आज से शुरू हुई किसानों की भूख हड़ताल, सरकार ने एक बार फिर भेजा बातचीत का प्रस्ताव
किसानों का ये आंदोलन अब धीरे धीरे जहां एक तरफ उग्र हो रहा है तो वहीं सरकार ने एक बार फिर से किसानों को बातचीत का न्यौता भेजा है;
नई दिल्ली। आज किसान आंदोलन का 26वां दिन है। लगातार 25 दिनों से किसान केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ राजधानी दिल्ली की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों का ये आंदोलन अब धीरे धीरे जहां एक तरफ उग्र हो रहा है तो वहीं सरकार ने एक बार फिर से किसानों को बातचीत का न्यौता भेजा है। जी हां आज सोमवार से प्रदर्शनकारी किसान भूख हड़ताल कर रहे हैं। किसानों ने ऐलान कर दिया है कि सभी प्रदर्शन स्थलों पर 24 घंटे की भूख हड़ताल शुरू करने जा रहे हैं और हर प्रदर्शन स्थल पर 11-11 किसान रोजाना अनशन करेंगे।
इसके साथ ही सभी किसान संगठनों ने लोगों से 23 दिसंबर को किसान दिवस के मौके पर एक समय का भोजन ना ग्रहण करने की अपील की है। आज से ये आंदोलन उग्र होता जा रहा है। किसानों के साथ-साथ भारतीय किसान यूनियन ने आंदोलन के समर्थन में हरियाणा के सभी टोल प्लाजा को 25, 26 और 27 दिसंबर को फ्री करने का निर्णय लिया है। किसानों ने सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी का प्लान बनाया है।
अब तो किसानों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी विरोध करने का मन बना लिया है। जी हां प्रदर्शन कर रहे किसानों ने ऐलान कर दिया है कि 27 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम के वक्त बर्तन बजाकर अपना विरोध-प्रदर्शन दिखाएंगे।
आपको बता दें कि किसानों के आंदोलन के कारण दिल्ली के कई बॉर्डर आज भी बंद हैं। दिल्ली पुलिस ने सोमवार को ट्रैफिक एडवाइजरी जारी करके बताया कि किसानों के प्रदर्शन के कारण सिंघु, औचंजी, पियाऊ मनियारी और मंगेश बॉर्डर बंद है। लोगों से लामपुर, सफियाबाद साबोली और सिंघु स्कूल टोल टैक्स बॉर्डर से यात्रा करने की सलाह दी गई है। कई रास्ते बंद होने के कारण रुट डायवर्ट किया जा रहा है।
खास बात ये हैं कि आज एक बार फिर से सरकार ने किसानों को बातचीत का निमंत्रण भेजा है। जी हां सरकार की तरफ से 40 किसान संगठनों को वार्ता का प्रस्ताव भेजा गया है। लेकिन सवाल ये है कि सरकार बार बार अपनी पुरानी बातों को दोहरा रही है जिसे किसान मानने से मना कर रहे हैं। किसानों का साफ कहना है कि उन्हें ये तीन नए कृषि कानून नहीं चाहिए और सरकार इन कानूनों को वापस ले। अब देखना होगा कि आखिर में इस आंदोलन का सार क्या निकलकर आता है। क्या आखिर में सरकार जो अपने निर्णय पर अड़ी है वो देश के अन्नदाताओं के लिए झुकती हैं।