फिर उठी विद्युत संशोधन विधेयक वापस लेने की मांग
इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल को उपभोक्ता विरोधी, किसान विरोधी, उद्योग विरोधी बताते हुए बिजली इंजीनियरों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बिल को वापस लेने की मांग दोहरायी है।;
मथुरा । इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल को उपभोक्ता विरोधी, किसान विरोधी, उद्योग विरोधी बताते हुए बिजली इंजीनियरों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बिल को वापस लेने की मांग दोहरायी है।
उप्र राज्य विद्युत परिषद अभियन्ता संघ के अध्यक्ष वीपी सिंह ने रविवार को पत्रकारों से कहा कि प्रस्तावित बिल राज्यों की प्रभुसत्ता पर अतिक्रमण है क्योंकि बिजली संविधान में समवर्ती सूची में है जिसके अन्तर्गत बिजली के मामले में राज्यों का बराबर का अधिकार है, यही कारण है कि कई राज्य सरकारों ने इस मामले में केन्द्र की मंशा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। इसे देखते हुए जरूरी हो गया है कि बिल को वापस लिया जाय और बिल के सभी विवादस्पद प्राविधानों पर चर्चा की जाए ।
उन्होने कहा कि वर्चुअल संसद में इस गंभीर मुद्दे पर उस रूप में चर्चा नही हो पाएगी जिस रूप में सामान्य संसद में होती है इसलिए ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र भेजकर मांग की है कि बिल पर तभी चर्चा की जाए जब इसके लिए संसद का विधिवत सत्र चलना संभव हो। तब तक इस बिल को ठंढ़े बस्ते में डाल दिया जाय।
सिंह ने कहा कि तामिलनाडु,केरल,तेलंगाना,आन्ध्र प्रदेश,पुडुचेरी,महाराष्ट्र,पश्चिम बंगाल,छत्तीसगढ़,बिहार और झारखण्ड समेत कई राज्यों की सरकारों ने इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 पर गहरी आपत्ति की हैं तथा सीधे प्रधानमंत्री को पत्र भेजकर आपत्ति दर्ज कराई है तथा कई राज्यों के ऊर्जा मंत्रियों ने केंद्रीय विद्युत् मंत्री को पत्र भेजकर विरोध किया है। ऐसे में जरूरी हो गया है कि इसे संसद की बिजली मामलों की स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया जाय जिससे वे इस बिल पर अपने अपने पक्ष रख सकें जो तार्किक एवं महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
उन्होने कहा कि बिल में निजीकरण एवं छूट को समाप्त करने जैसे दूरगामी प्राविधानो को भी शामिल किया गया है जिससे बिजली किसानों एवं गरीबों की पहुंच से दूर हो जाएगी। बिजली का टैरिफ, श्रेणी विशेष के उपभोक्ताओं को टैरिफ में सब्सिडी देने , राज्य नियामक आयोग के अध्यक्ष ,सदस्यों का चयन करने , उपभोक्ता के हित में महंगी बिजली के क्रय करारों को रद्द करने और निजीकरण के बजाय सार्वजानिक क्षेत्र में बिजली वितरण बनाये रखने जैसे कई बुनियादी सवाल हैं जो राज्यों के अपने अधिकार क्षेत्र में आते है। बिल के जरिये इसमें केंद्र का सीधा हस्तक्षेप हो जाएगा जो संविधान प्रदत्त संघीय ढाँचे पर अतिक्रमण है।
सिंह ने बताया कि सभी प्रांतों के मुख्यमंत्रियों को भी एक अलग से पत्र भेजकर उनसे अपील की गई है कि बिजली के मामले में राज्यों के अधिकार और उपभोक्ताओं के हित को देखते हुए वे प्रभावी भूमिका निर्वहन करें। मुख्यमंत्रियों से यह भी अनुरोध किया गया है कि वे बिल की कमियों से प्रधानमंत्री को अवगत कराते हुए उनसे बिल को वापस कराने की पहल करें।