दाढ़ी के बढ़ने का अलजाइमर से नाता
आज श्रीमती जी बहुत ही उखड़ी हुई मुद्रा में थीं।इधर हमारी साहित्यिक गोष्ठी चल रही थी और हम साहित्यकार मित्रों के साथ अपने निवास पर ही चाय सुड़क रहे थे;
- डॉ प्रदीप उपाध्याय
मेरे मित्रगण हस्तक्षेप करते उसके पहले ही मैंने मोर्चा सम्भाल लिया। मैंने कहा- 'अरे नहीं, ऐसी बात नहीं है। अब लिखने-पढ़ने वाले लोग कहाँ दाढ़ी घिसने में अपना टाइम जाया करेंगे। रोजाना दाढ़ी साफ करने में आधे घंटे
का कत्ल करो।
आज श्रीमती जी बहुत ही उखड़ी हुई मुद्रा में थीं।इधर हमारी साहित्यिक गोष्ठी चल रही थी और हम साहित्यकार मित्रों के साथ अपने निवास पर ही चाय सुड़क रहे थे। वहीं आकर श्रीमती जी ने उन सभी के बीच अपनी शिकायत दर्ज करा दी- 'देखिए भाई साहब, अब बुढ़ापे में इन्हें यह दाढी रखने का शौक चर्राया है। आजकल फिल्मों में, टीवी सीरियल्स में जितने नये-पुराने चेहरे हैं, लगभग सभी दाढी बढ़ाये हुए दिखाई देते हैं। शायद उन्हें देखकर ये भी दाढी बढा़ रहे हैं। हम लोग कहने जाते हैं तो कहते हैं कि व्यस्तता के चलते दाढ़ी बनाना भूल जाते हैं। अब आप लोग ही बताइए कि क्या दाढ़ी इनके चेहरे पर फब रही है!मैं तो क्या जान पहचान के सभी लोग पूछते हैं कि क्या बीमार-वीमार हैं। और एक ये हैं कि अपने आप को बहुत बड़ा फिलासफर समझे बैठे हैं।'
मेरे मित्रगण हस्तक्षेप करते उसके पहले ही मैंने मोर्चा सम्भाल लिया। मैंने कहा- 'अरे नहीं, ऐसी बात नहीं है।अब लिखने-पढ़ने वाले लोग कहाँ दाढ़ी घिसने में अपना टाइम जाया करेंगे। रोजाना दाढ़ी साफ करने में आधे घंटे का कत्ल करो। साहित्यकर्मी का समय तो वैसे भी कीमती होता है। कब कोई विचार आकर दिमाग में हिलोरे लेने लगे और कब उसे कागज पर उतारने की जरूरत पड़ जाए, क्या कोई पूर्वानुमान लगा सकता है। वैसे भी लेखन कर्म का निश्चित समय तो होता नहीं है। और हम तो दाढ़ी बढ़ाकर अपना रूपया-पैसा,समय सभी कुछ तो बचा रहे हैं।'
इतने में व्यंग्यकार मित्र शर्मा जी ने जले पर नमक बुरका- 'अरे नहीं भाई,भाभीजी सही फरमा रही हैं।जब तक तुम नौकरी में थे,कितने चिकने-चुपड़े रहते थे। तब तो बिल्कुल क्लीन शेव बल्कि लगता तो यह था कि दिन में दो बार दाढ़ी घसते हो!बालों पर ऐसा खिजाब लगाते थे कि मजाल कि एक भी सफेद बाल बाहर निकल कर मुँह चिढ़ा दे। लेकिन अब तो अधगंजे सिर के बाल भी सफेदी की झंकार लिये हुए और दाढ़ी तो पूरी झक सफेद है ही। ऐसे में भाभीजी को भी तुम्हारे साथ आने-जाने में शर्म आती होगी।'
मैं समझ गया कि शर्मा की यह भड़काने वाली कार्यवाही है। मैंने श्रीमती जी की भाव मुद्रा को पढ़ा जो उनकी बात का जैसे समर्थन कर रही थी तो मुझे हस्तक्षेप करते हुए कहना पड़ा- 'देखो शर्माजी,, वह समय अलग था और वह बात भी कुछ भिन्न थी। नौकरी में सोबरनेस होने से ज्यादा दिखाई देना जरूरी है।क्लीन शेव से अफसरी का अलग ही प्रभाव पड़ता है। इसीलिए तब यह सब जरूरी था।लेकिन क्या तुम्हें पता है कि मैंने दाढ़ी क्यों बढ़ायी।'
इसी मध्य दूसरे कवि मित्र कर्मा जी भी बीच में टपक पड़े- 'अरे तुमने भी दाढ़ी बढ़ाकर स्वांग ही तो रचा है। जैसे नेता लोग खद्दर के कलफदार कपड़े पहनकर खुद को दूसरों से अलग दिखाना चाहते हैं।'
मैंने चेहरे पर झूठमूठ का गुस्से का भाव लाकर उसी अनुरूप त्यौरियाँ चढ़ाते हुए कहा- 'तुमने भी तो अमिताभ बच्चन की स्टाइल में चुग्गा दाढ़ी धरी हुई है और तुम मुझपर ऊंगली उठा रहे हो! क्या तुमने भी साहित्यकार दिखाई देने के लिए यह स्वांग रचा है?'
