पुलिस जांच पर कोर्ट ने उठाए सवाल
पिछले साल पूरे देश में नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन चल रहे थे. इस दौरान उत्तर पूर्व दिल्ली में अचानक ही दो समुदाय आमने—सामने आ गए. चार दिन तक दिल्ली में कानून व्यवस्था मजाक बनकर रह गई. इस दौरान करीब 50 लोगों की जान चली गई. दिल्ली पुलिस ने जांच करते हुए कई मामले दर्ज किए. लेकिन पुलिस जांच पर आज कोर्ट ने सवाल खड़े कर दिए.;
दिल्ली में एक साल पहले दो समुदाय आपस में लड़ गए थे. जिसमें 50 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी. विपक्ष ने इसे सरकार प्रायोजित बताया था. विपक्ष का आरोप था कि पुलिस ने पूरी कार्रवाई एकपक्षीय की है. एक पक्ष जो लोगों को उकसा रहा था उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. बीजेपी नेता और इस समय के केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर पर भी आरोप लगे थे लेकिन उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ. पुलिस जांच पर कोर्ट ने भी सवाल उठाए. एडिशनल सेशन जज (ADJ) विनोद यादव ने सुनवाई करते हुए कहा कि "जैसी जांच दिल्ली पुलिस ने की है, यह दुखदाई है। जब इतिहास पलटकर इसे देखेगा तो यह लोकतंत्र के प्रहरियों को दुख पहुंचाएगा। पुलिस जांच संवेदनहीन और निष्क्रिय साबित हुई है। ऐसा लगता है जैसे कॉन्स्टेबल को गवाह के तौर पर प्लांट किया गया था। यह केस करदाताओं की मेहतन की कमाई की बर्बादी है। पुलिस ने हमारी आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की है।"
पुलिस जांच और एकपक्षीय कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा "घटना की जगह पर कोई CCTV कैमरा नहीं था, जिससे यह पता लगाया जा सके कि वाकई में आरोपी वहां मौजूद थे। न इस घटना का कोई चश्मदीद गवाह है और न ही इसके कोई सबूत हैं। ऐसा लगता है जैसे पुलिस ने सिर्फ चार्ज शीट दाखिल कर के गवाहों को, तकनीकी सबूत या असली आरोपी को ढूंढने की कोशिश किए बिना केस को हल कर दिया।"
इसके साथ ही कोर्ट ने पुलिस द्वारा आरोपी बनाए गए शाह आलम (पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन के भाई), राशिद सैफी और शादाब को बरी कर दिया।