विधानसभा चुनाव और ईडी, सट्टा, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों की चर्चा
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर अपने चरम पर है;
- डॉ. लखन चौधरी
छत्तीसगढ़ में भाजपा कुछ आश्वस्त दिखती है कि विधानसभा चुनाव में ईडी, रेड, सट्टा, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उसके पक्ष में जरूर सकारात्मक वातावरण बनाकर जनमत को प्रभावित करेंगे। वहीं कांग्रेस और भूपेश बघेल कर्जा माफी, धान खरीदी जैसे खेती-किसानी से जुड़े कामों के दम पर एक बार फिर चुनावी वैतरणी पार करने के फिराक में दिखते हैं।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर अपने चरम पर है। इस बीच महादेव सट्टा ऐप की चर्चा इन दिनों सुर्खियों पर है। इस सट्टा ऐप ने छत्तीसगढ़ के सियासी घमासान को राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी विमर्श के केन्द्र में खड़ा कर दिया है। इसी सट्टा ऐप के संचालकों में से एक की शादी समारोह में शिरकत को लेकर बॉलीवुड के कई नामी-गिरामी चेहरों तक को ईडी का समन जारी हो चुका है। भाजपा तो खुलकर कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि इसके जाल में प्रदेश कांग्रेस और उसके नेतृत्वकर्ता बुरी तरह फंसी हुई है। इसमें कथित संलिप्तता को लेकर छत्तीसगढ़ में कई लोग गिरफ्तार किये जा चुके हैं, लेकिन अभी तक इसकी हकीकत क्या है? किसी को समझ नहीं आ रहा है।
मगर दिलचस्प यह है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में सट्टा ऐप की चर्चाएं गांव-गांव तक जा पहुंची है। भ्रष्टाचार के कई कथित कई आरोपों के बीच कांग्रेस जिस तरह से भाजपा के साथ मुकाबला कर रही है, यह दिलचस्प है। महादेव सट्टा ऐप के संचालकों द्वारा भूपेश बघेल को कथित तौर पर 508 करोड़ रुपए देने के भुगतान की बात या आरोप में कितना दम है, यह कहना बेहद कठिन है। क्या यह मसला राज्य की चुनावी बिसात की फ़िजा बदल सकती है? बड़ा सवाल, जो हजम नहीं हो रहा है कि क्या भूपेश बघेल इतने अपरिपक्वखिलाड़ी हैं जो महादेव सट्टा ऐप संचालकों से सीधे तौर पर पैसा ले सकते हैं? क्या ऐप के संचालक या मालिक इसके पक्के सबूत ईडी को दे सकते हैं? यदि ईडी के पास ठोस सबूत है तो फिर ईडी इसे जांच का विषय क्यों बता रही है? क्या ईडी की जांच से सियासत प्रभावित होगी? क्या ईडी की कार्रवाई छत्तीसगढ़ के आम जनमानस की राजनीतिक सोच में बदलाव ला सकती है? छत्तीसगढ़ के राजनीतिक गलियारों में इन दिनों भारी उठापटक और अफरा-तफरी का माहौल है।
इधर केन्द्र सरकार ने ईडी यानि प्रवर्तन निदेशालय के अनुरोध पर महादेव बेटिंग सट्टा ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया है। सवाल यह भी उठता है कि 28 फीसदी जीएसटी की आड़ में इस तरह के कारोबारों को अनुमति देना कितना उचित है? सरकार इस तरह के कार्यों को अनुमति ही क्यों देती है? इस तरह के धंधों पर प्रतिबंध लगाने में इतनी देरी क्यों की जाती है? इनके संचालक बेखौफ किस तरह दुनिया के दूसरे देशों से कारोबार चलाते हैं? और सरकारें इनका बाल भी बांका क्यों नहीं कर पाते हैं? इनके संचालकों को सरकार गिरफ्तार करके तत्काल भारत क्यों नहीं लाती है?
इस सट्टा ऐप के कुछेक संचालकों की भाजपा नेताओं के साथ साठगांठ की भी खबरें हैं। कई जानकारों का कहना है कि इससे भाजपा को फायदा के बजाय नुकसान भी हो सकता है, क्योंकि भूपेश बघेल ने इसे अपनी छवि खराब के मुद्दे से जोड़कर तत्काल कार्रवाई की मांग की है। हिन्दुत्ववादी संगठनों से जुड़े कई लोगों का मानना है कि उनके आराध्य महादेव से जोड़कर जिस तरह से गोरखधंधे का खेल चल रहा है, इसके बावजूद केन्द्र सरकार इनके संचालकों पर कार्रवाई करने में विलंब क्यों कर रही है? भाजपा सहित बहुत से सियासी जानकारों का मत है कि पिछली बार इसी तरह भूपेश बघेल को घेरने के लिए सीडी कांड जैसे मुद्दे को तूल दिया गया था, लेकिन उसका हश्र क्या हुआ? कहीं इस बार भी मामला उल्टा न पड़ जाए? लिहाजा राज्य के नेता इस मसले पर कम ही बोलते दिखते हैं।
छत्तीसगढ़ में भाजपा कुछ आश्वस्त दिखती है कि विधानसभा चुनाव में ईडी, रेड, सट्टा, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उसके पक्ष में जरूर सकारात्मक वातावरण बनाकर जनमत को प्रभावित करेंगे। वहीं कांग्रेस और भूपेश बघेल कर्जा माफी, धान खरीदी जैसे खेती-किसानी से जुड़े कामों के दम पर एक बार फिर चुनावी वैतरणी पार करने के फिराक में दिखते हैं। बहरहाल, यह देखना बेहद दिलचस्प हो सकता है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में राज्य के मतदाता किस पर भरोसा करते हैं? या किसकी गारंटी पर अपना मोहर लगाते हैं? लेकिन यह तय है कि ईडी, सट्टा, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों की बड़ी भूमिका होने के आसार कम ही लगते एवं दिखते हैं। कहा जाए कि छत्तीसगढ़ में इन मुद्दों पर भाजपा यानी विपक्ष द्वारा चुनाव लड़ा जरूर जा रहा है, लेकिन विधानसभा चुनाव में इनकी बड़ी निर्णायक भूमिका रहेगी, जिससे सत्ता और सियासत पलट सकती है; फिलहाल ऐसा लगता नहीं है।