उच्च न्यायालय ने सरकार के आदेश पर रोक लगाई

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश में वनों की नयी परिभाषा गढ़ने के मामले में मंगलवार को सरकार को झटका देते हुये उसके आदेश पर रोक लगा दी है;

Update: 2019-12-11 00:58 GMT

नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश में वनों की नयी परिभाषा गढ़ने के मामले में मंगलवार को सरकार को झटका देते हुये उसके आदेश पर रोक लगा दी है।

मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ ने नैनीताल निवासी और पर्यावरणविद् प्रोफेसर अजय रावत की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई के बाद प्रदेश में वनों की नयी परिभाषा गढ़ने के मामले में मंगलवार को सरकार को झटका देते हुये उसके आदेश पर रोक लगा दी है। सरकार को दो जनवरी तक इस मामले में जवाब पेश करने के निर्देश दिये है।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता राजीव सिंह बिष्ट ने बताया कि पिछले महीने 21 नवम्बर को प्रदेश सरकार के वन एवं पर्यावरण अनुभाग की ओर से मात्र एक कार्यालय आदेश जारी कर वनों की परिभाषा बदल दी गयी है। नये आदेश के अनुसार प्रदेश में जहां दस हेक्टेयर क्षेत्र से कम और 60 प्रतिशत से कम घनत्व वाले वन क्षेत्र हैं उनको उत्तराखंड में लागू राज्य एवं केन्द्र की वर्तमान विधियों के अनुसार वनों की श्रेणी बाहर कर दिया गया है।

उन्होंने उच्चतम न्यायालय के 12 दिसंबर 1996 में गोडा वर्मन बनाम केन्द्र सरकार मामले में दिये गये महत्वपूर्ण फैसले का हवाला देते हुये कहा कि यह गलत है और वन एवं पर्यावरण अनुभाग को इस प्रकार का आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के अनुसार प्रदेश में 71 प्रतिशत वन क्षेत्र घोषित हैं। इसमें वनों की विभिन्न श्रेणियां घोषित की गई हैं।

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