फीस बढ़ोतरी की अनुमति अभिभावकों के लिए बढ़ाई मुसीबतें

सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए राजधानी के निजी स्कूलों को फीस में 15 प्रतिशत तक बढ़ोतरी  की अनुमति देकर दिल्ली सरकार ने अभिभावकों के लिए एक बार फिर मुसीबतों का पिटारा खोल दिया है;

Update: 2017-10-25 14:04 GMT

नई दिल्ली।  सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए राजधानी के निजी स्कूलों को फीस में 15 प्रतिशत तक बढ़ोतरी  की अनुमति देकर दिल्ली सरकार ने अभिभावकों के लिए एक बार फिर मुसीबतों का पिटारा खोल दिया है। सरकार ने स्कूल प्रबंधन के लिए धन अर्जित करने, अध्यापकों का शोषण करने का भी रास्ता खोल दिया है। 

दिल्ली अभिभावक संघ के अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने यह आरोप लगाते हुए कहा कि चूंकि यह आदेश अंतरिम है और सरकार ने यह आदेश मनमाने तरीके से जारी किया है, इसमें कई गंभीर खामियां हैं इसलिए सरकार को इस पर पुर्नविचार करना चाहिए। श्री गुप्ता ने कहा कि सरकार ने छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप वेतन देने के मामले में हुई भयंकर गल्तियों से कोई सबक नहीं सीखा है । उन्होंने कहा कि इस तथ्य की परख करने के लिए कोई मॉनेटरिंग सिस्टम नहीं बनाया गया हैए जिससे कि यह सुनिश्चित हो सके कि अध्यापकों को वाकई में बढ़े हुए वेतन का लाभ मिल गया है। न ही सरकार ने इसके क्रियान्वयन के लिए कोई समय सीमा तैयार की है।

विपक्ष के नेता ने कहा कि सरकार ने यह सुनिश्चित नहीं किया है कि किसी स्कूल को फीस बढ़ाने की आवश्यकता है या नहीं, अगर है भी तो कितनी। 

सरकार ने इस बात को भी नजरअंदाज कर दिया कि स्कूलों के पास कितना रिजर्व फंड है और अध्यापकों को सातवें वेतन सिफारिशों के अनुरूप वेतन व्यय बकाया राशि देने के लिए कितने फंड की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि सरकार अभी तक सभी स्कूलों का ऑडिट नहीं करवा पाई है, अब सभी स्कूलों को एकमुश्त अनुमति देकर सरकार ने अपनी जान छुड़ाई है।

विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि सरकार ने वेतन वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस आधार नहीं चुना है। अभिभावकों से विचार विमर्श करना, स्कूल प्रबंधन समिति के समक्ष प्रस्ताव को रखना केवल ढकोसलेबाजी है व अधिकतर स्कूलों में अभिभावकों के लिए कोई फोरम ही नहीं है। यदि कहीं है तो वह बेहद कमजोर है व स्कूल मैनेजिंग कमेटी का सवाल है तो वह स्कूल प्रबंधन कमेटी के कहने पर ही चलती है।

विधानसभा में नेता विपक्ष ने कहा कि पिछले वेतन आयोग के क्रियान्वयन के आदेशों के बाद अभिभावक छह साल तक दर-दर की ठाकरें खाते रहे अंत में उन्हें न्यायालय की शरण में जाना पड़ा। सरकार 449 स्कूलों में 500 करोड़ रुपये से अधिक जमा कराई गई ज्यादा फीस 9 प्रतिशत ब्याज के साथ अभिभावकों को वापस दिलाने में असफल रही है। 

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