चौथे चरण से पहले भाजपा का नया शिगूफा

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद ने दुनिया के 167 देशों में 1950 से 2015 के बीच आए जनसांख्यिकी बदलाव का अध्ययन कर एक रिपोर्ट चुनावों के बीच जारी की है;

Update: 2024-05-10 05:58 GMT

प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद ने दुनिया के 167 देशों में 1950 से 2015 के बीच आए जनसांख्यिकी बदलाव का अध्ययन कर एक रिपोर्ट चुनावों के बीच जारी की है, जिसके मुताबिक भारत में 1950 से 2015 के बीच हिंदुओं की आबादी 7.82 प्रतिशत घट गई। वहीं मुसलमानों की आबादी में 43.15 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के अधिकांश मुस्लिम बहुसंख्यक देश में मुस्लिम आबादी में बढ़ोतरी हुई है, वहीं हिंदू, ईसाई व अन्य धर्म बहुल देशों में बहुसंख्यक आबादी में कमी आई है। इस रिपोर्ट को देखकर यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि यह भाजपा का चौथे चरण के मतदान से पहले एक नया शिगूफा है। दरअसल पिछले तीन चरणों के मतदान से भाजपा के लिए अच्छी खबरें नहीं आई हैं और यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने बयानों में अब हिंदू-मुस्लिम पर ज्यादा जोर देने लगे हैं।

राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, प.बंगाल इन तमाम राज्यों में श्री मोदी के भाषणों पर गौर फरमाएं तो उसमें सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश साफ नजर आती है। इसलिए इस वक्त आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट का आना यह जाहिर करता है कि भाजपा के पास जनता के बीच जाने के लिए मुद्दों का अकाल है, इसलिए अब आभासी मुद्दे खड़े किए जा रहे हैं। इस रिपोर्ट के बाद मोदी सरकार पर सवाल उठ रहे हैं कि जब उसने अपने पूरे कार्यकाल में जनगणना ही नहीं कराई तो अभी आबादी की बात किस आधार पर कर रही है। और जहां तक मुस्लिम आबादी की बात है तो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के डेटा के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर 2019-21 में सबसे कम 2.4 रही है, जबकि 2015-16 में 2.6 और 2005-06 में 3.4 थी।

तीन चरणों में भाजपा को नुकसान हो गया है, इसका प्रमाण बुधवार को प्रधानमंत्री के अडानी-अंबानी वाले बयान से मिल गया, जिसमें उन्होंने कांग्रेस और राहुल गांधी को घेरने की कोशिश की, लेकिन आखिर में भाजपा को ही मुश्किल में डाल दिया। इस बयान के अगले दिन गुरुवार को शेयर मार्केट में बड़ी गिरावट देखी गई। जिससे निवेशकों को तीन लाख करोड़ से अधिक का नुकसान बताया जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर ये कौन से लोग हैं, जो शेयर बाजार से अपना पैसा उठा रहे हैं, और क्यों उठा रहे हैं। क्या देश के चुनावी माहौल में भावी सरकार का अनुमान लगाते हुए शेयर बाजार में उठापटक हो रही है, इस पर अब गौर करना होगा।

ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, जो अब तक भारतीय जनता पार्टी की प्रमुख संपदा थे, अपने हालिया बयानों से उसे गहरे संकट में डाल चुके हैं। '400 पार' के नारे के साथ शुरू हुआ भाजपा का लोकसभा 2024 का चुनावी अभियान मोदी ने ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है जहां उसे सरकार बचाने के भी लाले पड़ रहे हैं। वैसे तो जिस तरह का विमर्श भाजपा ने पिछले एक दशक से चला रखा था, लोगों का मूड भांपे बगैर श्री मोदी उसे ही आगे बढ़ाते चले गये। हिन्दू-मुस्लिम, विरोधी नेताओं का कथित भ्रष्टाचार, कांग्रेस का परिवारवाद आदि जैसे घिसे-पिटे नैरेटिव को आगे खींचते हुए भाजपा के स्टार प्रचारक कहे जाने वाले नरेंद्र मोदी की बातों में लोगों को अब कोई रस रह गया है। बतौर प्रधानमंत्री दो कार्यकाल पूरा कर लेने के बाद भी मोदी के पास गिनाने के लिये अपना एक भी काम नहीं है।

