त्योहार के मौसम में सफर
दीपावली और छठ पर्व करीब आते ही राजधानी दिल्ली सहित देशभर के कई रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है;
दीपावली और छठ पर्व करीब आते ही राजधानी दिल्ली सहित देशभर के कई रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है। खासतौर से उत्तर प्रदेश और बिहार के हजारों प्रवासी अपने घर लौटने के लिए देश भर के रेलवे स्टेशनों पर दिखाई दे रहे हैं। गुजरात के सूरत से एक हैरान करने वाली तस्वीर सामने आई है। सूरत के उधना रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म नंबर 6 से करीब दो किलोमीटर दूर तक यात्रियों की लंबी लाइन लगी थी। स्टेशन परिसर में और परिसर के बाहर लिम्बायत इलाके में यात्रियों की लंबी $कतारें लग गई थीं। 12-14 घंटों तक लोग लाइनों में लगे रहे ताकि उन्हें ट्रेन में चढ़ने मिल जाए। प्रधानमंत्री मोदी ने जब से देश की सत्ता संभाली है, उन्होंने लोगों को कतारों में खड़ा करने का काम शुरु कर दिया है। पहले नोटबंदी के वक्त लोग इसी तरह घंटों लाइन में लगे रहते थे। फिर कोरोना के समय लॉकडाउन कर दिया तो लोग घर लौटने के लिए बस, ट्रेन के इंतजार में लाइन में लग गए। बीमार हुए तो अस्पतालों में बिस्तर कम होने के कारण भर्ती के इंतजार में लाइन में लगे और बिस्तर मिल गए तो ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए लाइन में लगे। हालांकि इसके बाद भी राहत नहीं मिली, क्योंकि फिर अपने मृत परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए भी कतारों में लगने का दर्द लोगों को सहना पड़ा है। पांच साल में देश-दुनिया में बहुत कुछ बदल गया है। लेकिन भारत जैसे वहीं का वहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी तीसरी बार सत्ता में आ गए। वे अब भी यहां-वहां ट्रेनों को हरी झंडियां दिखा रहे हैं, नए विमानतलों का उद्घाटन कर रहे हैं। उनका दावा अब भी वही है कि मैं हवाई चप्पल वालों को हवाई जहाज में यात्रा करते देखना चाहता हूं। लेकिन हकीकत ये है कि न नई ट्रेनों का लाभ आम आदमियों को मिल रहा है, न हवाई चप्पल वाले हवाई यात्रा करने का सुख पा रहे हैं। बल्कि पहले से अधिक असुविधा और अपमानजनक रवैया का शिकार हो रही है।
अपने घर जाने के लिए घंटों लाइन में लगकर यात्री ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करें, यह किसी भी देश के लिए शर्मिंदगी का प्रसंग होना चाहिए। लेकिन भारत में अब ऐसे प्रसंगों पर आंख मूंद ली जाती है, मानो इनका कोई महत्व ही नहीं है। इसकी बजाए प्रचार तंत्र के जरिए यह दिखाया जा रहा है कि सरकार को यात्रियों की कितनी फिक्र है। शनिवार को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचकर भीड़ नियंत्रण की तैयारियों का जायजा लिया। बताया गया कि स्टेशन पर यात्रियों की सुविधा के लिए यात्री सुविधा केंद्र और अतिरिक्त टिकटिंग काउंटर बनाए गए हैं। अच्छी बात है कि दिल्ली के एक स्टेशन पर इतनी सुविधा की गई है। लेकिन क्या यात्री केवल दिल्ली से ही सवार होते हैं। सूरत में लगी लाइन पर रेल मंत्री क्या कहेंगे। क्या प्रधानमंत्री मोदी को अपने ही गृहराज्य में प्रवासी मजदूरों की इस भीड़ को देखकर अपने विकास के दावे खोखले नहीं लगते। ध्यान दें कि अभी बिहार चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी जितनी बार बिहार पहुंच रहे हैं, वे विकास की बड़ी-बड़ी बातें ही कर रहे हैं। दावे कर रहे हैं कि डबल इंजन की सरकार में सबको सुख मिलेगा। हालांकि बिहार में अब भी डबल इंजन यानी बीजेपी और जेडीयू की ही सरकार है, तब भी वहां लोगों को रोजगार नहीं मिला और काम की तलाश में ही लोगों को दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ा। बिहार का मजदूर गुजरात से लेकर दिल्ली, उत्तराखंड, असम और कश्मीर तक हर जगह मिल जाएगा। इसी मजदूर वर्ग को छठ पूजा के लिए जब अपने घर-गांव लौटने का मन होता है, तो वो ट्रेनों में भेड़-बकरियों की तरह ठूंस कर भी आने की कोशिश करता है। हालांकि इसमें कई बार जान का जोखिम होता है।
जैसे तीन दिन पहले मुंबई से बिहार जाने वाली कर्मभूमि एक्सप्रेस को पकड़ने की कोशिश में तीन यात्री ट्रेन की चपेट में आ गए। इस हादसे में दो लोगों की मौके पर मौत हो गई, जबकि एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल है। बताया जा रहा है कि नासिक रेलवे स्टेशन पर ये हादसा हुआ। कर्मभूमि एक्सप्रेस यहां रुकती नहीं है, लेकिन धीमी होती है। जिस पर चढ़ने की कोशिश तीन लोगों ने की। मान लिया कि उन लोगों ने चलती ट्रेन में चढ़ने की भारी गलती की और ट्रेन का स्टॉपेज नहीं है, तो उस पर नहीं चढ़ना चाहिए था। लेकिन कोई तो मजबूरी रही होगी जिस वजह से ऐसा जोखिम पीड़ितों ने उठाया होगा। त्योहार के मौसम में सरकार ऐसी व्यवस्था पहले से क्यों नहीं करती कि सारे लोग आराम से आना-जाना कर सकें।
नयी ट्रेनों को हरी झंडी दिखाने और फोटो खिंचवाने के लिए तो प्रधानमंत्री या रेल मंत्री जैसे पद नहीं बने हैं। इन पदों पर बैठने वाले नेताओं की पहली प्राथमिकता आम आदमी की सुख सुविधा होना चाहिए। देश में रेल की नयी पटरियां बिछे, नए मार्ग तैयार हों, कम कीमत में सुरक्षित यात्रा का इंतजाम हो। आलीशान ट्रेनों की जगह ठीकठाक सुविधाओं वाली साधारण ट्रेनें ज्यादा से ज्यादा चलें, तो करोड़ों लोगों के जीवन में थोड़ा चैन आ जाएगा। इस सफलता का श्रेय फिर सरकार को ही जाएगा, ये बात नरेन्द्र मोदी क्यों नहीं समझ रहे हैं।