आपराधिक मुकदमा चल रहा हो तो रोकी जा सकती है कर्मचारी की ग्रेच्युटी : उच्च न्यायालय
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि आपराधिक मुकदमा चल रहा हो तो कर्मचारी की ग्रेच्युटी रोकी जा सकती है;
इलाहाबाद। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि आपराधिक मुकदमा चल रहा हो तो कर्मचारी की ग्रेच्युटी रोकी जा सकती है।
न्यायालय ने पीएसी 42 बटालियन नैनी इलाहाबाद से सेवानिवृत्त प्लाटून कमांडर शिव नारायण सिंह की ग्रेच्युटी रोकने के कमांडेन्ट के आदेश को सही माना है और याची के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले को यथाशीघ्र निर्णीत करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति अरुण टंडन तथा न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी की खंडपीठ ने शिव नारायण सिंह की विशेष अपील को खारिज करते हुए यह आदेश दिया ।
गौरतलब है कि पीएसी कमांडेन्ट ने 22 अक्टूबर 2012 के आदेश से प्लाटून कमांडर की ग्रेच्युटी रोक दी। 31अक्टूबर 2012 को वह सेवानिवृत्त होने वाले थे। विधिविरुद्ध गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप में याची पर आपराधिक मुकदमा चल रहा है। याची को मिलने वाली ग्रेच्युटी इसी आधार पर रोक दी गयी जिसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी थी। याची का कहना था कि आपराधिक मुकदमा विचाराधीन होने मात्र से ग्रेच्युटी नहीं रोकी जा सकती।
1961 की सेवा नियमावली में ग्रेच्युटी रोकने का कोई उपबन्ध नहीं है। सिविल सर्विस रेग्युलेशन पर नियमावली प्रभावी होगी।
एकलपीठ ने कमांडेंट के ग्रेच्युटी रोकने के आदेश को रेग्युलेशन के तहत मिले अधिकारों से सम्बंधित माना और याचिका खारिज कर दी जिसे विशेष अपील में चुनौती दी गयी थी।
याची अधिवक्ता का कहना था कि सेवा नियमावली में ग्रेच्युटी रोकने का उपबंध नहीं है। रेग्यूलेशन 351-ए के तहत नियमावली के विपरीत ऐसा आदेश विधि विरुद्ध है। अदालत ने कहा कि सिविल सर्विस रेग्यूलेशन और 1961 की नियमावली में कोई विरोधाभास नहीं है।
नियम 9 के तहत रेग्युलेशन 351-ए एवं कोर्ट के फैसलों को देखते हुए हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता और कहा कि आरोप गंभीर है।
जिसके आधार पर केस चल सकता है।
ऐसे में एकलपीठ के आदेश पर हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है।