जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की चेतावनी, बढ़ रहा तापमान, समय रहते संभलने की जरूरत
दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर आगाह किया है और कहा है कि अगर हम कार्रवाई करने में विफल रहते हैं, तो जलवायु में देखे गए कई बदलाव हमारे भविष्य को तबाह कर देंगे;
नई दिल्ली। दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर आगाह किया है और कहा है कि अगर हम कार्रवाई करने में विफल रहते हैं, तो जलवायु में देखे गए कई बदलाव हमारे भविष्य को तबाह कर देंगे। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त अंतर सरकारी समिति (आईपीसीसी) की एक नई रिपोर्ट सोमवार को प्रकाशित हुई, जिसमें बढ़ते वैश्विक तापमान को लेकर चेताया गया है। रिपोर्ट में ऐसे तथ्य पेश किए गए हैं, जिन्हें देखते हुए समय पर संभलने की जरूरत है।
इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ परिवर्तन पहले से ही गति में हैं, जैसे कि समुद्र के स्तर में निरंतर वृद्धि, जो कि सैकड़ों से हजारों वर्षों में अपरिवर्तनीय हैं। वैज्ञानिकों ने कहा है कि वे हर क्षेत्र में और पूरी जलवायु प्रणाली में पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन देख रहे हैं।
सरल शब्दों में कहें तो वैज्ञानिकों का यह कहना है कि जलवायु तो हमेशा बदली है, लेकिन हाल के दशकों की तरह जो गर्माहट बढ़ी है, वह पहले नहीं देखी गई है। उन्होंने आगाह किया कि दुनिया भर में लगभग हर जगह गर्म हो रही है। चाहे वह ऑस्ट्रेलिया या एशिया हो, या फिर यूरोप या उत्तरी अमेरिका, सभी क्षेत्र तेजी से गर्म हो रहे हैं।
इसके अलावा कहा गया है कि आइसलैंड ने पिछले दो दशकों में 750 वर्ग किलोमीटर ग्लेशियर खो दिए हैं।
यह स्पष्ट है कि मानवीय प्रभाव ने वातावरण, महासागर और भूमि को गर्म कर दिया है। वायुमंडल, महासागर, क्रायोस्फीयर और जीवमंडल में व्यापक और तीव्र परिवर्तन हुए हैं। हालांकि, कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में मजबूत, निरंतर कटौती से जलवायु परिवर्तन सीमित होगा। उन्होंने कहा कि जहां हवा की गुणवत्ता के लिए लाभ जल्दी मिलेगा, वहीं वैश्विक तापमान को स्थिर होने में 20-30 साल लग सकते हैं।
जेनेवा में आयोजित एक वर्चुअल ग्लोबल मीडिया कॉन्फ्रेंस में जारी नवीनतम इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) रिपोर्ट में यह चिंता बढ़ाने वाली उद्घोषणा की गई है।
आईपीसीसी की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (एआर6) क्लाइमेट चेंज 2021 : द फिजिकल साइंस बेसिस जारी हुई है। यह रिपोर्ट की पहली किस्त है, जिसे 2022 में पूरा किया जाएगा।
रिपोर्ट के 200 से ज्यादा लेखक पांच परि²श्यों को देखते हैं और यह रिपोर्ट कहती है कि किसी भी सूरत में दुनिया 2030 के दशक में 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के आंकड़े को पार कर लेगी, जो पुराने पूवार्नुमानों से काफी पहले है। उन परि²श्यों में से तीन परि²श्यों में पूर्व औद्योगिक समय के औसत तापमान से दो डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की जाएगी।
रिपोर्ट से पता चलता है कि मानव गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 1850-1900 के बाद से लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस वामिर्ंग के लिए जिम्मेदार है और यह पता चला है कि अगले 20 वर्षों में औसतन वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने या उससे अधिक होने की उम्मीद है।
