ललित सुरजन की कलम से- इंदिरा गाँधी: एक प्रकृतिमय जीवन
'मॉरीस मैटरलिंक बेल्जियन लेखक थे जिन्हें 1911 में साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार मिला था;
'मॉरीस मैटरलिंक बेल्जियन लेखक थे जिन्हें 1911 में साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार मिला था। उनकी किताब है- द लाइफ ऑफ द बी याने मधुमक्खी का जीवन। यह पुस्तक नेहरूजी ने नैनी जेल के कारावास के दिन बिताते हुए दिसंबर 1930 में इंदिरा जी को भेजी थी जब वे मात्र तेरह वर्ष की थीं। इस पुस्तक का उनके ऊपर गहरा असर पड़ा।
उन्होंने मैटरलिंक की अन्य किताबें भी पढ़ीं; फिर पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों के बारे में उन्होंने अपने पिता की सलाह पर एक के बाद एक किताबें पढऩा शुरू किया। 1932 में एक साल के दौरान मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में उन्होंने प्रकृति से संबंधित कोई साठ किताबें पढ़ डाली थीं। याने हर हफ्ते एक किताब से भी अधिक। जयराम रमेश इंदिरा जी के इस प्रकृति प्रेम का अध्ययन करते हुए कुछ उल्लेखनीय तथ्य सामने रखते हैं।'
'मसलन 1972 में स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम में मानवीय पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र का पहला अधिवेशन आयोजित हुआ। इसमें मेजबान देश के अलावा सिर्फ इंदिरा गांधी को ही मंच से बोलने का अवसर दिया गया। उनके व्याख्यान की दूर-दूर तक बहुत चर्चा हुई उनके व्याख्यान का एक महत्वपूर्ण अंश इस प्रकार है- सबसे जरूरी और बुनियादी सवाल विश्व शांति का है। आधुनिक युद्ध कौशल से अधिक गैरजरूरी और कुछ नहीं है। जो हथियार बन रहे हैं वे न सिर्फ मारते हैं बल्कि जिंदगियों को अपाहिज कर देते हैं, उनको भी जो गर्भस्थ हैं, इनसे बढ़कर विनाशकारी और कुछ नहीं है। ये धरती में जहर घोलते हैं, चारों तरफ कुरूपता, विध्वंस और हताशा फैलाते हैं। क्या पर्यावरण से संबंधित कोई भी परियोजना युद्ध के माहौल में बच सकती है?'
(अक्षर पर्व 2017 अंक की प्रस्तावना)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2017/11/blog-post_10.html