ध्रुवीकरण बनाम न्याय की लड़ाई में कांग्रेस-इंडिया को बढ़त

बहुत से कयास लगाये जा सकते हैं परन्तु जब तक वे प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आ जाते तब तक उस पर कुछ कहना गैरवाजिब है;

Update: 2024-03-20 00:53 GMT

- डॉ. दीपक पाचपोर

बहुत से कयास लगाये जा सकते हैं परन्तु जब तक वे प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आ जाते तब तक उस पर कुछ कहना गैरवाजिब है लेकिन जो बातें सामने आ चुकी हैं वे बतलाती हैं कि भाजपा के पास कुछ बड़ी शक्तियां अब भी हैं जिनका इस्तेमाल चुनाव में होगा। पहली बात तो यह है कि इस बात का पर्दाफाश हो जाने के बाद भी कि भाजपा केन्द्रीय जांच एजेंसियों (प्रवर्तन निदेशालय- ईडी, आयकर व केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो- सीबीआई) का इस्तेमाल न केवल विरोधी दलों के नेताओं को डराने, अपने पक्ष में लाने तथा निर्वाचित राज्य सरकारों को गिराने में करती है।

एक तरफ तो भारत अपनी सबसे बड़ी पंचायत के लिये डेढ़-दो महीने में फैसला लेने जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ थोड़ी बहुत आंतरिक हलचलों के साथ देश की राजनैतिक पार्टियां अब साफ तौर पर दो धु्रवों में बंट चुकी है। सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में तीन दर्जन से अधिक दल नेशनल डेमोक्रेटिक एलाएंस (एनडीए) के हिस्से बनकर चुनाव लड़ेंगे तो उसके खिलाफ इंडिया गठबन्धन भी चुनावी मोर्चे पर डट गया है। उसके सहयोगियों की संख्या एनडीए के मुकाबले कम ज़रूर है लेकिन संसदीय ताकत व मत प्रतिशत की दृष्टि से देखें तो वह कहीं अधिक मजबूत मालूम दिखलाई देता है।

आंकड़ों के विश्लेषक साफ समझ गये हैं कि एनडीए के पास अगर देश का 40 प्रतिशत है तो वहीं इंडिया तकरीबन 60 फीसदी वोटों का मालिक है। इस समूह में उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक के ज्यादातर राज्यों के कद्दावर नेता हैं। इनमें कुछ मुख्यमंत्री हैं तो कुछ पूर्व सीएम। जो सत्ता में नहीं हैं, वे अपने राज्यों में या तो प्रमुख विपक्षी दल हैं या फिर कद्दावर नेता। दूसरी ओर एनडीए एक ही दल यानी भाजपा तथा एकमेव चेहरे के ईर्द-गिर्द सिमटा है- वह हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। इस दल एवं मोदी के अलावा किसी और साथी संगठन या उनके नेताओं का वजूद तक नज़र नहीं आता- एकाध को छोड़कर। इंडिया में स्पष्टता है- जहां इकठ्ठे लड़ रहे हैं वहां; जहां नहीं लड़ रहे हैं वहां भी।

कागजों में ताकत तो इंडिया की बड़ी दिखती है और रविवार को मुंबई के शिवाजी पार्क में हुई विशाल रैली भी यही बताती है जो कि राहुल गांधी की 6300 किलोमीटर की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' के समापन अवसर पर आयोजित की गयी थी। इसमें इंडिया के ज्यादातर सहयोगी दलों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। अभूतपूर्व जन उपस्थिति तो थी ही। तुलना करने के लिये ही सही, यह याद नहीं पड़ता कि इंडिया की बेंगलुरु बैठक के जवाब में आनन-फानन में दिल्ली में आयोजित की गयी बैठक के बाद एनडीए के सदस्य दोबारा कब मिले हैं। उनका न्यूनतम साझा कार्यक्रम, सीटों का बंटवारा आदि के बारे में भी किसी बैठक के होने के समाचार नहीं मिलते। वहां भाजपा सर्वेसर्वा है और वह जो तय करेगी वहीं अन्य दलों को भी मानना है। एक बिहार के मुख्यमंत्री व जनता दल यूनाइटेड के सीएम नीतीश कुमार के अलावा जो भी नेता एनडीए में हैं वे पराजित व विभाजित दलों के ही हैं। उदाहरणार्थ, महाराष्ट्र के शिवसेना शिंदे गुट या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अजित पवार गुट के लोग। एक तीसरा वर्ग भी है, जिसमें बेशक कद्दावर नेता हैं व जिनका झुकाव एनडीए की ओर हो सकता है लेकिन वे जुड़ने में संकोच कर रहे हैं जो परिस्थितियों को बयां करने के लिये काफी है।

