मोदी के कंधों पर देश की साख

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में छवियों का बड़ा महत्व होता है। दो देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच क्या बात हुई, किस वातावरण में हुई, चर्चा में कौन, किस पर हावी रहा, इन बातों का पूरा खुलासा तो आम जनता के बीच कभी नहीं हो सकता है;

Update: 2025-02-13 03:55 GMT

- सर्वमित्रा सुरजन

ऐसा नहीं है कि भारत के नेताओं के दूसरे देशों के नेताओं के साथ गाढ़े संबंध नहीं रहे। देश के पहले प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू के नाम की धाक तो पूरी दुनिया में थी और तीसरी दुनिया के देश अपनी ताकत जुटाने के लिए नेहरूजी का अनुसरण करते थे। जवाहरलाल नेहरू और इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो के बीच गहरी दोस्ती थी।

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में छवियों का बड़ा महत्व होता है। दो देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच क्या बात हुई, किस वातावरण में हुई, चर्चा में कौन, किस पर हावी रहा, इन बातों का पूरा खुलासा तो आम जनता के बीच कभी नहीं हो सकता है, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के तकाजे इसकी अनुमति नहीं देते हैं। लेकिन दो देशों के मुखिया किस तरह आपस में मिले और एक-दूसरे का अभिवादन किया, इसके मायने भी महत्वपूर्ण होते हैं। कैमरे के सामने दो राष्ट्रप्रमुखों का एक-दूसरे से हाथ मिलाना, मुस्कुराते हुए फोटो खिंचाना, द्विपक्षीय चर्चा के बाद संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस करना, या किसी अंतरराष्ट्रीय बैठक में तमाम राष्ट्राध्यक्षों की सामूहिक तस्वीर और एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर फोटो खिंचाना यह सब अंतरराष्ट्रीय संबंधों में काफी सामान्य बातें हैं। भारत में 10-11 साल पहले तक इस पर शायद ही कोई चर्चा होती थी कि देश के प्रधानमंत्री ने किस राष्ट्राध्यक्ष के साथ, किस तरह से हाथ मिलाया, किस अंदाज में बातें की या उनके साथ घूमे-फिरे। लेकिन जब से नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने और उनकी विदेश यात्राएं शुरु हुईं, तब से भारत के दूसरे देशों के साथ संबंधों के साथ-साथ इस बात पर भी खासी चर्चा होने लगी कि कौन सा राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री मोदीजी का करीबी मित्र बन गया है, किसके साथ उनके पारिवारिक संबंध बन गए हैं।

ऐसा नहीं है कि भारत के नेताओं के दूसरे देशों के नेताओं के साथ गाढ़े संबंध नहीं रहे। देश के पहले प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू के नाम की धाक तो पूरी दुनिया में थी और तीसरी दुनिया के देश अपनी ताकत जुटाने के लिए नेहरूजी का अनुसरण करते थे। जवाहरलाल नेहरू और इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो के बीच गहरी दोस्ती थी। दोनों ने मिलकर एशिया और अफ्रीका के नेताओं को एकजुट करने का काम किया था। सोवियत संघ में नेहरूजी का नाम काफी आदर और सम्मान से लिया जाता था। जब 1955 में सोवियत संघ से सर्वोच्च नेता निकिता ख्रुश्चेव और निकोलाई बुल्गानिन भारत आए तो पंडित नेहरू ने उन्हें खुली गाड़ी में सैर कराई थी। 1949 में हैरी एस ट्रूमैन और 1961 में जॉन एफ कैनेडी नेहरूजी के अमेरिका दौरे पर उनका स्वागत करने एयरपोर्ट आए थे। फ़िलीस्तीन मुक्ति संगठन के प्रमुख यासिर अराफ़ात इंदिरा गांधी को बहन की तरह मानते थे। लेकिन इन सबमें कहीं भी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मानकों से परे न कोई व्यवहार हुआ, न नेहरूजी ने कभी अपने निजी संबंधों को देशहित पर हावी होने दिया। छवियों की बात चली है तो यह भी याद कर सकते हैं कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन छतरी पकड़ कर कार तक आए थे। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि राजीव गांधी के लिए रोनाल्ड रीगन पक्के दोस्त हो गए थे।

दरअसल अंतरराष्ट्रीय संबंध और छवियों की बात इसलिए करनी पड़ रही है क्योंकि इस समय देश और दुनिया में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं और उधर अमेरिका में चार साल बाद डोनाल्ड ट्रंप की वापसी हुई है। ट्रंप का सत्ता में लौटना अमेरिका समेत पूरी दुनिया में कई तरह के बदलावों का कारण बन रहा है, क्योंकि इस वक्त बिल्कुल निरंकुश अंदाज में ट्रंप शासन करते हुए दिखाई दे रहे हैं। उनके शुरुआती कुछ फैसले ही काफी विवादों में आए हैं, लेकिन ट्रंप किसी तरह से बदलते या अपना रुख नर्म करते नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा के खास मायने हो जाते हैं कि इस बार किस अंदाज में राष्ट्रपति ट्रंप से उनकी मुलाकात और चर्चा होती है।