इस चुनाव का ऐलान होते तक मोदी अपनी गारंटियों की खूब चर्चा करते रहे। वे दस वर्षों को अपनी सरकार का 'ट्रेलर' बतलाते हुए कहते रहे कि 'असली पिक्चर तो तीसरे कार्यकाल में दिखलाई जायेगी।' उन्होंने अबकी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी व 5 ट्रिलियन वाली इकानॉमी बनाने, 2047 तक सबसे विकसित देश बनाने और अगले एक हजार वर्ष तक सबसे आगे रहने जैसे सब्ज़बाग लोगों को दिखलाये। सभी संस्थाएं अपनी मु_ी में रखे हुए मोदी की इस 'विकास पुरुष' की छवि को पार्टी का खर्चीला प्रचार तंत्र, उसका आईटी सेल, दरबारी मीडिया और 'ट्रोल आर्मी' आगे बढ़ा रहे थे। राहुल गांधी की दो-दो भारत जोड़ो यात्राओं को मोदी व भाजपा ने हल्के में लिया। उन्होंने इस ओर से आंखें मूंद ली थीं कि कांग्रेस के नेतृत्व में 28 विपक्षी दल एकजुट हो गये हैं। कांग्रेस ने जनसामान्य के बुनियादी सरोकारों पर आधारित विमर्श को पुनर्जीवित किया जिससे जनमत भाजपा की ओर से इंडिया की ओर मुड़ने लगा जो कि प्रतिपक्षी दलों का एक मजबूत गठबन्धन का रूप ले चुका है और इसी शक्ति के साथ चुनाव के तीन चरणों का मतदान पार कर चुका है। तमाम सर्वे, अनुमान एवं विश्लेषण बतला रहे हैं कि तीनों में भाजपा इस कदर पिछड़ रही है कि उसने 400 पार के नारे का उल्लेख करना ही बन्द कर दिया है। हालांकि विपक्ष लोगों को यह नारा भूलने नहीं दे रहा है, पर यह भी बता रहा है कि भाजपा को संविधान समाप्त करने के लिये इतनी सीटें चाहिये। इसके कारण यह लड़ाई लोकतंत्र की लड़ाई में तब्दील हो गई है।

तीन चरणों के मतदान का ही यह असर बतलाया जाता है जिसके कारण शेष चुनाव बचाने के लिये मोदी अपने चिर-परिचित विषय पर लौट आये हैं। वह है धु्रवीकरण। पश्चिम बंगाल के दौरे में वे संदेशखाली की पीड़ित महिलाओं पर अतिरिक्त द्रवित हुए। हालांकि लोगों ने सवाल उठाया कि मणिपुर की महिलाओं के साथ हुए उत्पीड़न व दुष्कर्म पर बोलने से आखिरकार मोदी को किसने रोका था? अपनी सभाओं में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के एक बयान को तोड़-मरोड़कर पेश करते हुए यहां तक कह डाला कि कांग्रेस का मानना है कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। फिर उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार आई तो हिन्दुओं के गहने छीनकर कई-कई बच्चे वालों को दे दिये जायेंगे (उनका आशय मुस्लिमों से था)। खुद की हिन्दुवादी की छवि को प्रगाढ़ करने के लिये मोदी तीसरे चरण के मतदान के एक दिन पूर्व अयोध्या के राममंदिर पहुंच गये थे। वहां उनकी रामलला के समक्ष साष्टांग होने की तस्वीरें देश भर में प्रकाशित व वायरल कराई गईं ताकि उसका लाभ 7 मई के मतदान में मिल सके।

इतना सब होने के बाद भी कम मतदान और वह भी अपने पक्ष में न होने से आशंकित मोदी ज्यादा बौखलाए नज़र आये। उनके बयान और भी कटु हो चले हैं। इस क्रम में उन्होंने उन अडानी व अंबानी का जिक्र कर डाला (वह भी गलत तरीके से) जिसके अब तक वे सबसे बड़े रक्षक थे। माना जा रहा है कि उनका यह बयान एक तरह से सबसे आत्मघाती साबित होने जा रहा है। इसके जवाब में जैसी प्रतिक्रियाएं आई हैं, उससे श्री मोदी और फंसते जा रहे हैं। राहुल गांधी ने भी इस बयान के जवाब में जो वीडियो जारी किया, उसे करोड़ों लोगों ने देखा और पसंद किया, इसका मतलब यह कि राहुल गांधी और कांग्रेस की बातों को अब लोग सुन रहे हैं।
यह स्थिति भाजपा के लिए अच्छी नहीं है और अब आबादी का जिक्र छेड़कर भाजपा के लिए एक और समस्या खड़ी हो गई है, देखना होगा कि चौथे चरण से पहले अपनी स्थिति सुधारने के लिए कुछ सकारात्मक कदम उठाती है या फिर पूरा चुनाव नकारात्मकता के साथ ही लड़ेगी।

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