जब बात अपने ऊपर आते दिखाई दी तो वे बचाव की मुद्रा में आ गए, बोले- 'अरे,यह फिल्मी लोगों की देखा-देखी नहीं रखी गई है। तुम तो जानते ही हो कि मैं साम्यवादी विचारधारा का कट्टर समर्थक रहा हूँ। लेनिन का मुझपर बहुत प्रभाव है। इसीलिए मैंने लेनिन कट दाढ़ी रखी हुई है, अपनी अलग पहचान के लिए।'
इतने में कहानीकार मित्र वर्माजी ने हस्तक्षेप करते हुए मेरा समर्थन करना चाहा- 'भाभीजी, दाढ़ी रखने में मुझे तो कोई बुराई नहीं दिखाई देती। आपको तो मालूम ही होगा कि पुराने जमाने में राजा-महाराजा, नवाब-बादशाह, ऋषि-मुनि सभी तो दाढ़ी रखते थे और बाद में भी यह परम्परा जारी रही तथा विद्वजनों ने भी दाढ़ी रखना प्रारम्भ कर दिया।'
बीच में हास्य-व्यंग्य कवि धर्माजी ने माहौल में रस घोलने के अंदाज में कह दिया- 'भाभीजी, आपको तो यह भी ज्ञात होगा कि आजकल भिखारी लोग भी दाढ़ी रखते हैं। उन्हें भी कहाँ फुर्सत मिलती है दाढ़ी बनाने की! वे लोग तो अल सुबह ही कटोरा लेकर निकल पड़ते हैं अपने काम-धन्धे पर।'
मुझे धर्माजी की बात बड़ी ही नागवार गुजरी।मैंने फिर अपना पक्ष रखा- 'यह स्थापित तथ्य है कि क्लीन शेव पुरूषों के चेहरे पर दाढ़ी रखने वाले पुरुषों की तुलना में ज्यादा बैक्टीरिया पाए जाते हैं। चिकित्सा शास्त्री भी कहते हैं कि अगर आपको पोलन या डस्ट एलर्जी है तो दाढ़ी बढ़ाकर रखने से ये काफी हद तक कम की जा सकती है। और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन तक दाढ़ी रखते थे। देश के प्रधानमंत्री यानी प्रधान सेवक स्वयं भी बड़े ही सलीके दार दाढ़ी रखते हैं। वैसे भी दाढ़ी का सम्बन्ध पुरुषों के ज्ञान और बुद्धिमत्ता के साथ जोड़ा गया है।शेक्सपियर, साक्रेटीज, गैलीलियो, प्लेटो भी दाढ़ी रखते थे। यानी अधिकांश दार्शनिक दाढ़ी रखते थे। दार्शनिक लोग विचारों में निमग्न रहते हैं तो स्वाभाविक ही है कि उन्हें दाढ़ी बनाने का कहाँ होश! मैं भी अपने विचारों में खोया रहता हूँ, इसीलिए दाढ़ी बढ़ती जा रही है, दाढ़ी बनाना भूल भी जाता हूँ तो इसमें गलत क्या है।!'
श्रीमतीजी बड़ी देर से इस वार्तालाप को और सबके तर्क-कुतर्क सुन रही थीं। उन्होंने मेरी बात पर बीच में ही टोकते हुए कहा- 'देखिए, अपने आप को बड़ा भारी दार्शनिक मत समझो। स्कूटर में कार की चाबी लगाने की कोशिश करते हो,घर से स्लीपर पहन कर ही निकल जाते हो, कभी चष्मा भूल जाते हो तो कभी घड़ी या पर्स। ये सब दार्शनिक होने के लक्षण नहीं है बल्कि स्वीकार लो कि बुढ़ापे ने दस्तक दे दी है और अलजाइमर का आपके दिलोदिमाग पर अटैक हो चुका है। दाढ़ी-वाढ़ी बढ़ाने से कोई बुद्धिजीवी साबित नहीं होने वाला। जाकर अपनी बीमारी का इलाज करवाओ और हो सके तो अपने इन दोस्तों की भी जाँच करवा देना।ये लोग भी कई बार अपने घर का रास्ता भूल जाते हैं और गोष्ठी-संगोष्ठी में ही खोये रहते हैं।'
इतना सुनने के बाद किसी को गोष्ठी के समापन की घोषणा का होश नहीं रहा और सब अपने अपने रास्ते चल दिये और मैं पास के जेन्ट्स पार्लर पर जाकर चुपचाप बैठ गया।