आईपीसीसी के एक बयान में कहा गया है कि यह आकलन ऐतिहासिक वामिर्ंग का आकलन करने के लिए बेहतर अवलोकन संबंधी डेटासेट पर आधारित है, साथ ही मानव जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जलवायु प्रणाली की प्रतिक्रिया की वैज्ञानिक समझ में प्रगति पर आधारित है।
रिपोर्ट की प्रमुख बातों पर गौर करें तो इसमें आगाह किया गया है कि जलवायु परिवर्तन जल चक्र को तीव्र कर रहा है। यह कई क्षेत्रों में अधिक तीव्र वर्षा और संबंधित बाढ़ के साथ-साथ अधिक तीव्र सूखे का कारण भी बन रहा है।
इसके अलावा जलवायु परिवर्तन वर्षा के पैटर्न को प्रभावित कर रहा है। उच्च अक्षांशों में, वर्षा में वृद्धि होने की संभावना है, जबकि उपोष्णकटिबंधीय के बड़े हिस्सों में इसके घटने का अनुमान है। मानसून वर्षा में परिवर्तन अपेक्षित है, जो क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होगा।
इसके अलावा तटीय क्षेत्रों में 21वीं सदी के दौरान समुद्र के स्तर में निरंतर वृद्धि देखी जाएगी, जिससे निचले इलाकों में अधिक लगातार और गंभीर तटीय बाढ़ और तटीय क्षरण में योगदान होगा। समुद्र के स्तर की चरम घटनाएं, जो पहले 100 वर्षों में एक बार होती थीं, इस सदी के अंत तक हर साल हो सकती हैं।
इसके अलावा ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों का तेजी से पिघलना और गर्मियों में आर्कटिक समुद्री बर्फ के नुकसान को लेकर भी चेताया गया है।
वहीं समुद्र में परिवर्तन, जिसमें वामिर्ंग, अधिक लगातार समुद्री हीटवेव, महासागर अम्लीकरण और कम ऑक्सीजन स्तर शामिल हैं, के प्रति आगाह किया गया है। यह सभी चीजें स्पष्ट रूप से मानव प्रभाव से जुड़े हुए हैं। ये परिवर्तन महासागर पारिस्थितिकी तंत्र और उन पर निर्भर लोगों दोनों को प्रभावित करते हैं और वे कम से कम इस सदी के बाकी हिस्सों में जारी रहेंगे।
शहरों के लिए, जलवायु परिवर्तन के कुछ पहलुओं को बढ़ा हुआ भी पाया जा सकता है, जिसमें गर्मी (चूंकि शहरी क्षेत्र आमतौर पर अपने परिवेश से अधिक गर्म होते हैं), भारी वर्षा की घटनाओं से बाढ़ और तटीय शहरों में समुद्र के स्तर में वृद्धि शामिल है।
बता दें कि आईपीसीसी सरकार और संगठनों द्वारा स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति जलवायु परिवर्तन पर श्रेष्ठ संभव वैज्ञानिक सहमति प्रदान करने के उद्देश्य से बनाई गई है। ये वैज्ञानिक वैश्विक तापमान में वृद्धि से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर समय-समय पर रिपोर्ट देते रहते हैं जो आगे की दिशा निर्धारित करने में अहम होती है।
आईपीसीसी के अध्यक्ष होसुंग ली ने अपने एक बयान में कहा, इस रिपोर्ट में नवाचार और जलवायु विज्ञान में प्रगति, जो इसे दशार्ती है, वह जलवायु वार्ता और निर्णय लेने में एक अमूल्य इनपुट प्रदान करती है।
ली ने जलवायु परिवर्तन के लिए संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी26) का उल्लेख किया है, जो नवंबर में ग्लासगो, लंदन में आयोजित किया जाना है, ताकि वैश्विक तापमान वृद्धि को नियंत्रण में रखने के लिए सभी देशों द्वारा कम उत्सर्जन वाले रास्ते तैयार किए जा सकें।
यह रिपोर्ट अतीत, वर्तमान और भविष्य के माहौल की एक बहुत स्पष्ट तस्वीर प्रस्तुत करती है, जिस पर अब विश्व भर के देशों को गंभीरता के साथ विचार-विमर्श और कदम उठाए जाने की जरूरत है।