देश में धमाका, मोदी जन्मदिन के जश्न में

सोमवार को दिल्ली के व्यस्ततम इलाकों में से एक लालकिले के पास एक कार बम धमाका हुआ;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-11-11 22:06 GMT

सोमवार को दिल्ली के व्यस्ततम इलाकों में से एक लालकिले के पास एक कार बम धमाका हुआ, जिसमें कम से कम 13 लोगों की जान चली गई। हालांकि डर है कि हताहतों की संख्या बढ़ सकती है, क्योंकि शाम के समय लालकिला मेट्रो के पास हजारों लोगों की आवाजाही रहती है और विस्फोट वहीं हुआ है। बहरहाल, पुलवामा, पहलगाम जैसे आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि दिल्ली कार विस्फोट के लिए जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा और उन्हें न्याय के कटघरे में लाया जाएगा। गौर करने वाली बात ये है कि प्रधानमंत्री ने ये दावा भारत से नहीं पड़ोसी देश भूटान की जमीन से किया है। मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी की भूटान यात्रा पहले से तय थी। हालांकि यहां जीवन-मरण के कठिन सवाल जैसी कोई स्थिति नहीं थी कि ये यात्रा टाली नहीं जा सकती थी। लेकिन प्रधानमंत्री की प्राथमिकताएं क्या हैं, यह देश आज तक समझ ही नहीं पाया है।

पुलवामा हुआ तब प्रधानमंत्री जिम कार्बेट के जंगलों में शूटिंग कर रहे थे, पहलगाम हुआ तब वे सऊदी अरब में अपना स्वागत करवा रहे थे। हालांकि दौरा बीच में छोड़कर श्री मोदी लौटे थे, लेकिन तुरंत कश्मीर नहीं गए थे। मणिपुर तो वे करीब ढाई साल बाद गए और अब जबकि दिल्ली में धमाका हुआ और प्रधानमंत्री दिल्ली में ही थे, तो वे अगली सुबह भूटान चले गए। वहां जाकर अब वे पीड़ितों को न्याय देने की बात कर रहे हैं और ये भी कह रहे हैं कि बहुत भारी मन से यहां आया हूं और पीड़ितों का दुख समझता हूं, आदि, आदि। लेकिन इतना ही मन भारी था तो दौरा रद्द कर देते। बता दें कि भूटान के चौथे राजा जिग्मे सिंग्मे वांगचुक के 70वें जन्मदिन समारोह में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री गए हुए हैं। इस दौरान वे ग्लोबल पीस प्रेयर यानी विश्वशांति के लिए प्रार्थना समारोह का भी हिस्सा बनेंगे। ऐसी ही परिस्थितियों के लिए क्रूर हास्य जैसे शब्द रचे गए हैं कि देश आतंकवाद से पीड़ित है और प्रधानमंत्री विदेश जाकर विश्वशांति की प्रार्थना कर रहे हैं। हालांकि सरकार का कहना है कि दोनों देशों के बीच ऊर्जा साझेदारी को मजबूत करने के उद्देश्य से श्री मोदी भूटान गए हैं। प्रधानमंत्री वहां पुनात्सांगचू-दो जलविद्युत परियोजना का उद्घाटन करेंगे, इसे भारत-भूटान ऊर्जा साझेदारी का अहम पड़ाव माना जा रहा है। जानकारी के लिए बता दें कि इसी साल सितम्बर में ही गौतम अडानी की कंपनी अडानी पावर और भूटान की बिजली बनाने वाली सरकारी कंपनी ड्रुक ग्रीन पावर ने 570 मेगावाट की वांगचू जलविद्युत परियोजना पर समझौता किया है, जिसमें लगभग 6000 करोड़ रुपये का निवेश हो रहा है। अब पुनात्सांगचू और वांगचू परियोजनाओं का आपस में कोई संबंध है या नहीं, इस बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है। यह महज संयोग हो सकता है कि अडानी समूह के बाद अब भारत सरकार भी भूटान में ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश कर रही है।

