एएमयू का मैसेज : पढ़ोगे तो बढ़ोगे

समझना यही है। पढ़ाई से तकलीफ किसे है? उन्हें जो अब खुलकर बटेंगे तो कटेंगे, एक हैं सेफ जैसे हिंसक शब्दावली के नारे देने लगे हैं;

Update: 2024-11-11 02:40 GMT

- शकील अख्तर

समझना यही है। पढ़ाई से तकलीफ किसे है? उन्हें जो अब खुलकर बटेंगे तो कटेंगे, एक हैं सेफ जैसे हिंसक शब्दावली के नारे देने लगे हैं। बीजेपी की सारी राजनीति अब केवल धु्रवीकरण पर केन्द्रित हो गई है। अभी लोकसभा में उन्हें तगड़ा झटका लगा है। देश में केवल 240 सीटें आईं। जो बहुमत की संख्या 268 से 28 कम हैं। और यह पूरी 28 सीटें बीजेपी की यूपी से कम हुई हैं।

एएमयू का मुसलमानों के लिए क्या संदेश है?

उनसे शिक्षा की बातें दिखावे के लिए की जाती हैं लेकिन वास्तव में उनकी शिक्षा पर टेढ़ी नजर है। हमने जब-जब मुसलमानों की एजुकेशन पर लिखा संघ भाजपा के लोगों ने सबसे ज्यादा उल्लासित होकर प्रतिक्रियाएं दीं। वे बड़े खुश होकर बताते हैं कि हां मुसलमानों में यह कमी है और वह उसे पूरा नहीं करते। लेकिन जहां वास्तव में मुस्लिम शिक्षा दी जा रही है वह हमेशा उनके निशाने पर रहता है।

ताजा उदाहरण अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी (एएमयू ) है। सुप्रीम कोर्ट के ताजे फैसले के बाद फिर उस पर सवाल उठाना शुरू कर दिए हैं। सात जजों की बेंच ने बहुत गोलमाल फैसला दिया है। जिसे फैसला कहते हैं न्याय नहीं। तीन जजों की एक बैंच फिर बैठेगी ताकि मामला सुलगता रहे और वह बैंच यह फैसला करेगी कि यह माइनरटी संस्थान है या नहीं। फिलहाल जो चार तीन के बहुमत से फैसला हुआ है वह यह कि पहले 1967 में सुप्रीम कोर्ट ने इसका जो माइनरटी दर्जा खत्म करने का फैसला किया था उसे पलट दिया गया। माइनरटी का दर्जा बरकरार रहेगा। साथ ही एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठाया कि इसे बनाया किसने था। किनके लिए बनाया था। संसाधान किसने जोड़े थे।

जाहिर है कि इसके जवाब में एक ही नाम आएगा सर सैयद अहमद खां का। जिनके अनथक प्रयास से मुसलमानों की शिक्षा के लिए यह इदारा (संस्थान) बना। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यहां केवल मुस्लिम स्टूडेंट ही पढ़ते हों। यहां सभी धर्मों के लोग पढ़ते हैं और पढ़ाते हैं। एएमयू में हिन्दू स्टूडेंट के पढ़ने पर राही मासूम रजा का एक बड़ा अच्छा उपन्यास है- टोपी शुक्ला।

यहां से पहले ग्रेजुएट जो पास हुए वे ईश्वरी प्रसाद थे। जिन्होंने बाद में प्रसिद्ध इतिहासकार के रूप में अपना नाम किया। दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे बीजेपी के नेता साहिब सिंह वर्मा, खिलाड़ियों में मेजर ध्यानचंद, लाला अमरनाथ जैसे खिलाड़ी यहां पढ़े। यूनिवर्सिटी ने ध्यनचंद के नाम पर तो एक होस्टल बनाया है जिसमें केवल हॉकी खिलाड़ियों को ही जगह मिलती है। ध्यानचंद के छोटे बेटे वीरेन्द्र सिंह इस होस्टल में रहे हैं। संगीतकार रवीन्द्र जैन भी वहीं पढ़े हैं। और भी बहुत नाम हैं। विश्वविद्यालय में 30 प्रतिशत से ऊपर हिन्दू छात्र-छात्राएं हैं और मेडिकल लॉ में यह संख्या 40 प्रतिशत है। विदेशी स्टूडेंट भी बहुत पढ़ते है। तीन बार तो यहां महात्मा गांधी आए हैं। बताइए ऐसी और कौन सी यूनिवर्सिटी है जहां गांधी जी इतनी बार गए हों।

