मानवाधिकार मानवों के लिए है न कि दानवों के लिए: जितेन्द्र नारायण
प्रख्यात राजनीतिक चिंतक प्रो. जितेन्द्र नारायण ने मानवाधिकार के नाम पर बने विभिन्न कानून के खतरों से आगाह किया ।;
दरभंगा। प्रख्यात राजनीतिक चिंतक प्रो. जितेन्द्र नारायण ने मानवाधिकार के नाम पर बने विभिन्न कानून के खतरों से आगाह करते हुए आज कहा कि मनुष्य को मनुष्य समझना ही वास्तविक मानवाधिकार है।
नारायण ने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग के सभागार में डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन एवं राजनीति शास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में यहां आयोजित ‘मानवाधिकार: अवधारणा एवं चुनौतियां’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि मानवाधिकार के नाम पर अलग-अलग कानून बना दिए गये हैं। मानवाधिकार मानवों के लिए है न कि आतंकी-अपराधी जैसे दानवों के लिए। मानवाधिकार के नाम पर अलग-अलग संगठनों का निर्माण हो गया है इसलिए शायद जब जघन्य अपराधियों-आतंकियों को मारा जाता है तो ऐसे संगठन मानवाधिकार के नाम पर हल्ला मचाते है, जिससे कानून-व्यवस्था की उलझने खड़ी होती है।
राजनीतिक चिंतक ने कहा कि देश में मानवाधिकारों को लेकर हमारे पूर्वज प्रारंभ से ही सतर्क रहे हैं। मानवाधिकार की चर्चा ऋग्वेद में भी की गयी है। मानव के जो मूल्य हैं, सोच है, गुण है उसे विकसित होने में किसी भी प्रकार की रूकावट न हो, इसकी परिकल्पना हमारे वेद ग्रंथों में भी की गयी है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो मानवाधिकार का पाठ विश्व बिरादरी को सबसे पहले भारत ने पढ़ाया। हमारे देश में सिर्फ मानवों के ही नहीं बल्कि सभी जीव जन्तुओं को अधिकार दिया गया है। इसलिए हम आज भी वृक्षों, जीव- जन्तुओं की भी पूजा करते है।
मुख्य अतिथि और ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. जयगोपाल ने कहा कि जब-जब प्राकृतिक न्याय नहीं होता है, तब-तब मानवाधिकार की बातें होती है। हर मानव बराबर नहीं है, इसलिए कमजोरों को भी अधिकार मिले, यहीं मानवाधिकार की मूल बात है। हर इंसान अपनी ही तरह सबको समझे तो मानववाधिकार की रक्षा स्वतः हो जाती है। पर इस आधुनिक परिवेश में हर व्यक्ति बदलाव की अपेक्षा दूसरे से करता है, खुद बदलना नहीं चाहता। इसलिए मानवाधिकार की राह में अवरोध उत्पन्न हो जाता है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए राजनीतिशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. रविन्द्र कुमार चैधरी कहा कि प्रत्येक व्यक्ति सुख-चैन की जिंदगी व्यतीत करना चाहता है। लेकिन जब इसमें खलल पड़ती है तो मानवाधिकार की जरूरत महसूस होती है। व्यक्ति के जिंदा रहने और व्यक्तित्व के विकास के लिए मानवाधिकार की सख्त जरूरत है।