्होंने स्वच्छ विकल्पों की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया और बायोफ्यूल अपनाने पर जोर दिया।
वायु प्रदूषण को कंट्रोल करने पर ध्यान देना जरूरी
लिवरपूल के सलाहकार पल्मोनोलाजिस्ट और भारत के स्वास्थ्य के कोविड-19 सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य मनीष गौतम ने बताया कि भारत सरकार को वायु प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए फिर से ध्यान देना जरूरी और बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। हालांकि, अब एक कड़वी सच्चाई का सामना करने का समय आ गया है। उत्तर भारत में रहने वाले लाखों लोगों के लिए नुकसान पहले ही हो चुका है। अभी जो मैनेज किया जा रहा है, वह तो बस हिमशैल का ऊपरी हिस्सा है। सतह के नीचे बिना पता चले सांस की बीमारियों का एक बहुत बड़ा, छिपा हुआ बोझ बनता जा रहा है।
लंग हेल्थ टास्क ग्रुप बनाने पर करें विचार
उन्होंने चेतावनी दी कि सालों तक प्रदूषण के संपर्क में रहने का मतलब है कि फेफड़ों की सेहत का इमरजेंसी हालात बन रहे हैं। नीति निर्माताओं से वायुमार्ग रोगों की प्रारंभिक पहचान और उपचार पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया। साथ ही एक रैपिड "लंग हेल्थ टास्क ग्रुप" बनाने पर विचार करने का आग्रह किया। डाक्टरों के अनुसार, दिसंबर में अकेले दिल्ली के अस्पतालों में सांस की बीमारियों के मरीजों में 20 से 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई, जिसमें कई पहली बार के मामले और युवा शामिल थे।
सांस की बीमारियों के लिए निवेश की जरूरत
यूके की नेशनल हेल्थ सर्विस में 20 साल से ज्यादा का अनुभव रखने वाले गौतम ने आगे कहा कि प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम के उपाय जरूरी तो है, लेकिन अब वे अकेले पर्याप्त नहीं हैं। भारत ने पहले भी दिखाया है कि बड़े पैमाने पर पब्लिक हेल्थ इंटरवेंशन संभव हैं। सरकारी पहलों ने शुरुआती जांच और स्ट्रक्चर्ड इलाज कार्यक्रमों के जरिए टीबी के असर को काफी कम किया है। अब सांस की बीमारियों के लिए भी इसी तरह की तेजी और निवेश की जरूरत है। सरकार ने हाल ही में संसद में दोहराया कि वायु प्रदूषण और मृत्यु दर या बीमारी के बीच सीधा संबंध स्थापित करने वाला कोई पक्का डेटा नहीं है।
साफ हवा को देनी होगी प्राथमिकता
लंदन के सेंट जार्ज यूनिवर्सिटी अस्पताल के मानद हृदय रोग विशेषज्ञ राजय नारायण के अनुसार, वायु प्रदूषण को हृदय संबंधी, श्वसन, न्यूरोलाजिकल और प्रणालीगत बीमारियों की एक श्रृंखला से जोड़ने वाले "अत्यधिक वैज्ञानिक प्रमाण" हैं। इस मुद्दे को संबोधित करने में कोई भी देरी स्वास्थ्य और आर्थिक बोझ को बढ़ाएगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि शॉर्ट टर्म उपाय तुरंत होने वाले असर को कम कर सकते हैं, लेकिन असली समाधान लगातार, विज्ञान पर आधारित नीतियों में है जो साफ हवा को प्राथमिकता देती हैं, कमजोर आबादी की रक्षा करती हैं और सभी हितधारकों को जवाबदेह ठहराती हैं।
गंभीर पुरानी बीमारी की शुरुआती चेतावनी
नारायण ने बताया, कई शुरुआती लक्षण जैसे सिरदर्द, थकान, हल्की खांसी, गले में जलन, पाचन में दिक्कत, आंखों में सूखापन, त्वचा पर चकत्ते और बार-बार होने वाले इन्फेक्शन, अक्सर मामूली समस्याएं मानकर नज़रअंदाज कर दिए जाते हैं, लेकिन ये गंभीर पुरानी बीमारी के शुरुआती चेतावनी संकेत हो सकते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र में प्रस्तुत डेटा के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में दिल्ली में दो लाख से अधिक तीव्र श्वसन रोग के मामले दर्ज किए गए, जिनमें से लगभग 30,000 मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता थी।