यूपी उपचुनाव में भाजपा को अपना वर्चस्व कायम रखना आसान नहीं

 उत्तर प्रदेश के फूलपुर संसदीय सीट पर 11 मार्च को होने वाले उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अपना वर्चस्व कायम रखना आसान नहीं होगा।;

Update: 2018-02-11 15:07 GMT

इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश के फूलपुर संसदीय सीट पर 11 मार्च को होने वाले उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अपना वर्चस्व कायम रखना आसान नहीं होगा।

आजादी के बाद पहली बार वर्ष 2014 के आम चुनाव में यहां कमल खिला था। यहां से जीत दर्ज करने वाले केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश का उप मुख्यमंत्री बनाया गया।

उप मुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद उन्होने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। रिक्त हुई इस सीट पर पार्टी एवं  मौर्य की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। भाजपा इस सीट पर जीतने का पूरा प्रयास करेंगी लेकिन बदले हालातों में यह कठिन लग रहा है।

पार्टी वर्ष 2019 के चुनाव के पूर्व की रिहर्सल मानते हुए अपनी पूरी ताकत झोंकेगी और हर हाल में इस सीट पर अपना दोबारा कब्जा रखने का प्रयास करेंगी।

राजनीतिक दृष्टि से कई मायनों में पार्टियों के लिए यह सीट अहम बन गयी है। सभी पार्टी के दिग्गज अपने-अपने राजनीतिक तरकश से तीर चलाने को बेताब हैं तथा यहां से टिकट के दावेदार बड़े नेताओं से जुगाड़ करने में लगे हैं। भाजपा से मुकाबले के लिए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) ने ताल ठोकने की तैयारी शुरू कर दी है। हालांकि किसी पार्टी ने अभी तक अपना तुरूप का पत्ता खोलते हुए प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है।

आजादी के बाद से ही चर्चित रहने वाली फूलपुर संसदीय सीट देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का संसदीय क्षेत्र रहा।
वर्ष 1952, 1957 और 1962 में नेहरू ने यहां से जीत दर्ज कर हैट्रिक बनाई थी।
इसके अलावा रामपूजन पटेल ने भी यहां से हैट्रिक लगायी थी।

फूलपुर की प्रतिष्ठित सीट के लिए उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की पत्नी राजकुमारी को उम्मीदवार बनाने की चर्चा जोरों से चल रही हैं।

दूसरी तरफ भाजपा किसी ब्राह्मण,यादव और पटेल को टिकट देकर इस सीट पर दोबारा कमल खिलाने की कोशिश करेगी। हालांकि प्रत्याशियों के नाम को लेकर कोई भी नेता मुंह खोलने को तैयार नहीं है।

इस उपचुनाव में सतारूढ भाजपा को अपनी नीतियों, घरेलू चीजों के मूल्यों में वृद्धि, नोटबंदी और वादा खिलाफी से लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ेगा।
इसके अलावा सांसद रहते हुए श्री मौर्य द्वारा प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना के तहत गोद लिया गया गांव जैतवारडीह के हालातों में कोई सुधार नहीं होने से पार्टी को जनता की नाराजगी झेलनी पड़ेगी।

राजनैतिक पंडितों का मानना है कि कुछ नेता तो टिकट न मिलने पर अपनी पार्टी छोड़कर दूसरे दल में जाने की फिराक में हैं।

वर्ष 1996 से लेकर 2004 के बीच हुए लोकसभा चुनावों में अपना परचम फहराने वाली समाजवादी (सपा) के राष्ट्रीय नेतृत्व ने मृतक दस्यु सरगना शिव कुमार पटेल उर्फ ‘ददुआ” के छोटे भाई पूर्व सांसद बाल कुमार पटेल को फूलपुर से चुनाव लडाने की मंशा बनाई थी लेकिन अब पूर्व प्रत्याशी धर्मराज पटेल और नगेन्द्र पटेल के नामों की चर्चा जोरों पर है।

कांग्रेस उम्मीदवार के लिए प्रमोद तिवारी के साथ अनुग्रह नारायण सिंह, अनिल शास्त्री, मनीष मिश्र और सलीम इकबाल शेरवानी के नाम चर्चा में है लेकिन प्रमोद तिवारी को मजबूत दावेदार के रूप में देखा जा रहा है।

बहुजन समाज पार्टी(बसपा) शहर अध्यक्ष अवधेश गौतम ने कहा कि अभी तक हाईकमान की तरफ से किसीे के नाम की चर्चा नहीं हुई है।
लखनऊ में पार्टी सुप्रीमों सुश्री मायावती ने कल की बैठक में इस उपचुनाव को लेकर गंभीर न होकर वर्ष 2019 के आम चुनाव की तैयारी की ओर संकेत दिए है।

राजनीति गुरूओं का कहना है कि पहले गुजरात विधानसभा एवं बाद में लगता है भाजपा की छवि जनता के बीच पहले जैसी नहीं रही और इसका असर यहां हो रहे उपचुनावों में भी देखने को मिलेगा।
इस क्षेत्र के जातीय समीकरण को देखा जाये तो 50 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वोटरों में सबसे अधिक पटेल (कुर्मी) मतदाता निर्णायक साबित होता रहा है।
सवर्ण जातियों में 15 प्रतिशत ब्राह्मण मतदाता है तथा दलितों में 15 प्रतिशत पासी बिरादरी का दबदबा है और 15 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता है तथा पांच फीसदी अन्य मतदाता हैं।

गौरतलब है कि पंडित नेहरू ने 1952 में पहली लोकसभा चुनाव में पहुंचने के लिए फूलपुर सीट को चुना था और वर्ष 1952 से 1984 तक छह बार कांग्रेस के खाते में यह सीट रही।
नहेरू के निधन के बाद उनकी बहिन विजय लक्ष्मी पंडित ने 1967 के चुनाव में जनेश्वर मिश्र को हराया और वर्ष 1971 में फिर कांग्रेस के वी पी सिंह यहां से विजयी हुए।
उसके बाद लम्बे अन्तराल के बाद वर्ष 1984 में कांग्रेस के उम्मीदवार रामपूजन पटेल जीते।

वर्ष 1969 में विजय लक्ष्मी पंडित के संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद इस्तीफा दे दिया था।
तब हुए उप चुनाव में कांग्रेस ने केशव देव मालवीय को मैदान में उतरा लेकिन संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जनेश्वर मिश्र से हार गए।

वर्ष 1977 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस के रामपूजन पटेल को जनता पार्टी (जपा) की उम्मीदवार कमला बहुगुणा ने हराया।

वर्ष 1980 के मध्यावधि चुनाव में लोकदल प्रत्याशी प्रो़ बी डी सिंह जीते थे। वर्ष 1989 और 1991 का चुनाव राम पूजन ने जनता दल के टिकट पर जीत हासिल की।

वर्ष 2009 में पहली बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रत्याशी कपिल मुनि करवरिया ने जीत दर्ज करायी और 2014 में भाजपा के केशव प्रसाद माैर्य ने पांच लाख तीन हजार 564 मतों से कमल खिलाया।

इस संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र इलाहाबाद शहर पश्चिमी, उत्तरी, फाफामऊं, सोरांव और फूलपुर आते है। यहां कुल मतदाताओं की संख्या करीब 19 लाख 20 हजार है।

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