ललित सुरजन की कलम से- विवेकानन्द और रायपुर
'विवेकानन्द रायपुर आए थे या नहीं आए थे इसकी अगर कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है तो उसे हाशिए पर रखकर उनके कृतित्व पर ध्यान लगाना बेहतर होगा;
'विवेकानन्द रायपुर आए थे या नहीं आए थे इसकी अगर कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है तो उसे हाशिए पर रखकर उनके कृतित्व पर ध्यान लगाना बेहतर होगा। अपनी आध्यात्मिक प्यास मिटाने के लिए मनुष्य ईश्वर और देवताओं की शरण में जाता है, किन्तु विवेकानन्द ईश्वर नहीं, एक जीते-जागते व्यक्ति थे जिन्होंने मात्र उन्चालीस वर्ष की आयु पाई, लेकिन उतने में ही भारत के अलावा विश्व के अनेक देशों को अपनी मेधा से चमत्कृत कर दिया।'
'आज हम विवेकानन्द का स्मरण करें तो उनके दो रूप देखने में आते हैं। एक ओर कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द शिला स्मारक और इसके अलावा विवेकानन्द के नाम पर स्थापित अनेकानेक संगठन व उपक्रम हैं जिनके सूत्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हाथों हैं। ये संस्थाएं एक राजनीतिक दृष्टिकोण लेकर स्वामी विवेकानन्द की एक नयी छवि निर्मित करने में लगी हुई हैं। नेहरू युवा केन्द्र के अध्यक्ष ने तो बहुत स्पष्ट रूप से कहा है कि वे नेहरू के बजाय विवेकानन्द को युवाओं का आदर्श बनाकर स्थापित करना चाहते हैं।
ये लोग इस तरह स्वामी विवेकानन्द की वह खंडित छवि प्रस्तुत कर रहे हैं, जो हिन्दुत्व की अवधारणा के अनुकूल पड़ती है। किन्तु विवेकानन्द का एक दूसरा रूप भी है जो मुझ जैसे करोड़ों लोगों के मन में हैं। हम उन्हें रामकृष्ण परमहंस के पट्टशिष्य के रूप में देखते हैं, महान लेखक रोम्या रोलां द्वारा लिखी गयी जीवनी के चरितनायक के रूप में देखते हैं और उनकी एक पूर्ण छवि उनके विचारों के माध्यम से अपने मानसपटल पर उत्कीर्ण करते हैं।'
'प्रसिद्ध लेखक शंकर जिन्होंने कितने अनजाने तथा चौरंगी जैसे उपन्यास लिखे हैं उन्होंने विशद अनुसंधान के बाद विवेकानन्द की 'जीवनी अनचीन्हा अजाना विवेकानन्द' शीर्षक से लिखी है जिसका अंग्रेजी अनुवाद द मंक एज मैन (व्यक्ति के रूप में साधु) शीर्षक से हुआ है। यह पुस्तक स्वामीजी के बहुवर्णी जीवन के विभिन्न आयामों से हमें परिचित कराती हैं।'
(देशबन्धु में 14 जनवरी 2016 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2016/01/blog-post_13.html