लेकिन हिन्दू-मुसलमान की राजनीति करने वाले एएमयू और जामिया मिलिया इस्लामिया को हमेशा टारगेट करते रहते हैं। जामिया के आईएएस कोचिंग सेन्टर में बड़ी तादाद में हिन्दू लड़के -लड़कियां तैयारी करते हैं और सिविल सर्विसेस में आते हैं। मगर हिन्दू-मुसलमान के चश्मे से देखने वाले सिर्फ वहां से निकले मुसलमान लड़के-लड़कियों की लिस्ट ही जारी करके इसे आईएएस जेहाद कहते हैं।

मुसलमानों को यही समझने की जरूरत है। कि पढ़ाई पर उन्हें नसीहतें भी दी जाएंगी और पढ़ने पर उलाहने भी। मतलब। उनका पढ़ना बर्दाश्त नहीं है। नसीहतें छोटा दिखाने के लिए दी जाती हैं। लेकिन पढ़ जाओ तो बड़ी तकलीफ होती है।

समझना यही है। पढ़ाई से तकलीफ किसे है? उन्हें जो अब खुलकर बटेंगे तो कटेंगे, एक हैं सेफ जैसे हिंसक शब्दावली के नारे देने लगे हैं। बीजेपी की सारी राजनीति अब केवल धु्रवीकरण पर केन्द्रित हो गई है। अभी लोकसभा में उन्हें तगड़ा झटका लगा है। देश में केवल 240 सीटें आईं। जो बहुमत की संख्या 268 से 28 कम हैं। और यह पूरी 28 सीटें बीजेपी की यूपी से कम हुई हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी से 61 सीटें मिली थीं। इस बार केवल 33 रह गईं। जो झटका लगा वह मूल रूप से यूपी से था। यहां का दलित पिछड़ा वर्ग बीजेपी से छिटक गया। विपक्ष के साथ चला गया। उसी को वापस लाने के लिए यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने यह नारा दिया है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि यह आज तक का सबसे हिसंक, भड़काऊ नारा है-बटेंगे तो कटेंगे।

दलित पिछड़े वर्ग से कहा गया है कि अगर हमसे अलग हुए तो यह हो जाएगा! मतलब देश में सरकार, पुलिस सुरक्षा व्यवस्था, कानून कुछ नहीं है। दस साल से सरकार हमारी है। केन्द्र में और सात साल से यूपी में मगर कटोगे!

क्या दलित पिछड़े वापस उनके साथ-साथ जाएंगे जो डरा कर उनसे वोट चाह रहे हैं? या उनके साथ जाएंगे जो कह रहें हैं जुड़ेंगे तो जीतेंगे, डरो मत!
डरा आप किससे रहे हो? सबको मालूम है। बेटियों तक के लिए कह दिया कि ले जाएंगे। जैसे मंगलसूत्र और भैंस के लिए कहा था। बेटियों को वस्तु पशु बना दिया। काल्पनिक डर। ध्रुवीकरण के लिए। डरो और वोट दो। यह इन्सान को सबसे निचले दर्जे पर रखना है। रोजगार नहीं, महंगाई को खुली छूट, सरकारी इलाज, सरकारी शिक्षा सब खत्म। केवल डर दिखाना। कि हमसे ही तुम बचे हुए हो। नहीं तो? उसके लिए जो शब्द दिया गया है, जिसे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सबसे निकृष्टतम कहा है कि- कटोगे!