तो फिर मोदी आखिर किस बिना पर भाजपा के 370 एवं एनडीए के सम्मिलित रूप से 400 पार का नारा दे रहे हैं? क्या यह कोई दिवा स्वप्न है या केवल अपने समर्थकों-कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिये ऐसा कह रहे हैं? विशेषकर यह जान लेने के बाद कि उनका सबसे बड़ा राममंदिर का मसला चल नहीं पाया और चुनाव के ठीक पहले जिस प्रकार से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लाया गया है और वह भी कोई रंग जमाता हुआ नहीं दिख पड़ रहा है, तो क्या यह माना जाये कि मोदी व भाजपा का तरकश तीरों से खाली हो चला है? सम्भवत: ऐसा नहीं है। जिस प्रकार से शिवाजी पार्क की रैली में राहुल द्वारा एक अदृश्य शक्ति की बात को मोदी ने लपक कर उस पर धार्मिक मुलम्मा चढ़ाने की नाकाम व हास्यास्पद कोशिश की, उससे साफ है कि अब भी मोदी के पास ध्रुवीकरण के अलावा कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। अगर ऐसा है तो क्या चुनाव के ठीक पहले देश कोई ऐसा बड़ा घटनाक्रम देखेगा जिसमें भाजपा के खिसकते वोट बैंक को रोकने की ताकत होगी? या फिर पुलवामा की तरह की कोई घटना होने का इंतज़ार कर रही है?

ऐसे बहुत से कयास लगाये जा सकते हैं परन्तु जब तक वे प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आ जाते तब तक उस पर कुछ कहना गैरवाजिब है लेकिन जो बातें सामने आ चुकी हैं वे बतलाती हैं कि भाजपा के पास कुछ बड़ी शक्तियां अब भी हैं जिनका इस्तेमाल चुनाव में होगा। पहली बात तो यह है कि इस बात का पर्दाफाश हो जाने के बाद भी कि भाजपा केन्द्रीय जांच एजेंसियों (प्रवर्तन निदेशालय- ईडी, आयकर व केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो- सीबीआई) का इस्तेमाल न केवल विरोधी दलों के नेताओं को डराने, अपने पक्ष में लाने तथा निर्वाचित राज्य सरकारों को गिराने में करती है, वह अब भी उसके बेजा इस्तेमाल से बाज नहीं आ रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी कई नोटिसें भेज चुका है और उनकी कभी भी गिरफ्तारी हो सकती है। छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल पर भी ऑनलाइन सट्टा खिलाने वाले महादेव एप के सिलसिले में गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है। ऐसी ही कार्रवाइयों के डर से हाल ही में कई कांग्रेसी व अन्य दलों के नेता भाजपा में प्रवेश कर चुके हैं।

अब देश के समक्ष यह भी साफ हो गया है कि वित्तीय संसाधनों के नज़रिये से देखें तो भाजपा सबसे ताकतवर दल है। 2019 में लाये गये विवादास्पद इलेक्टोरल बॉंड्स के जरिये उसने खूब पैसे बनाये हैं। इसका लगभग पूरा हिस्सा अकेले भाजपा ने पाया है और बहुत थोड़ा सा अन्य पार्टियों के खातों में गया है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है जहां उसने योजना को ही 'असंवैधानिक' करार करते हुए इसे सूचना के अधिकार का हनन बतला दिया। साथ ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को निर्देश दिया कि दान देने वालों के नाम व राशि केन्द्रीय निर्वाचन आयोग को दे जिसे उसने अपने वेबसाइट पर प्रकाशित किया। बैंक व कई कारोबारी संघ इस जानकारी को अभी भी रोकने की कोशिश कर रहे हैं परन्तु अब शीर्ष न्यायालय ने आदेश दिया है कि 21 मार्च तक पूरी जानकारी दे। इस मुद्दे पर पहले ही भाजपा की जबर्दस्त भद्द पिट चुकी है। इतना ही नहीं, यह भी लोगों के सामने आ चुका है कि भाजपा ने अपनी एजेंसियों को चंदा बटोरने में लगाया था। साथ ही, केन्द्रीय निर्वाचन आयोग द्वारा जिस प्रकार से भाजपा को मदद की जा रही है, वह भी पूरी तरह से बेनकाब हो चुका है।

ईवीएम का मुद्दा भी भाजपा को संकट में डाल चुका है। लोग अब मानने लगे हैं कि ईवीएम के जरिये मतदान भाजपा को सहयोग करने वाली व्यवस्था है तभी इसके खिलाफ वकीलों एवं कई सिविल सोसायटियों द्वारा आंदोलन छेड़ दिये गये हैं। भाजपा के विरोधी दलों के सामने ईवीएम हमेशा एक चुनौती के रूप में रही है लेकिन इनसे मुकाबला कैसे हो यह आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने बतलाया है। शिवाजी पार्क की रैली में उन्होंने कहा कि 10-15 फीसदी की हेराफेरी मशीनें करती हैं इसलिये इतनी ज्यादा वोटिंग कराई जाये कि उससे ईवीएम को हराया जा सके।

भाजपा के मुद्दे नाकाम हो चुके हैं, विपक्षी गठबन्धन एकजुट है और कांग्रेस का मंगलवार को जारी हुआ वादों का मसौदा भी अब लगभग तैयार है जिसमें पांच प्रकार के न्याय तथा 25 गारंटियों की बात कही गयी है। मुकाबला ध्रुवीकरण और न्याय के बीच होगा, जिस पर कांग्रेस-इंडिया को साफ बढ़त है।
(लेखक देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक हैं)

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