शांत वातावरण मे मनाई गई होली, नगाड़ों की आवाज थमने से फीका रहा उत्साह
आनंद उल्लास और उत्साह का त्यौहार होली नगर सहित आसपास के क्षेत्रो मे शांत वातावरण मे मनाया गया।;
गरियाबंद। आनंद उल्लास और उत्साह का त्यौहार होली नगर सहित आसपास के क्षेत्रो मे शांत वातावरण मे मनाया गया। नगर के विभिन्न मोहल्लो और वार्डो मे जमकर कर होली का रंग खेला गया। पुराने रीति रिवाजो के अनुसार लोगो ने आपस मे एक दूसरे को रंग लगाकर होली की बधाई दी और अपनी खुशिया बांटी।
होली के एक दिन पूर्व शायंकाल होलिका दहन कर सुख शंाति और समृध्दि की कामना भी की गई। इस वर्ष होली मे लोगो मे होली का उत्साह तो जमकर चढ़ा लेकिन नगाड़ो की आवाज थमने से माहौल फिका रहा।
नगर के मुख्य चौक चौराहो मे नगाड़ो की आवाज पूर्ववर्ती वर्षो के भांति सुनाई नही पड़ी। कुछ कुछ जगहो मे थोड़े देर नगाड़े बजे, फाग गीत भी गाए गए लेकिन बदली शांति व्यवस्था ने इसकी आवाज को लोगो के कान मे पहुचते ही रोक दिया। जिसके चलते इस वर्ष होली मे बजाए जाने वाले नगाड़े के धून और फाग गीत से बनने वाला उत्साह नजर नही आया।
इस वर्ष जिस प्रकार की शांति व्यवस्था रही उसमे सिर्फ रंगो की होली देखने को मिली। बाजे गाजे और नगाडो की धूम सीमीत होने के कारण होली का उत्साह वैसे नही दिखा जैसे वर्षो से देखने को मिलता रहा है। वैसे तो होली भारतीय संस्कृति का सबसे अनूठा त्यौहार माना जाता है जिसमे लोग अपने रिश्तो की खटाश भुलकर भाई चारे के साथ नगाडो और बाजे गाजे की धूम मे जमकर एक दूसरो पर रंगो बौछार करते है।
यह त्यौहार के कुछ दिनो पहले से ही फाग गीत और नगाड़ो की धूम के साथ आरंभ हो जाता है और मुख्यत: दो दिन विशेष रूप से मनाया जाता है। जिसमे पहले दिन शुभ मुहुर्त मे होलिका दहन कर घर परिवार के खुशी, समृध्दि की कामना की जाती है और दूसरे दिन रंग खेला जाता है।
सदियो से इस त्यौहार को मनाए जाने को लेकर समाज का हर वर्ग प्रतिवर्ष उत्साहित भी रहता है विशेष कर बच्चो और युवाओ मे इसका अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। लेकिन इस वर्ष लोगो मे वह उत्साह देखने को नही मिला।
भारती संस्कृति के अनुरूप पहले जहां देर रात 11-12 बजे होलिका दहन किया जाता है वही इस वर्ष शाम 7 से 9 बजे के बीच ही नगर के विभिन्न मोहल्लो मे विधिवत पूजा अर्चना कर होलिका दहन की गई वही होलिका दहन के साथ गाये जाने वाले फाग गीत और नगाड़ो की धून भी थोडे समय तक ही सीमीत रही।
वर्तमान मे देश का सबसे प्राचीन और पारम्परिक इस त्यौहार के प्रति लोगो के उत्साह मे कमी आते भी देखा जा रहा है। पहले के समय मे देर रात 11 - 12 बजे के बाद जहां होलिका दहन की जाती थी मोहल्लो मे होलिका दहन मे बडी संख्या मे मोहल्लो के लोग एकत्रित होते है महिलाए भी शामिल होती है और घंटोभर नगाड़े बजाने के साथ अनेक प्रकार के फाग गीतो से मनोरंजन का माहौल तैयार होता था।
समाज के सभी वर्ग के लोग उत्साह और आनंद के साथ त्यौहार मे शामिल होते थे। लेकिन आधुनिकता और बदली व्यवस्था के बीच यह त्यौहार भी सिमटा हुआ नजर आया जहां आज शाम के समय ही होलिका दहन हो गई वही पूरी रात होने के पहले ही नगाड़ो और फाग गीत की धून भी समाप्त हो गई।
इसे बदलती संस्कृति कहा जाए या लोागो के समयाभाव या फिर पारम्परिक त्यौहार के प्रति कम होती जा रही रूचि जिसके कारण रंगो और उत्साह का त्यौहार धीरे धीरे फीका होता नजर आ रहा है। समाज के बुध्दिजीवी वर्ग के लोगो और वरिष्ठजनो को इसको लेकरे विचार और समीक्षा करने की भी आवश्यकता है कि ऐसे पारम्परिक त्यौहार जो हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का ज्ञान आने वाली पीढ़ी को कराते है उसका उत्साह फीका ना हो ना ही इन त्यौहारो मे लोगो के उत्साह मे किसी प्रकार की कमी आए।
इस वर्ष नगर के बस स्टैण्ड, संतोषी मंदिर, शिक्षक नगर, आमदी, पैरी कालोनी, यादव पारा, बजरंग चौक, सिविल लाइन, डाग बंगला, रावनभाटा, पुराना मंगल बाजार, सुभाष चौक, अंबेडकर चौक, गायत्री मंदिर इत्यादि जगहो मे होलिका दहन की गई और होली खेली गई।
इस दौरान जगह जगह चौक चौराहो मे कड़ी पुलिस व्यवस्था भी देखने को मिली। हर मोहल्लो मे होलिका दहन होने वाले स्थानो मे दो से तीन संख्या मे पुलिस के जवान तैनात रहे।