लोकतंत्र को कुचलने में गोडसे का रवैया
देश में दलितों को अधिकारसंपन्न होते देख सवर्णों का एक बड़ा तबका किस कदर आहत है;
देश में दलितों को अधिकारसंपन्न होते देख सवर्णों का एक बड़ा तबका किस कदर आहत है, इसका बड़ा उदाहरण सोमवार को सामने आया, जब भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की ओर एक वकील ने जूता फेंक दिया। इस जगह पर हमने कल भी लिखा था कि भारत की आजादी के बाद से किसी मुख्य न्यायाधीश का या न्यायपालिका का इस तरह अपमान इससे पहले कभी नहीं हुआ। उस आरोपी वकील को पुलिस ने फौरन पकड़ लिया। लेकिन यह इस घटना का पटाक्षेप नहीं था। मुख्य न्यायाधीश गवई ने आरोपी पर किसी तरह का मामला दर्ज करने से साफ इंकार कर दिया और यह भी कहा कि वे ऐसी घटनाओं से विचलित नहीं होते हैं, जिसके बाद आरोपी को छोड़ दिया गया। अब उसका बाकायदा साक्षात्कार समाचार एजेंसी एएनआई ने लिया, जिसमें राकेश किशोर ने खुलकर कहा कि उसे इस बात का कोई पछतावा नहीं है। बल्कि इस कृत्य को भगवान का आदेश उसने बता दिया।
भारतेंदु हरिश्चंद्र होते तो भारत दुर्दशा का दूसरा हिस्सा लिखते और फिर कहते कि हा हा भारत दुर्दशा न देखी जाई। लेकिन भारत की ऐसी दुर्दशा होते देखना शायद जनता की मजबूरी बन चुकी है। जहां प्रधानमंत्री खुद को अवतरित बताएं, पूर्व मुख्य न्यायाधीश कहें कि उन्होंने राम मंदिर पर फैसला देवी की मूर्ति के सामने बैठकर लिया और एक आरोपी कहे कि देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर बैठे व्यक्ति पर जूता उछालने के लिए उसे भगवान ने कहा है।
जब सब कुछ भगवान भरोसे ही चल रहा है, तो फिर सरकार की भी क्या जरूरत है। वैसे भी सरकार अपना दायित्व पूरा करते नहीं दिख रही है। जिस घटना पर विपक्ष ने फौरन निंदा करते हुए प्रतिक्रिया दे दी, उस पर प्रधानमंत्री ने कई घंटे सिर्फ ये कहने में लगा दिए कि मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने की घटना से हरेक भारतीय आहत है। क्या मोदीजी का सूचना तंत्र वाकई इतना कमजोर है कि उन्हें हर बड़ी घटना पर प्रतिक्रिया देने में कई घंटे लग जाते हैं। पुलवामा हमला, पहलगाम हमला दोनों आतंकी घटनाओं में श्री मोदी ने देर से जवाब दिया और अब न्यायपालिका पर हमले में उनका रवैया ढीला ढाला रहा। इस बीच सोशल मीडिया पर बहुत से दक्षिणपंथी लोगों ने श्री गवई के लिए अपमानजनक ट्वीट करने शुरु कर दिए। कुछ यूट्यूबर्स का सितंबर आखिरी में रिकार्ड किया एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वे खुलकर जस्टिस गवई के लिए अभद्र टिप्पणियां कर रहे हैं और परोक्ष तौर पर हिंदुओं से आह्वान कर रहे हैं कि उन पर हमला हो। इस वीडियो में तीन कथित पत्रकार चर्चा कर रहे हैं, जिनमें एक कहता है कि, 'मैं एक गांधीवादी हंू। मैं हिंसा का समर्थन नहीं करता। अगर मैं करता, तो मैं कहता, 'देखो, अगर गवई जी झगड़ा करते हैं, तो वे कचहरी में रहते हैं, और वहां हिंदू वकील हैं। कम से कम एक हिंदू वकील को गवई जी का सिर पकड़कर दीवार पर ज़ोर से मारना चाहिए, ताकि उसके दो टुकड़े हो जाएं। लेकिन मैं हिंसा का बिल्कुल समर्थन नहीं करता।' वहीं दूसरा पत्रकार ने जस्टिस गवई की कार को घेरने का भी सुझाव दिया था। और इस चर्चा में यह बात भी कही गई कि '2 अक्टूबर आ रहा है। गोडसे ने जो किया वह तुम्हारी क्षमता से परे है, लेकिन तुम गांधी बन सकते हो। गवई के चेहरे पर थूकने की आईपीसी की धारा के तहत अधिकतम सज़ा क्या है? छह महीने से ज़्यादा नहीं? बस इतना ही। हिंदू तो ऐसा भी नहीं कर सकते?'
यह पूरी चर्चा सीधे तौर पर मुख्य न्यायाधीश के लिए हिंसात्मक विचारों का प्रसार कर रही है, जो संविधान और न्यायपालिका दोनों की अवमानना के समान है, लेकिन आश्चर्य है कि यह वीडियो अब भी सोशल मीडिया पर घूम रहा है। इसी तरह आरोपी वकील राकेश किशोर, जिसे कायदे से सलाखों के पीछे होना चाहिए था, वह न केवल अपने कृत्य को सही बता रहा है, बल्कि अदालत में फैसलों को धार्मिक नजरिए से देखने का आग्रह भी कर रहा है। एएनआई को दिए साक्षात्कार में राकेश किशोर ने कहा कि 'मैं बहुत ही ज्यादा आहत हुआ कि चीफ जस्टिस की कोर्ट में किसी ने पीआईएल दाखिल की थी और गवई साहब ने उसका पहले तो मजाक उड़ाया। लेकिन दूसरे धर्मों के मामले में ऐसा नहीं होता। जैसे हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर एक विशेष समुदाय का कब्जा है। जब उसको हटाने की कोशिश की गई तो सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल पहले स्टे लगा दिया। यह आज तक लगा हुआ है। ऐसे ही नुपूर शर्मा का जब मामला आया तो कोर्ट ने कह दिया कि आपने माहौल कर दिया। लेकिन जब हमारे सनातन धर्म से संबंधित कोई मामला आता है तो उसके ऊपर वो जरूर कोई ना कोई ऐसा आर्डर पास करते हैं। इन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।' राकेश किशोर ने कहा कि ये सब क्यों करना पड़ा ये जरूर सोचने वाली बात है। पूरे देश को ये चिंतन करने वाली बात है। मैं भी कोई कम पढ़ा-लिखा नहीं हूं और गोल्ड मेडलिस्ट हूं। ऐसा नहीं है कि मैं कोई नशे में था और मैंने कोई गोलियां खा रखी थीं। उन्होंने एक्शन किया और ये मेरा रिएक्शन था। ना ही मुझे कोई अफसोस है कि क्या हुआ और क्या नहीं।'
ये भाषा बिल्कुल गोडसे वाली है, जिसमें अदालत में गोडसे गांधीजी की हत्या के पीछे न केवल कारण दे रहा है, बल्कि उसे सही भी ठहरा रहा है। गोडसे को महान बताने वाले लोग उन्हीं कारणों को गिनाते हैं। अब यही रवैया न्यायपालिका के अपमान, मुख्य न्यायाधीश पर हमले पर भी अपनाया जा रहा है।