पहला काम पेट और पानी
विदा लेते मानसून ने किसानों के दिल में नई उम्मीदें जगा दिया है। वहीं शासन प्रशासन की सूखे की चिंता पर भी कुछ राहत मिलते दिख रही है;
विदा लेते मानसून ने किसानों के दिल में नई उम्मीदें जगा दिया है। वहीं शासन प्रशासन की सूखे की चिंता पर भी कुछ राहत मिलते दिख रही है। दो दिन पहले जो झड़ी वाली बारिश हुई वह कुछ खेतों की प्यास बुझा गई जिससे किसानों को अब अपनी किस्मत पर भरोसा होने लगा है। ठीक धान में बालियां फूटने के समय में बिलकुल बारिश नहीं हुई और खेतों में दरारें पड़ गई। धान में दूध भरने का काम रुक गया जिससे अच्छी फसलो ंकी उम्मीद भी समाप्त हो गई थी। किन्तु अचानक दो दिन पहले जो दस-बीस घंटे की जो झड़ी हुई उससे दम तोड़ते पौधों की सांसे आ गई जिससे अब यह उम्मीद बंध गई है कि फसलों में होने वाला नुकसान कम हो जाएगा।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने किसानों की चिंता को भांपते हुए 96 तहसीलों को सूखा भी घोषित कर दिया है तथा सूखाग्रस्त क्षेत्रों में मनरेगा के तहत 200 दिन काम देने का निर्देश हुआ है वहीं फसल क्षतिपूर्ति के लिए मुआवजे का भी प्रावधान तथा प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत किसानों को अधिकतम राहत देने की घोषणा की गई है। बहरहाल सरकार को किस्मत भरोसे बैठे रहना उचित नहीं है बेहतर यही है कि फसलों की सिंचाई क्षमता बढ़ाई जाए तथा गांवों में प्रत्येक 50 एकड़ के बीच एक नलकूप बोर की व्यवस्था की जाए। इन नलकूपों को 24 घंटे बिजली सप्लाई भी की जाए। नहर अपासी वाले रकबों में नहर किनारे हर 200 मीटर की दूरी पर एक डीजल पंप तथा खेतों के बीच रबर पाइप लाइन की पर्याप्त व्यवस्था होने से किसानों को कम से कम फसल आपदा का सामना नहीं करना पड़ेगा। यद्यपि पेयजल के लिए भी अब पानी की भारी किल्लत होने लगी है।
इसके लिए सरकार को जल संरक्षण के उपायों पर जनजागरुकता लाने की जरूरत है। वाटर हारवेस्टर सिस्टम तो अपनी जगह ठीक है लेकिन खेतों का पानी जो नदी-नालों के सहारे समुद्र में समा रहा है उसे खेतों के ही बीच में रोक लेने की परियोजना पर भी काम किया जा सकता है। अजीत जोगी जब मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने ढाई बरस के कार्यकाल में जल संरक्षण रोकने गांव-गांव में डबरी बनाने की योजना शुरू की थी जो जोगी डबरी के नाम से जाना जाने लगा। लेकिन जैसे ही भाजपा सरकार ने सत्ता संभाली जोगी के सारे कार्यक्रम निरस्त कर दिए गए और अपने ढंग से स्वतंत्र काम अभियान फिर से शुरू हुआ जिसमें डबरी परियोजना आई ही नहीं।
हमारा सोचना है जल संरक्षण के लिए डबरी परियोजना बहुत बढ़िया साधन के रूप में सामने आएगी। मनरेगा के तहत जो काम कराए जा रहे हैं उस पर डबरी परियोजना को प्राथमिकता में रखकर काम कराया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित होना चाहिए कि 100 एकड़ खेती के बीच एक बड़ी डबरी सुलभ हो जाए जिसमें खेतों का बहा सारा पानी बारहों महीने डबरी में इकट्ठा रहे। इससे न केवल जल स्तर बढ़ेगा बल्कि निस्तारी के साधन भी सुलभ होंगे। जानवरों के पानी के लिए यह डबरी ज्यादा उपयोगी सिद्ध होगी। जरूरत पड़ने पर खेतों की फसलों के लिए सिंचाई भी की जा सकेगी।
यद्यपि आज जमाने के हिसाब से काफी बदले हुए परिवेश में जीने की जरूरत है तथा पानी के लिए डबरी जैसे साधन की महत्ता को गौण भी किया जा सकता है और डिजीटल डबरी का दौर शुरू किया जा सकता है जिसमें पानी का बटन दबाने पर खेतों में लाखों लीटर पानी भी बरस सकता है किन्तु उसके लिए भी पानी धरती और आसमान से आएगा।
यह बदलाव भले विज्ञान के प्रति बढ़ते विश्वास को ज्यादा गहरा कर दे लेकिन तालाब, डबरी, नदी के बिना प्यास नहीं बुझाई जा सकेगी। हमारी राय में सिंचाई, पेयजल जैसी समस्याओं के समाधान के लिए तालाबों, डबरी की महत्ता को समझने की जरूरत है। तामझाम दिखावे से पेट नहीं भरेगा बेहतर है किसानों की फसलों को बचाने स्थायी समाधान पर काम किया जाए। पेट और पीने का पानी दो बड़ी चीजें हैं हमारे पास जिसे बचाए बिना संसार मिथ्या है।