टीपाखोल में जंगली जानवरों का अवैध शिकार

रायगढ़ जिले की पहचान आदिवासी अंचल के रूप में प्रदेश में की जाती है जहाँ रायगढ़ जिला पूरा वनांचल से घिरा हुआ है;

Update: 2017-07-11 12:11 GMT

रायगढ़। यूँ तो रायगढ़ जिले की पहचान आदिवासी अंचल के रूप में की जाती है। जहाँ रायगढ़ जिला पूरा वनांचल से घिरा हुआ है।

 इस रायगढ़ जिले में कई प्रकार के खनिज संपदा मिलते है साथ ही एक लंबे अर्से से रायगढ़ जिले में रायगढ़ वन मंडल और धर्मजयगढ़ वन मंडल में जंगली हाथियों का आतंक व्याप्त है। अभी तक कई ग्रामीण इन जंगली हाथियों की चपेट में आकर काल के गाल में समा चुके है। साथ ही साथ जंगली हाथियों के द्वारा गरीब किसान की बेशकीमती फसल को नुकसान पहुँचाया जाता रहा है।

गरीब किसान के फसल और घरों को हाथियों के द्वारा जो नुकसान पहुंचाया जाता है उन किसानों को मुआवजा तो मिलता है वो भी एक मजाक की तरह।  और तो और आज भी कई ऐसे हाथी प्रभावित इलाकों में जंगली हाथियों को भगाने के लिए वन विभाग ने ग्रामीणों को कुछ भी सामान मुहैया नही कराया गया है।

वहीँ दूसरी और रायगढ़ जिले में अभी तक कई हाथीयों  की मौत ग्रामीणों के द्वारा अपनी फसल की रखवाली करने के लिए बिछाये गए करंट प्रवाहित तार के संपर्क में आकर हो चुकी है।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक रायगढ़ जिले के घने जंगलो में काफी लंबे समय से शिकारियों के द्वारा करंट लगाकर एवं गुट बनाकर हाथ में तीर धनुष और आवारा कुत्तों को साथ लेकर जंगली जानवर कोटरी, खरगोश, चीतल, सम्हार, बारह के शिकार करते आ रहे हैं।

 बताया जाता है कि शिकारियों के द्वारा शिकार में लेकर गए हुए कुत्तो से शिकारी जंगली जानवरों को दौड़ा-दौड़ा कर पहले थका देते है फिर धनुष से आसानी से उनका शिकार करते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कुत्तों से अपनी जान बचाते-बचाते बेगुनाह जंगली  जानवर शहर की ओर  रुख करते हुए अपनी जान गवाँ देते है या फिर सड़क में भारी वाहनों की चपेट में आकर उनकी मौत हो जाती है।

यही नही कभी कभी शिकारियों के द्वारा बिछाये गए करंट प्रवाहित तार के संपर्क में आने से ग्रामीण भी कभी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं या उनकी मौत भी हो जाती है।

हमारे सूत्र बताते है कि रायगढ़ शहर से महज 10 किलामीटर की दुरी पर स्थित है ग्राम टीपाखोल। यह गांव 4 तरफ से जंगलो से घिरा हुआ है, गांव के कुछ लोगो के आय का जरिया भी इसी जंगल से निकलता है, जंगली इलाका होने की वजह से इस इलाके में जंगली जानवरों की संख्या काफी अधिक है, जो अब धीरे धीरे ख़त्म होते जा रहे।

इस गांव के कुछ ग्रामीण चिराईपानी से तीर खरीद कर सुबह से ही एक ग्रुप बनाकर साथ में कुत्तो को लेकर जंगलो में शिकार के लिए जाते है। हमारे संवाददाता से नाम नही छापने की शर्त पर गांव के एक युवक ने बताया कि जो लोग जंगल में शिकार के लिए जाते है उनका वन विभाग के अधिकारियों के  साथ सेटिंग् होने जैसा लगता है क्योंकि इस जंगल में जंगली जानवरों का शिकार काफी  लंबे अर्से से हो रहा है। वन विभाग को भी इस सब की जानकारी है मगर आज तक विभाग के लोग कभी इस तरफ झांकने तक नही आते।

जबकि इस क्षेत्र के शिकारी आये दिन कुछ न कुछ जंगली जानवरों का शिकार करते ही हैं।  गांव के ग्रामीण बताते है कि टीपाखोल के जंगलों में भालू, चीतल, सांभर, कोटरी, खरगोश, बारह, जंगली मुर्गा, मोर , जैसे कई प्रकार के जंगली जानवर है।  जो अब धीरे-धीरे शिकारियों की वजह से कम होते जा रहे। आदिवासी अंचल रायगढ़ जिले के धर्मजयगढ़, सारंगढ़, बड़गांव, तारपाली, जुनवानी, बंगुरसिया, शकरबोगा, साँप खंड जैसे कई ऐसे जंगली क्षेत्रो में अवैध ढंग से जंगली जानवरों का शिकार खुलेआम होता है, बीच-बीच में वन विभाग के अधिकारी जब जंगलो की टोह लेने निकलते है उनके जंगलो में शिकारियों से उनका सामना हो  जाता है। 

कई बार शिकारी जंगली जानवरों का शिकार करके उसे आपस में बांटते हुए पकड़े भी जा चुके है । तो कभी वन विभाग के अधिकारियों को आता देख शिकारी मांस को जंगल में ही छोड़ कर भाग जाते है।

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