ललित सुरजन की कलम से- परीक्षा की एक और घड़ी
हम घटनाचक्र की बारीकियों पर नहीं जाना चाहते। पाठकों के पास सूचनाओं की कमी नहीं है;
'हम घटनाचक्र की बारीकियों पर नहीं जाना चाहते। पाठकों के पास सूचनाओं की कमी नहीं है। मीडिया और सोशल मीडिया जो कुछ परोस रहा है उसमें तथ्यों को निकालना व घटनाओं का विश्लेषण करना आसान नहीं है, लेकिन विवेकशील नागरिकों को यह कष्ट उठाना ही चाहिए। उन्हें हम कहना चाहते हैं कि ऐसे कठिन समय भावनाओं में बहने से अपना याने देश का ही नुकसान होता है।
यह समझना जरूरी है कि विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास, घृणा और हिंसा का माहौल बनाने के पीछे कौन सी ताकतें हैं और उनके मंसूबे क्या हैं। काश्मीर, पंजाब और असम से लेकर केरल और तमिलनाडु तक पूरे देश में समय-समय पर हमने हिंसा की वाला को न सिर्फ महसूस किया है बल्कि उसमें बार-बार जले भी हैं।
यह सामान्य बुध्दि कहती है कि जब पड़ोसी का घर जलता है तो उसकी लपटों से हमारा घर भी नहीं बच सकता। इसलिए अपने पाठकों से निवेदन है कि वे किसी भी तरह से भावनाओं के उन्माद में न आएं और फेसबुक, ट्विटर, एसएमएस आदि का उपयोग भड़काने वाले बयानों के लिए न होने दें।'
(देशबन्धु में 18 अगस्त 2012 को प्रकाशित विशेष सम्पादकीय)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2012/08/blog-post_17.html