कबाड़ से जुगाड़ ही उनकी पहचान है

किशोर भारती में उन दिनों सीखने-सिखाने व नये विचारों के आदान-प्रदान का बहुत खुला माहौल था;

Update: 2025-06-21 03:32 GMT

किशोर भारती में उन दिनों सीखने-सिखाने व नये विचारों के आदान-प्रदान का बहुत खुला माहौल था। यहां शिक्षा व विज्ञान जगत की बड़ी हस्तियों का आना जाना लगा रहता था। प्रोफेसर यशपाल से लेकर शिक्षाविद् कृष्ण कुमार जैसे लोग यहां न केवल आए, बल्कि कई कई दिन आकर रहे। शिक्षक प्रशिक्षणों में भाग लिया। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अनिल सद्गोपाल द्वारा स्थापित किशोर भारती शिक्षा में नवाचार के लिए जानी जाती रही है।

जाने माने टॉयमेकर अरविंद गुप्ता सिर्फ बेकार चीजों से खिलौने बनाकर विज्ञान ही नहीं सिखाते हैं, बल्कि वे देश-दुनिया के बाल साहित्य का हिन्दी में अनुवाद करते हैं, उन्हें उनकी वेबसाइट पर अपलोड कर मुफ्त में उपलब्ध कराते हैं। ऐसा वे कई सालों से कर रहे हैं। हिन्दी पाठकों के लिए उनका उपहार भी मान सकते हैं। आज इस कॉलम में अरविंद गुप्ता के काम के बारे में चर्चा करना चाहूंगा, जिससे उनके कामों का महत्व जाना जा सके।

मैं अरविंद गुप्ता को बरसों से जानता हूं। मैं न केवल उनसे मिलता रहा हूं, बल्कि उनके जिंदगी के प्रमुख पड़ावों को भी देखता रहा हूं। पहली बार, मेरी मुलाकात उनसे किशोर भारती में हुई थी। यह स्वयंसेवी संस्था, मध्यप्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत थी। इस संस्था ने होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत की थी, जिसके तहत माध्यमिक कक्षाओं ( 6 वीं- 8 वीं) तक बाल विज्ञान का पाठ्यक्रम विकसित किया गया था, जो मध्यप्रदेश के स्कूलों में सालों तक चला। इसके तहत बच्चे प्रयोग करके विज्ञान सीखते थे। यह गतिविधि आधारित था


अरविंद गुप्ता, कानपुर, आईआईटी से निकले हैं। पेशे से इंजीनियर हैं, पर उनका मन वहां नहीं लगा। कुछ सार्थक काम करने की तलाश में उन्होंने कई काम किए। लेकिन उन्हें सबसे अच्छा काम लगा, विज्ञान को लोकप्रिय बनाना, और उसका प्रचार-प्रसार करना। इसके लिए उन्होंने कबाड़ यानि बेकार चीजों से विज्ञान सिखाने की राह पकड़ी, जो उनका जीवन का मिशन बन गया।

किशोर भारती में उन्होंने कई नवाचार के उदाहरण पेश किए। उन्होंने बाल विज्ञान के कुछ अध्याय विकसित किए थे। मुझे याद आ रहा है उन्होंने खेल-खेल में विज्ञान सीखने सिखाने का तरीका खोज निकाला था। माचिस की तीलियों से गणित सीखने और मोमबत्ती की लौ से गर्म करके साधारण बटन को उल्टे जोड़कर घिरनी बनाना। मजेदार खेल व मशीन जैसे अध्याय बनाने में मदद की थी।

किशोर भारती में उन दिनों सीखने-सिखाने व नये विचारों के आदान-प्रदान का बहुत खुला माहौल था। यहां शिक्षा व विज्ञान जगत की बड़ी हस्तियों का आना जाना लगा रहता था। प्रोफेसर यशपाल से लेकर शिक्षाविद् कृष्ण कुमार जैसे लोग यहां न केवल आए, बल्कि कई कई दिन आकर रहे। शिक्षक प्रशिक्षणों में भाग लिया। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अनिल सद्गोपाल द्वारा स्थापित किशोर भारती शिक्षा में नवाचार के लिए जानी जाती रही है। ग्रामीण विकास, शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी संस्था के कार्य उल्लेखनीय हैं।

यहां एक बहुत ही समृद्ध पुस्तकालय था, जहां पहली बार मेरा किताबों की दुनिया से परिचय हुआ था। यहां आकर उन्हें उलटना-पलटना, चित्र देखना, किताबों के बीच बैठना, यह सब बहुत अद्भुत अनुभव था। यहां नए विचारों की हवा बह रही थी। संस्था का परिसर पेड़-पौधों हरा-भरा, और मनोरम था। यहां के वातावरण में गहरी सांस लेना ही ऊर्जा व उम्मीद से भर देता था।

अरविंद गुप्ता ने यहां आकर बहुत ही सस्ती चीजों से विज्ञान सिखाने के प्रयोगों पर ध्यान दिया। उन्होंने माचिस की तीलियों व साइकिल के बाल्व ट्यूब से त्रिभुज, चतुर्भुज जैसी कई आकृतियां बनाईं, जिन्हें बच्चे खुद बना सकते थे और इनके पीछे छिपे गणित के सिद्धांतों को समझ सकते थे। इसी प्रकार, बटन से घिरनी में चक्के व लीवर के सिद्धांत को समझा जा सकता है।

