प्रत्येक जिले में बाल विवाह प्रतिशेष अधिकारी नियुक्त करे सरकार : अदालत

उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बाल विवाह पर रोक लगाने के लिये राज्य सरकार को प्रदेश के सभी जिलों में बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त करने को आदेश गुरुवार को दिया;

Update: 2018-12-21 01:37 GMT

नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बाल विवाह पर रोक लगाने के लिये राज्य सरकार को प्रदेश के सभी जिलों में बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त करने को आदेश गुरुवार को दिया। 

न्यायमूर्ति राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की युगलपीठ ने कहा कि तथ्यों से साफ है कि उत्तराखंड में बाल विवाह पर रोक लगाने के लिये बने बाल विवाह अधिनियम 2006 का सख्ती से पालन नहीं किया जा रहा है। युवतियों की छोटी उम्र में शादी कर दी जाती है। उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा जा रहा है। अदालत ने इस मामले में 28 अगस्त को अंतिम सुनवाई के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया था। 

अदालत ने नैनीताल की सामाजिक कार्यकर्ता चंपा उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश जारी किया है। सुश्री उपाध्याय ने वर्ष 2016 में दायर अपनी याचिका में बताया था कि प्रदेश के शहरों के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह की समस्या अधिक है। 

याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि वर्ष 2012-13 के वार्षिक स्वास्थ्य समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड में 39 प्रतिशत महिलाएं मात्र 15 से 19 साल की उम्र में बच्चे को जन्म दे देती हैं जबकि 5.5 प्रतिशत लड़कों की 21 साल से कम तथा 1.8 प्रतिशत लड़कियों की 18 साल से कम उम्र में शादी हो जाती है। याचिका में बाल विवाह पर रोक लगाने एवं बाल विवाह अधिनियम का कड़ाई से पालन कराने की मांग की गयी।

याचिकाकर्ता की ओर से यह भी बताया गया कि बाल विवाह से नहीं समाज पर भी कई प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। बाल विवाह से लिंगापुपात में अंतर आ जाता है। जनसंख्या तथा गरीबी बढ़ती है। सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि बाल विवाह पर रोक लगाने के लिये सरकार की ओर से वर्ष 2016 में नियमावली तैयार की गयी है। 

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