ललित सुरजन की कलम से- स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्गति-2

यह लाख टके का सवाल है कि शासकीय चिकित्सा महाविद्यालयों में, शासकीय अस्पतालों में, यहां तक कि एम्स जैसे संस्थान में डॉक्टरों का टोटा क्यों पड़ जाता है;

Update: 2025-06-09 02:50 GMT

'यह लाख टके का सवाल है कि शासकीय चिकित्सा महाविद्यालयों में, शासकीय अस्पतालों में, यहां तक कि एम्स जैसे संस्थान में डॉक्टरों का टोटा क्यों पड़ जाता है। मुख्यत: यह स्थिति विगत पच्चीस-तीस वर्ष के भीतर बनी।

ऐसा नहीं है कि उसके पहले प्राईवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर नहीं थे। लेकिन उनकी संख्या बहुत कम होती थी और वे अक्सर बस्ती के धनाढ्य परिवारों का ही इलाज करते थे। यद्यपि पास-पड़ोस के लोग भी उनके पास इलाज के लिए पहुंच जाते थे। इन निजी चिकित्सकों पर मरीजों को लूटने का आरोप भी शायद ही कभी लगा हो।

एकाध-दो अपवाद तो हर जगह होते हैं। आम तौर पर जनता सरकारी अस्पताल का ही उपयोग करती थी और वहां के डॉक्टरों को समाज में यथेष्ट सम्मान मिलता था। इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि मंत्री, संसद सदस्य, विधायक, संभागायुक्त, जिलाधीश भी अपना और अपने परिवार का इलाज सरकारी अस्पताल के डॉक्टर से करवाने को प्राथमिकता देते थे।

जब शासन-प्रशासन के कर्णधार सरकारी अस्पताल में आएंगे तो स्वाभाविक ही वहां की व्यवस्था चाक-चौबंद होगी और डॉक्टर अपने कर्तव्य के प्रति पूरी तरह मुस्तैद।'

(देशबन्धु में 27 जुलाई 2017 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/08/2.html

Full View

Tags:    

Similar News