दत्तकपुत्रों ने श्रमदान कर बनाया तालाब व पहुंच मार्ग

कोरबा ! शहर से लगभग 110 किलोमीटर दूर एक बहुत ही खूबसूरत गांव है तेंदूटिकरा। आसपास जंगल और प्रकृति का मनोरम दृश्य कुछ ऐसा है कि मानो यहाँ पहली बार आने वालों को सुकून की अनुभूति के साथ दोबारा आने का नि;

Update: 2017-01-01 22:16 GMT

कोरबा !  शहर से लगभग 110 किलोमीटर दूर एक बहुत ही खूबसूरत गांव है तेंदूटिकरा। आसपास जंगल और प्रकृति का मनोरम दृश्य कुछ ऐसा है कि मानो यहाँ पहली बार आने वालों को सुकून की अनुभूति के साथ दोबारा आने का निमंत्रण दे रहा हो। यह गांव जितना ही खूबसूरत है,उतने ही भोले भाले यहा रहने वाले लोग है। हालांकि इस गांव की तरह खूबसूरती वाला और भी कई गांव होंगे। लेकिन यहंा की एकता, मिल जुल कर रहने की आदत और बड़े से बड़े मुश्किल काम को आसान करने का माद्दा, शायद ही हर गांव में मिल पाये।
यहा रहने वाले परिवार पंडो आदिवासी है। भले ही इन्हें विकास की राह में पिछड़ा और अति गरीब माना जाता है, लेकिन इनके ठोस इरादे,द ृढ़ निश्चय, उन सम्पन्न और प्रगतिशाील समाज जो बड़े जमीन-जायदाद के मालिक है, हजारों, लाखों का बैंक बैलेंस रखते है और खुद को शिक्षित की श्रेणी में रखकर खुद को एक सभ्य समाज बताते हैं को आइना दिखा रहे हैं जो अपनी ही सुविधा के लिये आपसी सहभागिता के बजाय सब-कुछ सरकार की जिम्मेदारी समझते हैं। महिला एवं पुरूष में किसी प्रकार का विभिन्नता नही रखने वाले पंडो आदिवासी परिवारों ने श्रमदान से खुद की सुविधा और सहूलियत को बढ़ाया साथ ही एकता की मिसाल कायम कर गावं की तस्वीर को बदलने का काम भी किया है। पोड़ी उपरोड़ा विकासखंड अंतर्गत आने वाला गांव तेंदूटिकरा में दो दशक पहले तक विकास की कोई किरण नही पहुंची थी। लिहाजा यहा विकास का कोई काम हुआ नहीं था। जब गांव बसा तब यहा न तो स्कूल था, न सडक़ थी, न ही यहा बिजली पहुंची थी। गांव में रहने वाले परिवारों को साफ पानी भी नसीब नही था। आज यहंा सभी सुविधाये मौजूद है। एक दशक के भीतर प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना से जुडऩे के बाद गांव की न सिर्फ पहचान बढ़ी बल्कि शासन की योजनाये भी यहा क्रियान्वित हुई। पीने के पानी के लिये हैंडपंप, बच्चों के पढ़ाई के लिये स्कूल, नाले पर पुलिया, पक्की सडक़ और बिजली जैसी सुविधाओं ने पंडो आदिवासियों के जीवन में परिवर्तन ला दिया। शासन की योजनाओं ने जहंा यहंा के लोगों में परिवर्तन लाया वहीं गांव में रहने वाले परिवारों की सामूहिक एकता और श्रमदान करने की परम्परा ने गांव की तस्वीर को भी बदला है। यहा के ग्रामीण धनुराम ने बताया कि उनके गांव में अधिकांश कार्य मिलजुल कर किया जाता है। गांव तक जब सडक़ नही थी तब नाले को पार करना भी मुश्किल था। उस दौरान बड़ा सा लकड़ी और पत्थर के पुल का निर्माण किया गया और आने जाने के लिये रास्ता भी बनाया गया। गांव में लोगों ने बैठक की और चर्चा हुई कि शासन द्वारा गांव तक सडक़ तो बना दी गई है लेकिन यदि वे अपने मेहनत से ही पहाड़ पर रास्ता तैयार करे तो एक ऐसा मार्ग भी बन जायेगा जो उन्हें सीधे ग्राम बीजाडांड के बाजार तक ले जायेगा। इस पर सबकी सहमति के बाद अगले दिन से ही गैती, फावड़ा लेकर और पुरूष महिलाओं ने मिलकर लगभग चार किलोमीटर तक मार्ग को ऐसा बनाया कि वाहन सहित स्वयं साइकिल से भी आना जाना कर सके।  गांव की महिला मानकुंवर ने बताया कि गांव के हर काम में सबकी सहभागिता होती है। गांव में तालाब की सफाई से लेकर उस पर जल संग्रहण के लिये बांधने के कामों में भी सभी का सहयोग है। उसने बताया कि उसकी बहू उर्मिला को प्रसव के लिये अस्पताल तक प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना की पक्की सडक़ से महतारी एक्सप्रेस 102 में ले जाया गया।  इसी गांव के नानसाय,जीतराम ने बताया कि श्रमदान से पहाड़ के रास्ते में मार्ग तैयार करना कठिन काम था, लेकिन इसके बनने से फायदा गांव के लोगों को ही होना था इसलिये किसी ने भी श्रमदान से जी नही चुराया। गांव वालों ने बैठक सहित सामूहिक कार्यों के लिये खुद का एक छायादार मंच भी तैयार किया है।

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