आदिवासियों की जमीन के पट्टे को लेकर पूर्व सीएम दिग्विजय का पत्र वार
सीएम शिवराज की विधानसभा बुधनी का है मामला;
भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विधानसभा बुधनी में आदिवासियों को जमीन के पट्टों पर कब्ज़ा देने को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सीहोर कलेक्टर को पत्र लिखा है। पत्र में दिग्विजय सिंह ने लिखा कि बुधनी क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों को अभी तक वनाधिकार अधिनियम के तहत वन अधिकार पत्र नहीं दिए गए है। सैकड़ों लोगों के मामलें अभी तक लंबित क्यों रखे गए हैं? उन्होंने कलेक्टर से यह जानकारी भी मांगी है कि वन अधिकार अधिनियम लागू होने से आज तक कितने आदिवासी परिवारों को वन अधिकार पत्र प्रदान किये गये, कितने परिवारों के पट्टे के आवेदन निरस्त किये गये तथा कितने परिवार के प्रकरण अभी तक किन कारणों से विचाराधीन है।
दरअसल कुछ समय पूर्व ही पूर्व मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस आशय का एक पत्र भी लिखा था, जिस पर अभी तक कोई कार्यवाही नही होने की बात करते हुए ही उन्होंने कलेक्टर को पत्र लिखा है। पूर्व सीएम इस संबंध में 23 अगस्त को नसरुल्लागंज स्थित एसडीएम कार्यालय में पहुंचकर वन विभाग, राजस्व विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग के अधिकारियों से चर्चा भी करेंगे।
बता दे कि बुधनी विधानसभा सीट प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीट मानी जाती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यहां से वर्ष 2005 से विधायक के साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उनके कार्यकाल के दौरान ही देश में वन अधिकार अधिनियम लागू हुआ था, इसी अधिनियम को लेकर ही दिग्विजय सिंह प्रदेश सहित सीएम शिवराज सिंह चौहान की विधान सभा में मामलें को लेकर लगातार सवाल उठा रहे हैं।
क्या है वन अधिकार कानून
वन क्षेत्र में निवास करने वाली ऐसी अनुसूचित जनजातियों और अन्य परम्परागत वन निवासियों के, जो ऐसे वनों में पीढि़यों से निवास कर रहे है, किन्तु उनके अधिकारों को अभिलिखित नहीं किया जा सका है, वन अधिकार अधिनियम, 2007 वन भूमि में वन अधिकारों और कब्जे को मान्यता देता है । भारत सरकार द्वारा वन अधिकार अधिनियम, 2006 पारित किया गया, जो दिनांक 31 दिसम्बर, 2007 से लागू हुआ।
आदिवासियों को लुभाने दिया पेसा एक्ट
वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को अधिकार देने को लेकर कश्मकश में फसी सरकार ने पेसा एक्ट माध्यम से इसकी भरपाई करने की उसने पूरी कोशिश की है। इसी के तहत शिवराज सरकार ने पेसा कानून को लागु कर दिया है, जिसके तहत जल, जंगल और जमीन से जुड़े फैसले लेने का अधिकार देकर आदिवासियों को मजबूत बनाने की बात कही गई है.