कोई नहीं डरने वाला ऐसे झूठे डराने वालों से। हां देश जरूर कमजोर होगा। एक डरा हुआ देश बनाने की कोशिश से। डरा हुआ देश कैसे विश्व गुरु बन सकता है। यह उन्हें बताना चाहिए। कैसे आगे बढ़ सकता है? तरक्की कर सकता है? या वे चाहते ही नहीं हैं? तरक्की और दुनिया में सम्मानजनक स्थान? इसलिए एक डरा हुआ समाज, डरा हुआ देश बना रहे हैं।

पता नहीं! क्या चाहते हैं? वोट वोट वोट! सत्ता सत्ता केवल सत्ता! सोचना लोगों को है। और देश के बहुसंख्यकों को। यह बात हम देश के अल्पसंख्यकों को समझाने की हमेशा कोशिश करते हैं कि आपके जिताए कोई नहीं जीत रहा। न आपके हराए। इन सब के ज्यादा चक्कर में मत पड़िए। देश के बहुसंख्यकों ने ही नरेन्द्र मोदी को 240 पर रोका और योगी आदित्यनाथ को 80 में से केवल 33 दीं।

मुसलमान को इस समय केवल एक मुद्दे पर पूरा ध्यान देने की जरूरत है और वह है एजुकेशन। मार्डन एजुकेशन। शुरू हमने एएमयू से किया है और एएमयू बनाने वाले सर सैयद ने यह शिक्षा संस्थान मार्डन एजुकेशन के लिए बनाया है। हमने जो बात शुरू में लिखी कि आपकी तालीम की कमी पर वे हमला करेंगे। उपदेश भी देंगे। मगर पढ़ने भी नहीं देंगे। रिएक्शनरी फोर्सेस सबसे ज्यादा शिक्षा से घबराती हैं। दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों की शिक्षा ने ही उन्हें आगे बढ़ाया है और उनका आगे बढ़ना यथास्थितिवादियों के लिए सबसे ज्यादा तकलीफ की बात है। क्योंकि पढ़ने आगे बढ़ने के साथ ही वे सामाजिक न्याय की बात करते है और सामाजिक न्याय देना प्रतिगामियों को बिल्कुल मंजूर नहीं है। इसलिए वे दलित, पिछड़ों, आदिवासियों का ध्यान, पढ़ाई, नौकरी, सामाजिक न्याय से हटाने के लिए उनके मन में मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरते हैं। उनका असली निशाना मुसलमान नहीं है। मुसलमान के नाम का तो वे डर पैदा करते हैं। ताकि दलित पिछड़ा आदिवासी उनको वोट देता रहे और यथास्थिति में ही रहे।

सामाजिक समानता की बात नहीं करे। समरस रहे। समरसता भी संघ का गढ़ा शब्द है। समानता को कमजोर करने के लिए। रामदास अठावले बीजेपी के साथ केन्द्र में मंत्री हैं। मगर मायावती जैसे डरे हुए नहीं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा कि समरसता दलित के लिए घातक है। इसका मतलब है जैसे ऊपर से रखा जाए वैसे ही रहो। यह समानता जिसका उपयोग डॉ. आम्बेडकर करते थे उसे कमजोर करने के लिए है।

तो बीजेपी कई तरह की राजनीति करने की कोशिश कर रही है। मगर उद्देश्य एक ही है। वोट, वोट, वोट! और इसी के लिए वह दलित, पिछड़ा, आदिवासी को डरा रही है। मुसलमान के नाम से। मुसलमान क्या करे? कुछ नहीं। जो करना है वह संविधान, देश का विपक्ष और बहुसंख्यक समुदाय करेगा। उसे सिर्फ अपने विकास पर ध्यान देना है और विकास का रास्ता सिर्फ एक है। शिक्षा, शिक्षा और शिक्षा। यह एक काम उसके हाथ में है और उसे उस पर ही पूरा ध्यान लगाना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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