श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग के बार-बार बंद होने और कोल्ड स्टोरेज के चलते सेब उत्पादक अपना माल औने पौने दाम पर बेचने को मजबूर
कश्मीर के सेब उत्पादकों की मजबूरी अब यह है कि राजमार्ग के लगातार बंद होने, रेलवे की ढुलाई क्षमता कम होने और कश्मीर में कोल्ड स्टोरेज की कमी के चलते उन्हें अपनी फसल को औने पारैने दामों पर बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। वे ऐसा इसलिए भी कर रहे हैं ताकि कुछ तो पैसा हाथ में आ जाए;
जम्मू। कश्मीर के सेब उत्पादकों की मजबूरी अब यह है कि राजमार्ग के लगातार बंद होने, रेलवे की ढुलाई क्षमता कम होने और कश्मीर में कोल्ड स्टोरेज की कमी के चलते उन्हें अपनी फसल को औने पारैने दामों पर बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। वे ऐसा इसलिए भी कर रहे हैं ताकि कुछ तो पैसा हाथ में आ जाए।
यह पूरी तरह से सच है कि श्रीनगर-जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग के बार-बार बंद होने, कम मांग और बढ़ते माल ढुलाई भाड़े के कारण, कश्मीर के सैकड़ों सेब उत्पादक अपनी उपज को बचाने के लिए कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं का रुख कर रहे हैं। हालांकि, उनकी निराशा का कारण यह है कि कश्मीर के सभी कोल्ड स्टोरेज पहले से ही बुक हो चुके हैं, जिससे उनके पास मजबूरी में माल को कम दामों पर बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
पत्रकारों से बात करते हुए, शोपियां, पुलवामा और अन्य क्षेत्रों के उत्पादकों का कहना था कि वे हाल के दिनों में सबसे कठिन मौसमों में से एक का सामना कर रहे हैं। वे कहते थे कि भूस्खलन के कारण राजमार्गों पर लगे अवरोधों के कारण पारंपरिक आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो गई है, और जो भी उपज बाहरी बाजारों तक पहुंच रही है, वह अपनी खराब स्थिति के कारण कम कीमत पर बिक रही है।
पुलवामा के एक बागवान अब्दुल रशीद के बकौल, इस साल हमने कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं पर अपनी उम्मीदें टिकाई थीं ताकि हम सही बाजार भाव का इंतजार कर सकें। लेकिन जब हमने इकाइयों से संपर्क किया, तो उन्होंने हमें बताया कि सभी स्लाट महीनों पहले ही बुक हो चुके हैं। वे कहते थे कि इसका मतलब है कि हम जैसे छोटे और मध्यम वर्ग के उत्पादक असहाय हैं। बड़े व्यापारी जो पहले से भंडारण स्थान बुक कर सकते हैं, वे सुरक्षित हैं, लेकिन आम किसान को नुकसान उठाना पड़ता है।
शोपियां के एक अन्य उत्पादक, गुलाम अहमद की मांग थी कि सरकार को तुरंत कदम उठाना चाहिए। उन्होंने बताया कि हर बार जब कोई संकट आता है, तो हमें कोल्ड स्टोरेज का इस्तेमाल करने के लिए कहा जाता है। लेकिन हकीकत कुछ और है, वहां पर्याप्त क्षमता ही नहीं है। अगर नई इकाइयां नहीं बनाई गईं, तो यह संकट साल-दर-साल दोहराता रहेगा।
फल उत्पादक संघों ने भी ऊंची माल ढुलाई दरों को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जब ट्रक उपलब्ध होते हैं, तब भी ट्रांसपोर्टर सामान्य दरों से लगभग तिगुनी मांग करते हैं, जिससे उत्पादकों की कमाई और कम हो जाती है। जाबली पोरा मंडी के एक फल विक्रेता बशीर अहमद कहते थे कि एक उत्पादक की दुर्दशा की कल्पना कीजिए, वह न तो ऊंची माल ढुलाई लागत के कारण अपनी उपज बाहर भेज सकता है, न ही अग्रिम बुकिंग के कारण कोल्ड स्टोरेज में रख सकता है। सेबों को औने-पौने दामों पर बेचने के अलावा और क्या विकल्प बचता है?
उत्पादकों ने प्रशासन से परिवहन की कमी और कोल्ड स्टोरेज क्षमता की कमी, इन दोनों मुद्दों पर ध्यान देने की अपील करते हुए कहा कि सरकार के तत्काल हस्तक्षेप के बिना, कश्मीर का सेब उद्योग, जो लाखों परिवारों का भरण-पोषण करता है, लड़ता रहेगा।