मुश्किलों ने नियति पर विजय पाना सिखाया

बिलासपुर ! कहते हैं समुंदर की गहराई तो मापी जा सकती है लेकिन मां की ममता को नहीं मापा जा सकता।;

Update: 2017-01-01 21:21 GMT

आर.जी. गोस्वामी
बिलासपुर !  कहते हैं समुंदर की गहराई तो मापी जा सकती है लेकिन मां की ममता को नहीं मापा जा सकता। अगर किसी मां के दोनों बच्चे जन्म से बधिर हों और वह अपने बच्चों का दर्द देख अन्य मूक-बधिर बच्चों को भी समाज में ऊंचे मुकाम तक पहुंचाने की ठान कर उन्हें अपने ममता की छाह देकर उन्हें शिक्षा दीक्षा दे उसे आप क्या कहेंगे? ऐसी ही एक शख्सियत है कुदुदंड निवासी श्रीमती ममता मिश्रा जो विगत 30 वर्षों से मूक बधिर बच्चों की  ‘मां’ बनकर नि:स्वार्थ भाव से उनकी जिंदगी संवारने में जुटी हुई है।
समाज शास्त्र में एमए व स्पीड थेरोपी में बीएड करने वाली श्रीमती मिश्रा के पति विजय मिश्रा पेशे से वकील हैं। मुंगेली का लिमहा-गिदहा उनका पैतृक गांव है। इनके दोनों बच्चे बेटा अनुपम और बेटी अनामिका जन्म से बधिर है, वे अपने नि:शक्त बच्चों के पालन-पोषण के दौरान ममता ने संकल्प लिया कि वे अपने जैसे दूसरे मूक बधिर बच्चों की नि:शक्तता को बोझ नहीं बनने देंगी। उन्होंने अथक परिश्रम और साहस के साथ अपने पति के सहयोग से सन् 1985 में पंजीयन के बाद 1987 में खपरगंज में मूक बधिर बच्चों के लिए आनंद निकेतन विद्यालय की स्थापना की यहां पहली से लेकर 10 वीं तक की नि:शुल्क कक्षाएं  प्रारंभ की अपने बलबूते स्कूल का संचालन किसी चुनौती से कम नहीं था। स्कूल में 80 बच्चे अध्ययनरत थे, किन्तु धीरे-धीरे उन्होंने अपने मिशन को गति देने का कार्य जारी रखा। आज नेहरु चौक के पास ‘सत्यसांई हेल्प वे’ के नाम से खुद के भवन में श्रीमती मिश्रा संस्था का सफल संचालन कर रही है। लम्बे संघर्ष और जद्दोजहद के बाद उनकी संस्था को समाज कल्याण विभाग से अनुदान भी मिलने लगा।
ममता मिश्रा ने बताया कि उनके पुत्र अनुपम और पुत्री को जब वे शिक्षा के लिए मुंगेली से बिलासपुर लेकर आई तो यहां 5 वीं के बाद शिक्षा का कोई जरिया नहीं था। उन्होंने दोनों को पढऩे के लिए दिल्ली भेजा।
पुत्र रेलवे में कार्यरत है और पुत्री का भी विवाह हो चुका है। श्रीमती मिश्रा ने बताया कि अनवरत् 25 साल तक बिना किसी बाहरी मदद के उन्होंने संस्था का संचालन किया। अभी 35 बच्चे कक्षा एक से 8 वीं तक की यहां रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। 9 वीं व 10 वीं की पढ़ाई वे पत्रचार द्वारा कराती है। उनकी संस्था से शिक्षा प्राप्त कर निकले कई बच्चे आज सम्मानित पदों पर कार्यरत है। वहीं एक श्रद्धा वैष्णव नामक बालिका तो प्रदेश स्तर की क्रिकेटर है।
‘सत्य साई हेल्प वे’ में पढ़ाई के साथ बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने मूर्तिकला, सिलाई-कढ़ाई, कुशन, बैग, निर्माण का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
ममता कहती है कि विकलांगता के साथ ईश्वर बच्चों को विशेष शकित देते हैं। इनको ही हमें आगे बढ़ाना होता है। नि:शक्त बच्चे किसी भी सामान्य बच्चे से कमतर नहीं होते। उनमें भी असीमित प्रतिभा दबी-छिपी होती है।

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