अरविंद गुप्ता, जहां भी रहे, उनकी नजर सस्ते व बेकार सामानों से विज्ञान व गणित सिखाने की रही है। इसी कड़ी में उन्होंने अविभाजित मध्यप्रदेश( अब छत्तीसगढ़) के दल्ली राजहरा शहर में लोहे की खदानों में चलने वाले ट्रिपर ट्रक का मॉडल माचिस से बनाया और बाद में उनकी किताब में शामिल किया। उन्होंने कुछ समय मशहूर मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी के साथ भी काम किया है।

हाल ही दिवंगत प्रसिद्ध खगोलशास्त्री जयंत नार्लीकर द्वारा स्थापित इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आईयूसीएए) के अंतर्गत विज्ञान केन्द्र में भी उन्होंने काम किया। इसके तहत् उन्होंने रोज ही नए नए मॉडल बनाए। इसके बाद उन्होंने खुद की वेबसाइट शुरू की (arvindguptatoys.com)। इस विज्ञान परियोजना के तहत फोटो, वीडियो और किताबें अपलोड कीं। यह 'कबाड़ से जुगाड़' वीडियो सिर्फ 2-मिनट के हैं. यह अनेकों भारतीय भाषाओँ में डब हुए हैं. जिसको दुनिया भर में देखा जाता है। अब तक लाखों बच्चों ने उनके वीडियो देखे हैं. हर रोज़ उनकी वेबसाइट से करीब दस हज़ार किताबें मुफ्त में डाउनलोड होती हैं। इससे लगता है कि हमारे बहुत से लोगों की अच्छा साहित्य पढ़ने में रूचि है। और उन तक ऐसी शिक्षाप्रद किताबें पहुंचना जरूरी है।

इस वेबसाइट पर देश विदेश के बाल साहित्य उपलब्ध है, जो जानकारीपरक, सामान्य ज्ञान से भरपूर और प्रेरणादायक है। इन किताबों में लगभग 700 सचित्र प्रेरक हस्तियों के जीवन चरित्र हैं, जिनके कामों से बदलाव भी आया है। इसके साथ वे खुद अच्छे बाल साहित्य की किताबों का अनुवाद लगभग रोज ही करते हैं और वेबसाइट पर अपलोड करते हैं।

उन्होंने 1992 से लेकर भारत ज्ञान विज्ञान समिति, नई दिल्ली के साथ काम किया और 100 बाल जनवाचन की छोटी-छोटी पुस्तकें प्रकाशित की. यह पुस्तकें शांति (फर्डीनांड की कहानी) परमाणु युद्ध विरोधी (सडाको और कागज़ के पक्षी, तीन हाथी) पर्यावरण (जिसने उम्मीद के बीज बोए, दानी पेड़), दिव्यांग स्पेशल बच्चे (व्हीलचेयर ही मेरे पैर हैं), शिक्षा (नीलबाग के डेविड, खुशियों का स्कूल) इत्यादि। इसके साथ ही, 100 में से 40 किताबें बाई-लिंगुअल यानि हिंदी-अंग्रेजी दोनों भाषाओं में थीं। यह किताबें खूब बिकीं - करीब 20 लाख प्रतियों से ज़्यादा।

अरविन्द गुप्ता ने नेशनल बुक ट्रस्ट के सलाहकार के रूप में भी काम किया और गिजुभाई की दिवास्वप्न, तोत्तो चान जैसी उत्कृष्ट किताबें भी उनके ही प्रयासों से प्रकाशित हुईं। यह पुस्तकें अब कई भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं। मसलन, नील की समरहिल, सिल्विया ऐशटन वार्नर की टीचर, बहुरूपी गाँधी जैसी किताबों की लम्बी फेरहिस्त हैं, जिन्हें उनकी वेबसाइट पर देखा जा सकता है।

अरविंद गुप्ता ने अपने आप को सिर्फ वेबसाइट व किताबों तक ही सीमित नहीं रखा है, बल्कि वे देश-दुनिया के 3000 से अधिक स्कूल-कॉलेजों में गए हैं। वहां के छात्रों व शिक्षकों से मिले हैं। कई चर्चाओं में शामिल रहे हैं और व्याख्यान दिए हैं। वे कहते हैं कि उन्हें ख़राब स्कूली मैनेजमेंट, ख़राब प्रिंसिपल, ख़राब टीचर अक्सर मिले हैं, पर आज तक कोई खराब बच्चा नहीं मिला। सभी बच्चों में प्रतिभाएं होती हैं, लेकिन उन्हें मौका देने की जरूरत है। इन प्रतिभाओं को गढ़ने का काम अच्छा साहित्य ही कर सकता है। यही उनकी कोशिश है।

इन किताबों, फिल्मो और वीडियो से ऐसा ही प्रयास किया जा रहा है। लेकिन यह सीमित है, इस दिशा में और भी बहुत कुछ किया जा सकता है। छात्र, शिक्षक, समाज, सरकार सभी को इस दिशा में काम करने की जरूरत है।

कुल मिलाकर, अरविंद गुप्ता का काम कई मायनों में उल्लेखनीय व प्रेरणादायक है। भारत सरकार ने उन्हें उनके कामों के लिए पद्मश्री से सम्मानित भी किया है। उन्हें कई अवार्ड भी मिले हैं। लेकिन इन सबसे अप्रभावित वे आज भी मिशन भाव से कई घंटे इस काम में लगे हैं। विशेषकर, जब भी तब वे कुछ सालों से अस्वस्थ हैं। उनके काम न केवल सराहनीय हैं, बल्कि अनुकरणीय भी है।

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