उपराष्ट्रपति पद और विचारधारा का चुनाव

मोदी सरकार की किसी भी मामले में मनमानी अब विपक्ष चलने नहीं देगा, इसका एक और उदाहरण सामने आ चुका है;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-08-19 20:17 GMT

मोदी सरकार की किसी भी मामले में मनमानी अब विपक्ष चलने नहीं देगा, इसका एक और उदाहरण सामने आ चुका है। 9 सितम्बर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी सुदर्शन रेड्डी को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। गैर राजनैतिक पृष्ठभूमि से आने वाले श्री रेड्डी का मुकाबला एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन से होगा। जो इस समय महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। उससे पहले दो बार सांसद रह चुके हैं। तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष पद को भी संभाल चुके हैं। सी पी राधाकृष्णन के सुदीर्घ राजनैतिक अनुभव और भाजपा के लिए एकनिष्ठता को देखते हुए ही नरेन्द्र मोदी ने उनका नाम उपराष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ाया। लेकिन इसके साथ एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि अगले साल होने वाले तमिलनाडु चुनाव में भाजपा सी पी राधाकृष्णन के नाम को भुनाना चाहती है। तमिलनाडु में भाजपा का जनाधार है ही नहीं और एआईएडीएमके के कारण जो थोड़ी बहुत पैठ थी, वो भाषायी विवाद से प्रभावित हो चुकी है। डीएमके की मजबूती भाजपा की तमिलनाडु में उम्मीदों को पूरा नहीं होने दे रही है। ऐसे में तमिलनाडु से उपराष्ट्रपति बनाकर भाजपा ने बड़ा दांव चलने की तैयारी कर ली थी।

भाजपा को खुशफहमी थी कि विपक्ष थोड़ी बहुत ना नुकुर के बाद सी पी राधाकृष्णन के नाम पर हामी भर देगा। लेकिन विपक्षी दलों के नेताओं से विचार विमर्श के बाद मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बी सुदर्शन रेड्डी के नाम की घोषणा की। खरगे ने कहा कि सुदर्शन रेड्डी के नाम पर सर्वसम्मति से सहमति बनी। इंडिया ब्लॉक की बैठक में श्री रेड्डी के नाम पर मुहर लगी थी। इसके साथ कांग्रेस अध्यक्ष ने एक जरूरी बात कही कि यह विचारधारा की लड़ाई है। संदेश स्पष्ट है कि अब विचारधारा की लड़ाई को किसी भी तरीके विपक्ष छोड़ेगा नहीं, फिर चाहे वह संवैधानिक पद ही क्यों न हो।

दरअसल इंडिया गठबंधन ने सुदर्शन रेड्डी को उतारकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह संविधान, न्यायपालिका और पारदर्शिता के पक्षधर चेहरे को आगे रख रहा है। विपक्ष का मानना है कि श्री रेड्डी की साफ-सुथरी छवि और न्यायिक अनुभव उन्हें उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद के लिए उपयुक्त उम्मीदवार बनाता है। सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद बी सुदर्शन रेड्डी को गोवा का पहला लोकायुक्त नियुक्त किया गया था, जहां उन्होंने ईमानदार और सख्त छवि वाले अधिकारी के रूप में काम किया। भ्रष्टाचार के मामलों में उन्होंने बिना दबाव के जांच की और पारदर्शिता की पैरवी की। इसलिए उनसे उम्मीद बंधी है कि अगर वे उपराष्ट्रपति बनते हैं तो फिर बिना भेदभाव के कार्य करेंगे। जबकि सी पी राधाकृष्णन ने उम्मीदवारी घोषित होने के बाद जो आभार जताया है, उसमें नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, जे पी नड्डा सबके लिए बार-बार सम्मानित और प्रिय लिख कर बता दिया कि अगर वे उपराष्ट्रपति बनते हैं तो भाजपा की तरफ झुकने से खुद को बचाना उनके लिए कठिन होगा।

