राहुल-खड़गे को सावधान होने की जरूरत

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने 28 दिसंबर को अपनी स्थापना के 140 साल पूरे किए;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-12-28 22:12 GMT

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने 28 दिसंबर को अपनी स्थापना के 140 साल पूरे किए। एक संगठन, एक राजनैतिक दल के तौर पर तमाम उतार-चढ़ावों के बीच इतना लंबा सफर तय करना ही अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। कांग्रेस ने अंग्रेजी हुकूमत को खत्म करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। जिसमें वक्त के अनुसार तरीके बदलते रहे। कांग्रेस के भीतर अलग विचारधाराएं पनपीं, जिनके कारण कई बार पार्टी में टूट हुई। कांग्रेस से निकले लोगों ने अपने नए दल बनाए, कभी उन दलों का कांग्रेस में विलय हुआ, कभी वे साथ चलते रहे। कांग्रेस ने कई बार भितरघात भी सहे। लेकिन इन सबके बीच कभी भी अपनी मूल विचारधारा को नहीं छोड़ा, जो असल में भारत की उदार और समावेशी संस्कृति से निकली है। जिसमें किसी भी किस्म के भेदभाव, संकीर्णता, सांप्रदायिकता, नफरत और हिंसा के लिए जगह नहीं है। उच्च नैतिक आदर्शों के साथ अस्तित्व को कायम रखना आसान नहीं था, लेकिन कांग्रेस इस कसौटी पर खरी उतरती आई है।

स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बिल्कुल सही कहा कि जो लोग यह कहते हैं कि कांग्रेस खत्म हो चुकी है, उन्हें साफ संदेश है कि पार्टी भले सत्ता में न हो, लेकिन उसकी रीढ़ सीधी है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने न कभी संविधान से समझौता किया, न धर्मनिरपेक्षता से और न ही लोगों के अधिकारों से। श्री खड़गे ने साफ कहा कि कांग्रेस सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि एक विचारधारा है, जो कभी खत्म नहीं हो सकती। आज जब संविधान और लोकतंत्र खतरे में हैं, कांग्रेस उसी भारत के लिए संघर्ष जारी रखेगी, जिसका सपना स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था। यह लड़ाई सत्ता के लिए नहीं, बल्कि देश की आत्मा और संविधान को बचाने की है।

इसी तरह राहुल गांधी ने भी कहा कि कांग्रेस हमेशा समाज के कमजोर, वंचित और मेहनतकश वर्ग के साथ खड़ी रही है और आगे भी उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करती रहेगी। कांग्रेस का संकल्प नफरत, अन्याय और तानाशाही के खिलाफ सत्य, साहस और संविधान की रक्षा की लड़ाई को और मजबूत करने का है। यह लड़ाई सत्ता के लिए नहीं, बल्कि देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान को बचाने के लिए है।

मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने संविधान बचाने के लिए कांग्रेस के संघर्ष को जारी रखने का जो आह्वान किया है, उसमें एक तरफ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को निराशा से बाहर निकालने और लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार किया गया है, वहीं दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं को इशारे से जवाब भी दिया गया है कि सत्ता रहे न रहे लेकिन रीढ़ सीधी होनी चाहिए यानी आत्मसम्मान बना रहना चाहिए, जिसमें कांग्रेस अब तक सफल रही है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 27 दिसंबर को लालकृष्ण आडवानी और नरेन्द्र मोदी की एक पुरानी तस्वीर शेयर करते हुए भाजपा और संघ के संगठन की तारीफ की, कि जमीन पर बैठने वाला एक कार्यकर्ता भी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बन गया। इस तस्वीर में आडवानी सोफे पर बैठे हैं और नरेन्द्र मोदी जमीन पर।

दिग्विजय सिंह की पोस्ट पर सवाल उठने लगे कि क्या श्री सिंह अब भाजपा में जाने की तैयारी कर रहे हैं या ये राज्यसभा में फिर से आने की भूमिका बांधी गई है। दिग्विजय सिंह ने क्या राहुल गांधी और कांग्रेस में गांधी परिवार के रसूख पर हमला बोला है, ये कयास भी लगे। वहीं कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने दिग्विजय सिंह का समर्थन किया है और कहा ''जी हां मैं भी यही चाहता हूं कि पार्टी संगठन को मजबूत करने पर जोर दिया जाए''। हमारा 140 साल का इतिहास है, और हम इससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। हम खुद से भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।

सब जानते हैं कि कांग्रेस में जहां अध्यक्ष का बाकायदा चुनाव होता है, वहीं भाजपा में अंदरूनी लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं है। वहां पहले से टू मच डेमोक्रेेसी की पहचान करते हुए एक किस्म की तानाशाही बनी हुई है। पार्टी का संविधान कुछ भी कहे, भाजपा में आज की तारीख में वही होता है, जो नरेन्द्र मोदी और अमित शाह तय करते हैं। चाहे दिग्गज नेताओं को एक झटके में किनारे करते हुए कम पहचाने चेहरों में से किसी को मुख्यमंत्री बनाना हो या जब मन चाहे मुख्यमंत्री समेत पूरी केबिनेट बदलना हो या रातों रात किसी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाना हो और अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म होने के बावजूद उसे एक्सटेंशन पर एक्सटेंशन देना हो, मोदी-शाह की जोड़ी ही सारे फैसले लेती है और इसमें किसी जमीन पर बैठने वाले कार्यकर्ता की बात तो दूर, कई सालों से सांसद और विधायक बनने वाले वरिष्ठ नेता भी हूं चूं नहीं कर पाते। जिन लालकृष्ण आडवानी के सामने नरेन्द्र मोदी जमीन पर बैठे थे, उन्हीं आडवानी को कैसे कई मौकों पर मोदी ने बेइज्जत किया है, ये भी दिग्विजय सिंह और शशि थरूर ने देखा ही है। फिर भी उन्हें भाजपा और संघ से प्रेरित होना हो, तो इसमें अब मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को सावधान होने की जरूरत है।

भाजपा तो मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की बात कहती आई। उसमें सफल नहीं हो पाई तो कांग्रेस में बड़ी सेंध लगाकर उसके कई नेताओं को भगवा गमछा ओढ़ा दिया। राहुल गांधी ने तब भी कहा कि अच्छा है हमारे यहां सफाई हो गई। अभी लोकसभा हारने के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार भी कांग्रेस हारी, लेकिन फिर भी उतने ही दम से कांग्रेस भाजपा को मनरेगा खत्म करने से लेकर अरावली में खनन और एसआईआर की गड़बड़ियों पर चुनौती दे रही है। 14 दिसंबर को रामलीला मैदान में कांग्रेस की जमीनी ताकत भाजपा ने देखी है और अब 5 जनवरी से मनरेगा बचाने के लिए फिर से कांग्रेस आंदोलन की शुरुआत कर रही है। इन सबसे भाजपा को यह समझ आ रहा है कि कांग्रेस को दबाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। क्योंकि मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी दोनों ने कहा है कि कांग्रेस सत्ता की नहीं, विचारधारा की लड़ाई लड़ती है और इस देश की जनता की आत्मा है। इसलिए दिग्विजिय सिंह जैसे नेताओं के बयानों में भाजपा अपने लिए अवसर तलाशती है। अब श्री सिंह भले कहें कि वो संघ की विचारधारा के खिलाफ हैं और केवल संगठन की तारीफ कर रहे थे। लेकिन सवाल तो बना हुआ है कि आपने तारीफ के लिए कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक का अहम दिन ही क्यों चुना। क्यों पार्टी की स्थापना दिवस से एक दिन पहले अनावश्यक विवाद खड़ा किया।

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