दोषी को सजा और समाज की जिम्मेदारी
प.बंगाल में आरजी कर अस्पताल में 8-9 अगस्त 2024 की रात ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के दोषी संजय रॉय को सोमवार को सियालदह कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है;
प.बंगाल में आरजी कर अस्पताल में 8-9 अगस्त 2024 की रात ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के दोषी संजय रॉय को सोमवार को सियालदह कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। इससे दो दिन पहले अदालत ने 18 जनवरी को संजय को दोषी ठहराया था। अदालत ने इस मामले को जघन्य तो माना, लेकिन दुर्लभतम यानी रेयरेस्ट ऑफ द रेयर नहीं माना, इसलिए दोषी को मृत्युदंड न देकर मरने तक उम्रकैद दी गई है। हालांकि प.बंगाल सरकार ने अब कलकत्ता हाईकोर्ट में उम्रकैद को सही नहीं मानते हुए दोषी को फांसी देने के लिए याचिका दायर की है, जो मंजूर तो कर ली गई है, लेकिन इस पर सुनवाई कब होगी, यह अभी तय नहीं है। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा- मुझे पूरा विश्वास है कि यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामला है, जिसके लिए मौत की सजा मिलनी चाहिए।
कोर्ट यह कैसे कह सकता है कि यह दुर्लभतम मामला नहीं है? वहीं भाजपा ने भी इस मामले में उम्रकैद मिलने पर अपनी नाराजगी जताई और इसके लिए ममता सरकार को कटघरे में खड़ा किया। जबकि भाजपा यह जानती है कि मामले की पूरी जांच सीबीआई की निगरानी में हुई और उसके द्वारा पेश तथ्यों और सबूतों के आधार पर ही दोषी को सजा दी गई है। अगर भाजपा को आपत्ति दर्ज करनी ही है तो उसे फिर सीबीआई पर भी सवाल उठाने चाहिए। लेकिन ऐसा लगता है कि यहां न्याय से अधिक राजनीतिक लाभ लेने का खेल चल रहा है। वैसे पीड़िता के परिजन भी इस फैसले से निराश हैं और उन्होंने भी बड़ी अदालत में याचिका दायर करने का फैसला किया है।
सियालदह अदालत ने दोषी को सजा के साथ-साथ पीड़िता के परिवार को मुआवजा देने का भी आदेश दिया है। अदालत ने डॉक्टर की मौत के लिए 10 लाख और बलात्कार के लिए 7 लाख मुआवजा तय किया। इस दौरान कोर्ट में मौजूद ट्रेनी डॉक्टर के माता-पिता ने हाथ जोड़कर कहा कि हमें मुआवजा नहीं, न्याय चाहिए। इस पर जज ने कहा- मैंने कानून के मुताबिक यह मुआवजा तय किया है। आप इसका इस्तेमाल चाहे जैसे कर सकते हैं। इस रकम को अपनी बेटी के बलात्कार और हत्या के मुआवजे के तौर पर मत देखिए।
बात सही है कि इस जघन्य अपराध का कोई मुआवजा तय ही नहीं हो सकता, फिर भी अदालत ने कानून के दायरे में जो उचित था, वैसा फैसला सुनाया। पीड़िता के माता-पिता ने यह दावा भी किया है कि जांच ठीक से नहीं हुई है। कई लोगों को बचाया गया है। इस बारे में अदालत ने भी पुलिस और अस्पताल के रवैये की आलोचना की है। अस्पताल की तरफ से घटना की जानकारी देने में देर की गई और उसके बाद पुलिस ने केस दाखिल करने में देर की। दो पुलिसकर्मियों के बयान के आधार पर अदालत ने टिप्पणी की, 'इस बात में कोई शक नहीं कि अधिकारियों द्वारा ये कोशिश की जा रही थी कि इस मौत को आत्महत्या दिखाया जाए ताकि अस्पताल पर कोई बुरा असर न पड़े। जज ने अपने फैसले में कहा, चूंकि जूनियर डॉक्टरों ने विरोध करना शुरू कर दिया था, इसलिए ये 'ग़ैर क़ानूनी सपना' पूरा नहीं हो पाया।
अदालत की यह टिप्पणी काफी गंभीर है, क्योंकि समाज में अनेक महिलाएं ताउम्र केवल इसलिए नाइंसाफी का शिकार बनी रहती हैं क्योंकि किसी न किसी वजह से दोषी को बचाने या मामले को दबाने की कोशिश की जाती है। इसमें अगर राजनीति का खेल शुरु हो जाता है, तब तो बात और बिगड़ जाती है। आर जी कर मामले में ही देश ने देखा कि किस तरह भाजपा ने इसे ममता बनर्जी सरकार पर निशाना साधने के लिए इस्तेमाल किया। इससे पहले निर्भया मामले में भी भाजपा का रवैया ऐसा ही था। लेकिन कठुआ, हाथरस, उन्नाव जैसे मामलों में भाजपा का रवैया दूसरा ही रहा। मणिपुर की घटना पर तो अंतरराष्ट्रीय मंचों से आलोचना हुई, लेकिन फिर भी भाजपा की तथाकथित डबल इंजन सरकार नाकारा साबित हुई। यही हश्र महिला पहलवानों के संघर्ष का भी रहा, जो यौन उत्पीड़न की शिकायत करती रहीं, मगर आरोपी सत्ताश्रय में मजे से रहे।
आर जी कर मामले के दोषी संजय रॉय को चाहे मरने तक जेल में रहना पड़े या उसे बड़ी अदालतों से मौत की सजा मिल जाए, इससे देश में महिलाओं के साथ अत्याचार रुकेगा, इसका दावा नहीं किया जा सकता। निर्भया मामले में भी दोषियों को फांसी की सजा हुई, लेकिन इससे महिलाओं के लिए असुरक्षित और नकारात्मक माहौल में कोई बदलाव नहीं आया। इसलिए केवल कानूनी या अदालती कार्रवाई पर्याप्त नहीं है, इसमें हर तरह से सजगता चाहिए।
आर जी कल मामले में ही सीबीआई ने आरोपपत्र में कहा कि संजय रॉय को बलात्कार या हत्या का कोई पछतावा नहीं है, उसका व्यवहार जानवरों जैसा था। कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संजय रॉय की कई शादियां भी हो चुकी हैं। यानी उसके चरित्र के सारे दाग अब दिखलाए जा रहे हैं। लेकिन इसी संजय रॉय ने 2019 में कोलकाता पुलिस में डिजास्टर मैनेजमेंट ग्रुप के लिए वॉलंटियर के तौर पर काम करना शुरू किया था, तब उसकी पूरी पृष्ठभूमि क्यों नहीं खंगाली गई, यह बड़ा सवाल है। अगर तब उसकी असलियत पता चल जाती तो शायद एक लड़की की जान बच जाती। क्योंकि पुलिस के लिए स्वयंसेवी के तौर पर काम करने के बाद संजय वेलफेयर सेल में चला गया। और अपने संपर्कों की बदौलत उसने कोलकाता पुलिस की चौथी बटालियन में घर भी ले लिया। इस घर की वजह से ही आरजी कर अस्पताल में उसे नौकरी मिली। बताया जाता है कि वह अक्सर अस्पताल की पुलिस चौकी पर तैनात रहता था, जिससे उसे सभी विभागों में आने-जाने की छूट मिली थी।
संजय रॉय जैसे कितने ही दरिंदे इंसानों की शक्ल में हमारे आसपास घूमते रहते हैं, जिन्हें समाज या प्रशासन की लापरवाही के कारण अपराध करने की छूट मिल जाती है।