बहरहाल, देश में अब बिहार चुनाव से पहले उपराष्ट्रपति पद के चुनाव में एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच मुकाबला होगा। वैसे भारत के संसदीय इतिहास में उपराष्ट्र्रपति पद के लिए राजनैतिक दांव-पेंच बहुत कम देखने मिले। अमूमन सत्ता और विपक्ष की सहमति से एक ऐसा नाम तय कर लिया जाता था, जिसे संविधान का ज्ञान हो, संवैधानिक मर्यादाओं का ख्याल हो और उपराष्ट्रपति पद की गरिमा के अनुरूप दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जो कार्य कर सके। मोदी सरकार के आने के बाद यह परंपरा टूटने लगी। पिछले बार जगदीप धनखड़ और मार्गरेट अल्वा के बीच चुनाव हुआ था, जिसमें श्री धनखड़ जीत गए थे। लेकिन उनके कार्यकाल में कई किस्म के विवाद खड़े हुए। नौबत तो ऐसी आ गई थी कि पिछले साल दिसंबर में श्री धनखड़ पर पक्षपात के गंभीर आरोप लगाते हुए विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस तक दे दिया था। हालांकि अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गया, लेकिन इससे यह तो जाहिर हो ही गया कि उपराष्ट्रपति पद पर बैठे जगदीप धनखड़ नीर-क्षीर विवेक की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं।

उनके कार्यकाल में राज्यसभा में अपवाद स्वरूप ही ऐसे दिन रहे होंगे, जब विपक्ष और उनके बीच बहस न हुई हो। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के आखिरी सत्रों में और तीसरे कार्यकाल में भी विपक्ष के साथ सभापति के तनाव का सिलसिला तेज हुआ। लेकिन इस बार मानसून सत्र की शुरुआत के साथ ही पहले दिन जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया। यह अब तक रहस्य ही है कि जगदीप धनखड़ कहां हैं, किस हाल में हैं, क्या वाकई उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था, जिसे कारण बताकर ही उन्होंने पद छोड़ा, अगर स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उनका इलाज किस अस्पताल में चल रहा है, घर पर चल रहा है तो उसका कोई अपडेट क्यों नहीं है, क्यों इस्तीफे के दिन से अब तक किसी भी भाजपा नेता के साथ न उनका कोई संवाद सामने आया, न मुलाकात की तस्वीरें दिखीं। नरेन्द्र मोदी ने रुखा सा ट्वीट कर उनके कार्यकाल का जिक्र किया था, स्वास्थ्य लाभ की बात कही थी, लेकिन उसका भी जवाब धनखड़जी ने नहीं दिया।

79 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ जब देश में इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति को यूं लापता होना पड़े। यह पूरा प्रकरण मोदी सरकार के कामकाज के तरीकों पर गंभीर सवाल उठाता है। लेकिन सुर्खियों का प्रबंधन मीडिया से कैसे करवाना है, यह भाजपा को खूब आता है। लिहाजा पूर्व उपराष्ट्रपति की गुमशुदगी खबर ही नहीं बनी, जबकि कपिल सिब्बल जैसे लोगों ने इस पर सवाल उठाए थे। देश में दूसरे मुद्दों की चर्चा होती रही। इस बीच सी पी राधाकृष्णन का नाम भाजपा ने तय कर लिया और फिर विपक्ष को इसकी खबर दी। इसके बाद नरेन्द्र मोदी ने विभिन्न दलों, खासकर विपक्ष से राधाकृ ष्णन का समर्थन करने की अपील की ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनका सर्वसम्मति से चुनाव हो।

अगर नाम घोषित करने से पहले भाजपा ने सर्वसम्मति बनाने की कोशिश की होती तो समझ आता, लेकिन पहले नाम तय कर लिया और फिर विपक्ष से साथ मांगा तो अब विपक्ष ने भी अपना जवाब दे दिया है। खास बात यह है कि बी सुदर्शन रेड्डी के नाम पर समूचा विपक्ष एक साथ है, जिसमें आम आदमी पार्टी भी शामिल है। राज्यसभा में संख्याबल इस समय एनडीए के पास है, लेकिन विपक्ष की चुनौती फिर भी भाजपा को परेशान कर रही है।


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