चौपाटी हो या बस्ती की गलियां पड़ा रहता है कचरे का ढेर
बड़े तामझाम के साथ शुरू किया गया स्वच्छता अभियान और इसके बाद अभियान के क्रियान्वयन के लिए प्रतिमाह लाखों रूपये पानी की तरह बहाने का कोई खास परिणाम शहर से लेकर उपनगरों तक नजर नहीं आ रहा;
कोरबा। बड़े तामझाम के साथ शुरू किया गया स्वच्छता अभियान और इसके बाद अभियान के क्रियान्वयन के लिए प्रतिमाह लाखों रूपये पानी की तरह बहाने का कोई खास परिणाम शहर से लेकर उपनगरों तक नजर नहीं आ रहा। स्वच्छता रैकिंग में नाम शामिल कराने भले जोरों की जद्दोजहद की गई किंतु इसके बाद हालात वही ढाक के तीन पात वाली चरितार्थ हो रही है।
शहर के कुछ मुख्य मार्गों पर सुबह से भरी दोपहरी सफाई कर्मी कचरा उठाते तो दिखते हैं किंतु इसके विपरीत भीतर बस्तियों और उनकी गलियों में बजबजाती नालियां, कई दिनों तक पड़े कचरे के ढेर अलग कहानी बयां कर रहे हैं।
हालात इतने बदतर हैं कि निहारिका क्षेत्र में घंटाघर मैदान में बनाई गई चौपाटी में एक सप्ताह से कचरे का ढेर पड़ा है जिससे निकलते संक्रामक बीमारियों के संवाहक मक्खियों व मच्छरों से बीमारी का खतरा बना रहता है। यहां लगने वाले ठेले खोमचे के खुले सामान इन मक्खी-मच्छरों से अछूते नहीं रहते।
ओपन थियेटर मैदान में नये मंच के पीछे स्मृति उद्यान की दीवार से लगकर कचरे के दो कंटेनर रखे गये हैं लेकिन इन कंटेनरों में कचरा न फेंककर उसे बाहर ही व्यवसायियों द्वारा फेंका जाता है।
यहां के ठेले वालों ने बताया कि नियमित रूप से कचरे का उठाव नहीं किया जा रहा है, पिछले 5 दिन से यह कचरा पड़ा है जिससे बदबू आने के साथ मक्खी-मच्छर भी पनप कर खाद्य पदार्थों को दूषित कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इस ओर निगम और न ही स्वास्थ्य अमला संजीदा होकर ध्यान दे रहा है। कुछ इसी तरह के हालात आंतरिक बस्तियों में नजर आते हैं।
सफाई कर्मियों द्वारा नालियों से निकाला गया कचरा सूखकर उड़ने लगता है लेकिन इसका उठाव तय नहीं हो पा रहा। नालियों में गंदगी बजबजा रही है तो बारिश में यही गंदा पानी नाली से लगकर बिछाए गए पेजयल की पाईपलाईन में घुसने के साथ-साथ लोगो ंके घरो में घुसता है, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ने की आंशका रहती है।
स्लम बस्तियों में भी ऐसे ही बदतर हालात हैं जहां के लोगों को नालियों के कचरे के ऊपर से होकर आन-जाने की मजबूरी बन जाती है। नि:संदेह निगम आयुक्त रणवीर शर्मा के द्वारा सफाई अमले, सफाई निरीक्षकों और सफाई ठेकेदारों को सजग रहकर साफ-सफाई कार्य करने की हिदायत दी जाती है लेकिन इसके विपरीत सफाई निरीक्षकों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती।
गीतांजली भवन के आसपास निगम के सफाई विभाग से जुड़े अधिकारियों की आवाजाही जरूर लगी रहती है परंतु इस भवन के पीछे बसी बस्तियों के भीतर इनकी पहुंच नहीं बन पाती। शायद यही कारण है कि सफाई अमला सुस्त बना हुआ है। गंदगी एवं कचरे से दो-चार हो रहे लोग उस पर से गुजरते वक्त हर बार निगम और इसके अमले को कोसने से नहीं चूक रहे हैं।