हालांकि जब सरकार में हरेक विभाग के लिए मंत्रालय हैं और ऊर्जा मंत्री भी विद्यमान हैं, तो वे भी इस समझौते के लिए जा सकते थे। देश की आपदा में प्रधानमंत्री यहीं रुककर हालात का जायजा लेते तो बेहतर था। लेकिन प्रधानमंत्री ट्रेन को हरी झंडी दिखाने से लेकर नोटबंदी की घोषणा, मन की बात, पुल, हाईवे, एयरपोर्ट के शिलान्यास जैसे तमाम वो सारे काम कर रहे हैं, जिनमें प्रचार होता है, उनकी तस्वीर और वीडियो सामने आते हैं। चुनाव प्रचार तो वे बारह महीने, चौबीसों घंटे करते ही हैं। और जरूरी बैठकें लेने का सारा काम गृहमंत्री अमित शाह करते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के वक्त जरूर प्रधानमंत्री ने बैठक ली थी, लेकिन उसके भी वीडियो और तस्वीरें प्रसारित की गई थीं, जबकि ये सारे काम जितने एकांत में हो, रणनीतिक तौर पर उतना बेहतर रहता है।

दिल्ली धमाके के बाद भी मंगलवार को अमित शाह ने उच्च स्तरीय बैठक ली है, हालांकि अब तक कायदे से उन्हें इस्तीफे की पेशकश करनी चाहिए थी। उनके गृहमंत्री रहते तीन-चार बड़े आतंकी हमले हो चुके हैं। 10 नवंबर 2025 से पहले 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में 26 लोगों की आतंकियों ने हत्या की, 9 जून 2024 को जम्मू-कश्मीर के रियासी में हिंदू तीर्थयात्रियों पर हमला हुआ, जिसमें 9 लोग मारे गए, 29 अक्टूबर 2023 को एर्नाकुलम में धमाके में 3 लोग मारे गए थे। 1-2 जनवरी 2023 को राजौरी, जम्मू-कश्मीर में हमले में 7 लोगों की जान गई। 12 जून 2019 को अवंतीपुरा, जम्मू-कश्मीर में हमले में 6 लोग मारे गए थे। इसके अलावा मणिपुर तो दो साल से अधिक वक्त तक हिंसाग्रस्त रहा और उसमें कितने लोग मारे गए। नक्सली हमलों में कई जानें गईं, इन सबका हिसाब तो यहां रखा भी नहीं गया है। लेकिन ये सब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की नाकामी को दिखाने के लिए काफी हैं।

पाठकों को याद होगा कि 2016 में जब नोटबंदी की गई थी तो प्रधानमंत्री ने कहा था कि इससे आतंकवाद पर भी लगाम लगेगी। हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ, इसके सबूत ऊपर दिए गए आंकड़े ही दे रहे हैं। अभी 8 नवंबर को नोटबंदी के 9 साल पूरे हुए हैं और अब तो सरकार इसका जिक्र भी जरूरी नहीं समझती। क्योंकि सब जानते हैं कि यह न केवल गलत फैसला था, बल्कि देश के लिए काफी हद तक घातक फैसला भी साबित हुआ। प्रधानमंत्री ने न इस गलती की जिम्मेदारी ली, न आतंकी हमलों को रोकने के लिए उनका गंभीर रवैया नजर आ रहा है। चेहरे की भाव भंगिमा बदलकर कुछ कड़े शब्दों में भाषण दे देने से आतंकवाद जैसी गंभीर समस्याएं नहीं सुलझेंगी। उनके लिए दीर्घकालिक नीतियां बनानी पड़ती हैं जिसमें विशेषज्ञों की सलाह से काम किया जाता है। लेकिन यहां तो आतंकवाद का मामला है, तो अब भाजपा नेताओं को हिंदू-मुसलमान करने का एक और मौका मिल गया है।

बहरहाल, अब देखना होगा कि मोदी सरकार अपनी इस नाकामी पर कौन से बहाने का पर्दा डालती है। हम तो उम्मीद ही कर सकते हैं कि पीड़ितों को सच में न्याय मिले और देश का अमन-चैन बना रहे।

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