रोटी, बेटी, माटी और आखिरी कतार का आदमी
नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, तो कायदे से उनका काम लोगों के मन से डर निकालना होना चाहिए;
- सर्वमित्रा सुरजन
नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, तो कायदे से उनका काम लोगों के मन से डर निकालना होना चाहिए। मगर इस समय उल्टी गंगा बह रही है। प्रधानमंत्री काल्पनिक, मनगढ़ंत चोरियों का डर जनता को दिखा रहे हैं और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी लोगों के मन से डर को निकालने की मुहिम छेड़े हुए हैं। राहुल गांधी डरो मत का नारा देते आए हैं।
मंगलसूत्र की चोरी और भैंस खोल कर ले जाने जैसी लचर, बेतुकी और अशिष्ट टिप्पणी के बाद चुनाव के बाजार में ताजातरीन निकृष्ट टिप्पणी है- 'घुसपैठिए आपकी बेटियों को छीन रहे हैं, जमीन हड़प रहे हैं और आपकी रोटी खा रहे हैं।' पाठक जानते हैं ये भाषा देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की है। अपनी भाषायी गिरावट में वे खुद ही हर बार नया रिकार्ड बनाते चले जा रहे हैं। बेटियों को छीनने की बात उन्होंने इस तरह कही है, मानो लड़कियां कोई सामान हों। जिस मंच से वे सीता सोरेन और शाइना एनसी पर इंडिया गठबंधन के नेताओं की टिप्पणियों की निंदा कर रहे हों, उसी मंच से वे बेटियों के मामले में मध्ययुगीन भाषा का इस्तेमाल करते हुए हिचक नहीं रहे। जमीनों का अतिक्रमण या चोरी हो सकती है, रोटी यानी रोजगार का हक भी मारा जा सकता है, लेकिन बेटी छीनना सीधे-सीधे एक गंभीर आरोप की तरफ इशारा करता है, जिसे मानव तस्करी कहा जाता है। क्या प्रधानमंत्री मोदी झारखंड में इस गंभीर अपराध की बात कर रहे थे, अगर नहीं, तो फिर उन्हें खुलासा करना चाहिए कि आखिर बेटी छीनने से उनका तात्पर्य क्या था। क्या रोटी और माटी के साथ यह महज तुकबंदी थी और ऐसा नहीं है तो फिर एक जिम्मेदार शासक की तरह बताना चाहिए कि झारखंड के मामले में ये गंभीर इल्जाम उन्होंने क्यों लगाए और इसका क्या सबूत उनके पास है कि बेटियों को छीना जा रहा है।
श्री मोदी से पहले गृहमंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वासरमा झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठा चुके हैं। तीनों ही जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं, तो जाहिर है उनके पास सारी खुफियां सूचनाएं और आंकड़े भी होंगे, जो ये बता रहे होंगे कि झारखंड की सामाजिक, जातीय, धार्मिक और आर्थिक संरचना को नुकसान पहुंचाने का काम किस तरह हो रहा है और इसमें बांग्लादेशी घुसपैठियों के आंकड़े कितने हैं। अब तक आधिकारिक तौर पर तो भाजपा ने कोई आंकड़े पेश नहीं किए हैं, लेकिन पूरे चुनाव में इसी को एक अहम मुद्दा बना कर भाजपा झामुमो-कांग्रेस सरकार को घेर रही है। जाहिर है कि लोकसभा चुनावों की तरह एक बार फिर श्री मोदी असल मुद्दों को छोड़कर भावनाओं में उलझाने की सियासी चाल चल रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी दावा करते हैं कि उन्होंने तपस्या की है, भिक्षाटन से पेट भरा, फकीर है, झोला उठा कर चले जाएंगे। हालांकि दावा तो यह भी है कि वे खुद में दैवीय अंश महसूस करते हैं। हिंदुस्तान में भिक्षुओं और फकीरों की जो परंपरा रही है, उसमें वैराग का भाव समाहित रहा है। गलियों में घूमते हुए, इस दुनिया के सृजनहार की शान में गीत गाते हुए ये फकीर-महात्मा पेट भरने के लिए भिक्षा लेते और बदले में ज्ञान के ढेर सारे मोती बिखेर देते। श्री मोदी की फकीरी इस परंपरा की तो कतई नहीं लगती। हां, बहुत से बच्चों को उनकी मांएं इस बात से जरूर डराती रही हैं कि साधु बाबा आएगा और अपने झोले में भरकर ले जाएगा, क्या श्री मोदी भी इसी किस्म का डर दिखा रहे हैं या उनका अब तक ओझल झोला, इस डर को फैलाने के लिए ही है।
नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, तो कायदे से उनका काम लोगों के मन से डर निकालना होना चाहिए। मगर इस समय उल्टी गंगा बह रही है। प्रधानमंत्री काल्पनिक, मनगढ़ंत चोरियों का डर जनता को दिखा रहे हैं और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी लोगों के मन से डर को निकालने की मुहिम छेड़े हुए हैं। राहुल गांधी डरो मत का नारा देते आए हैं। बुधवार को अंग्रेजी और हिन्दी में उनका आलेख प्रकाशित हुआ है, इसमें भी राहुल गांधी ने डर से मुक्ति पाने और व्यापार के एकाधिकार को तोड़ने की बात कही है। अपने आलेख की शुरुआत राहुल गांधी ने ईस्ट इंडिया कंपनी के उदाहरण से की कि कंपनी ने भारत की आवाज़ को कुचला, हमारे राजा-महाराजाओं और नवाबों की साझेदारी से, उन्हें रिश्वत देकर और धमका कर भारत पर शासन किया था। उसने हमारी बैंकिंग, नौकरशाही और सूचना नेटवर्क को नियंत्रित कर लिया था। हमने अपनी आज़ादी किसी दूसरे देश के हाथों नहीं गंवाई, हमने इसे एक एकाधिकारवादी निगम के हाथों खो दिया, जो हमारे देश में दमन तंत्र को चलाता था।
देश में एक नयी गुलामी किस तरह कायम की जा रही है, ये समझाने के लिए राहुल गांधी ने लिखा कि ईस्ट इंडिया कंपनी भले ही 150 साल पहले ख़त्म हो गई हो, लेकिन उसने जो डर पैदा किया था, वह आज फिर से दिखाई देने लगा है। एकाधिकारवादियों की एक नई पीढ़ी ने इसकी जगह ले ली है। परिणामस्वरूप जहां भारत में हर किसी के लिए असमानता और अन्याय बढ़ता जा रहा है, वहीं यह वर्ग अकूत धन एकत्रित करने में लगा है। हमारी संस्थाएं अब हमारे लोगों की नहीं रहीं। वे एकाधिकारवादियों के आदेश मानती हैं। नोटबंदी से लेकर जीएसटी और कोरोना लॉकडाउन के दौरान भी अरबों का मुनाफा कमाने वाले लोगों के पीछे कौन सी शक्तियां, कौन सी सोच और कौन सी राजकीय सहायता काम कर रही थी, इसे लेकर पहले भी कई बार राहुल गांधी अलग-अलग तरह से खुलासा कर चुके हैं, इस लेख के माध्यम से फिर उन्होंने एक नए उदाहरण के साथ प्रधानमंत्री मोदी और उनके उद्योगपति मित्रों के बारे में लोगों को बताया है।
लेकिन राहुल गांधी केवल आरोप लगा कर खामोश नहीं हो गए, उन्होंने टाइनोर, इनमोबी, मान्यवर, जोमैटो, जैसी युवा पीढ़ी के व्यवसायों और एल एंड टी, हल्दीराम, अरविंद आई हास्पिटल, इंडिगो जैसी पुरानी पीढ़ी के व्यवसायों का नाम लिखकर यह भी बताया कि इन लोगों ने अपने व्यापार में नवाचार किया, एकाधिकार को चुनौती दी, अनुसंधान किए और रोजगार के नए अवसर बनाए। जिस तरह इन लोगों ने चुनौतियों का सामना किया, वही जज्बा व्यापार में संलग्न सभी लोगों में होना चाहिए, तभी एकाधिकार खत्म किया जा सकेगा, यह श्री गांधी का मानना है। उन्होंने लिखा कि मेरा इन व्यवसायियों से व्यक्तिगत परिचय नहीं है, न ही इनकी राजनैतिक प्राथमिकताएं मैं जानता हूं, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है। उनका मुख्य मकसद निष्पक्षता और समान अवसर के लिए आवाज उठाना है, कमजोर और बेजुबान लोगों के हितों की रक्षा करना है।
राहुल गांधी का यह लेख एक तरह से उनकी भारत जोड़ो यात्रा, भारत जोड़ो न्याय यात्रा में व्यक्त किए गए विचारों का सार ही है, जिसे उन्होंने नए उदाहरणों, नए नामों के साथ जनता के बीच प्रस्तुत किया है। हरियाणा चुनाव में मिली हार और जम्मू-कश्मीर में आशा के अनुरूप सीटें हासिल न करने पर राहुल गांधी चाहते तो महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों को ध्यान में रखकर तात्कालिक लाभ हासिल करने वाली बातें करते। चुनावी मंचों से भाजपा की कमियां गिनाने के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते, जिसमें अपमान का भाव हो और जो जनता की जुबान पर भी झट से चढ़ जाए। मगर श्री गांधी इस वक्त भी लिख रहे हैं कि कतार में खड़े आखिरी व्यक्ति की रक्षा के बारे में महात्मा गांधी के शब्द ही मेरी प्रेरणा हैं। और देश के प्रधानमंत्री रोटी, बेटी, माटी की तुकबंदी से नए जुमले गढ़ने में लगे हैं, ताकि पहली कतार में खड़े पहले दो-तीन लोगों के स्वार्थ पूरे हो जाएं। बाकी लोगों को प्रधानमंत्री का झोला देख लेगा।