याद रहे कि 2020 में नरेन्द्र मोदी ने अबकी बार ट्रंप सरकार कहकर कूटनीतिक शिष्टाचार की सीमाएं तोड़ी थीं। इस बार ट्रंप जीते लेकिन उन्होंने अपने शपथ ग्रहण में नरेन्द्र मोदी को आमंत्रित नहीं किया। श्री मोदी ने ट्रंप को फिर भी बधाई दी, और एक्स पर दिए अपने बधाई संदेश में माय फ्रेंड यानी मेरे मित्र डोनाल्ड ट्रंप का संबोधन देते हुए चार ऐसी तस्वीरें चस्पां की, जिनसे लोगों के बीच मोदी-ट्रंप दोस्ती की छवि गाढ़ी हो जाए। हालांकि निजी स्तर के इस बधाई संदेश के बावजूद ट्रंप ने हथकड़ियों और जंजीरों के साथ अमेरिकी सैन्य विमान में भारतीयों को भेजकर यह जतला दिया कि वे ऐसी मित्रता और शिष्टाचार की रत्ती भर परवाह भी नहीं करते हैं।

अमेरिका से भारत की लंबी दूरी में अमानवीय तरीके से लाए गए भारतीयों की छवि केवल देश के लोगों ने नहीं दुनिया ने देखी है और इसके बाद आस्ट्रेलिया के एक स्टेडियम में भारतीय दर्शकों से उनके वीज़ा के बारे में पूछकर उन्हें चिढ़ाने की घटना हुई, जिससे जाहिर होता है कि इस छवि का नुकसान विश्वव्यापी स्तर पर भारत को हुआ।

वैसे भी भारत के लोगों को विदेशों में अनेक तरह के भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। कई संपन्न और विकसित देश पढ़ने या काम करने गए आम भारतीयों को हेय दृष्टि से देखते हैं, अब ऐसी घटनाओं के और बढ़ने की आशंका है। अगर मोदी सरकार तुरंत ही इस पर आपत्ति जताती तो शायद कड़ा संदेश जाता। प्रसंगवश बता दें कि कोलंबिया के राष्ट्रपति ने अपने नागरिकों के लिए विमान भेजा और जब वे वापस लौटे तो खुद विमान के भीतर जाकर उन्हें आश्वस्त किया। इसी तरह वेनेजुएला ने अपने नागरिकों को अमेरिका से वापस बुलाया और जब वे विमानतल पर उतरे तो उनके स्वागत के लिए राष्ट्रपति खुद मौजूद थे।

भारत में अमेरिका से हथकड़ियों में लाए गए नागरिकों को कैदियों वाली गाड़ी में उनके घरों तक भेजा गया। अपने नागरिकों को सम्मान देने और उनका सम्मान बचाने में सरकार तब चूक गई और अब देखना होगा कि नरेन्द्र मोदी डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात में इस बारे में कुछ कहते हैं या नहीं।

हालांकि ट्रंप से मुलाकात से पहले पेरिस में श्री मोदी की मुलाकात अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से हुई। उनकी पत्नी उषा वेंस और बच्चों से भी श्री मोदी मिले और वेंस दंपती के बेटे विवेक को जन्मदिन पर बधाई दी, उपहार दिया। इस बात की जानकारी श्री मोदी ने खुद अपने सोशल मीडिया हैंडल पर दी, लेकिन यह जिक्र नहीं हुआ कि उन्होंने अमेरिकी उपराष्ट्रपति से भारतीयों के अपमान की बात की या नहीं की। संभवत: नहीं की, अन्यथा वे इसका ब्यौरा जरूर देते।

अमेरिका से पहले श्री मोदी फ्रांस के दौरे पर थे, जहां से राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो से हाथ मिलाते, गले मिलते, साथ बातें करते तस्वीरें भी आई हैं। लेकिन इसी अवसर की एक और तस्वीर आई है, जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस आयोजन में दुनिया भर के तमाम नेता, प्रतिनिधि मौजूद थे और राष्ट्रपति मैक्रो एक-एक करके सबके पास आकर हाथ मिला रहे थे और इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी के सामने से उन्हें लगभग अनदेखा करते हुए वे निकल गए। श्री मोदी ने स्वाभाविक तौर पर अपना हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन मैक्रो ने उनसे हाथ न मिलाते हुए अगले प्रतिनिधि की तरफ रुख किया। कुछ सेंकड की यह वीडियो क्लिप अब सोशल मीडिया पर वायरल है और इसकी चाहे जितनी सफाई देने की कोशिश की जाए, भारत के लिए यह अच्छी छवि नहीं है। क्योंकि इसमें सीधे तौर पर भारत के प्रधानमंत्री का अपमान फ्रांस के राष्ट्रपति ने किया है। अगर यह अनजाने में हुआ है तो इस पर खेद प्रकट हो जाना चाहिए था।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ, न ही भारत सरकार के विदेश विभाग ने इस पर कोई आपत्ति उठाई है, तो फिर सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार में अब विदेश नीति के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के तकाजों को भी परे कर दिया गया है। आप किस राष्ट्रपति को दोस्त कहते हैं, किसकी पीठ पर हाथ रखते हैं, किसे पहले नाम से पुकारते हैं, किसके साथ झूला झूलते हैं, किसके साथ नौका विहार करते हैं या किसके साथ जाम टकराते हैं, ये सारी बातें निजी रिश्तों की प्रगाढ़ता को भले दिखाती हैं, लेकिन यह सब किसी व्यक्ति के नाम नहीं बल्कि उसके पद के कारण संभव हुआ।

नरेन्द्र मोदी के नाम के साथ भारत के प्रधानमंत्री का पद जुड़ा हुआ है, यह बात याद रहनी चाहिए और फिर उस पद की गरिमा को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए ही अपने विदेशी समकक्षों से व्यवहार होना चाहिए। श्री मोदी कम से कम सत्ता के तीसरे कार्यकाल में तो इस बात को समझें। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की साख बनाने की सबसे अधिक जिम्मेदारी उन्हीं पर है।

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