खेतिहर गांव सिपकोना और कानामुका में जागरूकता के साथ आशंकाएं भी

कोरोना संक्रमण के चलते भारत सरकार की ओर से घोषित लॉकडाऊन का असर उद्योगों पर अवलंबित गांवों के मुकाबले किसानी गांवों में चाहे चाहे अभी न दिख रहा हो;

Update: 2020-04-09 01:22 GMT

- डॉ. दीपक पाचपोर व एसआर घाटगे

रायपुर। कोरोना संक्रमण के चलते भारत सरकार की ओर से घोषित लॉकडाऊन का असर उद्योगों पर अवलंबित गांवों के मुकाबले किसानी गांवों में चाहे चाहे अभी न दिख रहा हो लेकिन ग्रामीण जनता को इस बात का एहसास होने लगा है कि वायरस का असर जल्दी खत्म न हुआ तो कृषि आधारित गांवों को भी तबाह होते देर नहीं लगेगी। इसलिये ऐसे गांव भी खुद को वायरस से बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।

यात्रा के दूसरे चरण में इन संवाददाताओं ने रायपुर से निकलकर दो गांवों को देखा। दोनों ही अपनी प्रकृति में इस मामले में एक हैं कि उनकी इकॉनामी खेती के बूते चलती है। दोनों में सिंचाई के लिये नहरों का तो अभाव है परंतु इससे उनका काम नहीं रूकता। आसपास बहती नदियों पर बने एनिकटों ने भूजल का स्तर बढ़ा दिया है। सभी ओर सैकड़ों की तादाद में दोनों  गांवों में पंप चलते रहते हैं। इस समय दोनों गांवों में धान की ग्रीष्मकालीन फसल लहलहा रही है। करीब डेढ़ माह की आयु प्राप्त कर चुकी बालियों ने इस गर्मी में भी धरती को धानी रंग ओढ़ा दिया है जो गर्मी को थोड़ा कम तो कर ही देती हैं। लोगों को अन्य किसी भी फसल में रूचि नहीं है, यहां तक कि वे साग-भाजी भी नहीं उगाते। धान उत्पादन से वे संतुष्ट हैं। सिपकोना के तो 90 फीसदी नागरिकों का मुख्य व्यवसाय खेती ही है।

स्वभावगत संतोषी जीव नज़र आने के बाद भी यात्रा के दौरान महसूस हुआ कि लॉकडाऊन में ऐसे गांवों की ओर ध्यान दिये जाने की जरूरत उभरकर दिखती है, जो लगभग पूर्णतया कृषि पर आधारित हैं। इक्का-दुक्का लोग ही बाहर काम पर जाते हैं। ज्यादातर का गुजारा खेती से होता है। ग्रामीण हलकों में लॉकडाऊन की परिस्थिति देखने के लिये इस चरण में जिन गांवों में गये, वे हैं- दुर्ग ज़िल में पाटन से आठ किलोमीटर दूर स्थित सिपकोना (विकासखंड पाटन ही) और धमतरी जिले के कुरूद विखं का कानामुका, जो वहां से 25 किमी दूर बसा है। सिपकोना जहां पंचायत गांव है वहीं कानामुका का समावेश नवागांव पंचायत के अंतर्गत हुआ है।

सिपकोना खुला व विस्तृत गांव है तो कानामुका सिमटा व छोटा सा। सटे-सटे घरों वाला। सिपकोना ज्यादा जनसंख्या का होने के कारण वहां लोगों को घरों के अंदर बिठाकर रखना दुरूह कार्य है जबकि कानामुका पर पंचायत के लोग बेहतर नज़र रख पा रहे हैं। सिपकोना में राशन आने के दिन लोगों ने राशन दूकानों पर बार-बार भीड़ लगा दी थी जिसे पंचायत के लोग बार-बार तितर-बितर करते रहे। उम्मीद है कि अब तक सभी को राशन मिल चुका होगा, तो वहां अब वैसी समस्या नहीं रह गयी होगी। कानामुका वालों को अपना राशन लाने नवागांव जाना पड़ता है इसलिए इस कारण से यहां भीड़-भाड़ होने का सवाल ही नहीं उठता। लॉकडाऊन के चलते इस बार यहीं राशन लाकर घर-घर बांटा गया।

राहत की बात यह है कि अब तक किसी को स्वास्थ्यगत समस्या नहीं आई है, जिसके कारण अस्पताल ले जाना पड़े या किसी को आईसोलेशन के लिये कहना पड़े। लोगों को लक्षणों की जानकारी दी गयी है और पंचायत सदस्य, मितानिनें, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता भी अतिरिक्त सावधानी पाल रही हैं।

सिपकोना में प्रवेश करते ही वहां के सक्रिय व बुजुर्ग पंच दूकालू घृतलहरे से मुलाकात होती है जो अपने सरपंच रामनारायण साहू व अन्य सक्रिय सदस्यों को फोनकर बुलवा लेते हैं। वैसे ही सक्रिय भीखन यादव, कोटवार हीराचंद बंजारे आदि के साथ गांव का भ्रमण करने और विभिन्न लोगों से बात करने पर पता चलता है कि लोगों को तत्काल की तो चिंता नहीं है पर लॉकडाऊन अगर लम्बा चलता है तो उनका गुजारा कैसै होगा, इसे लेकर वे फिक्रमंद ज़रूर नज़र आते हैं। कानामुका के नागरिकों का भी मानना है कि लम्बे समय तक घर में बैठने से वे खेती के अन्य कामों से वंचित हो जायेंगे। यहां के अनेक लोग आसपास के गांवों में मजदूरी करने भी जाते हैं।

इन कठिनाइयों व चिंताओं के बाद भी दोनों ही गांवों के लोग कोरोना की आशंकाओं को लेकर सतर्क हैं। फिलहाल तो दोनों ही गांवों के लोग सुरक्षित नज़र आ रहे हैं, पर वायरस से बचने के जो चिकित्सकीय उपाय बताये जा रहे हैं, उसकी मुनादी कराई ही जा रही है और पंचायतों के माध्यम से रोकथाम के उपाय भी बताये जा रहे हैं।


 

रद्द किये नवरात्रि के कार्यक्रम 

लोगों को संक्रमण से बचने के तरीके तो बतला ही रहे हैं, उन्हें घरों में ही रहने तथा एक दूसरे से न मिलने की भी सलाह दी जा रही है। वे सहयोग करते हैं और सुबह 11 बजे के बाद ज्यादातर घरों में ही रहते हैं। फिर वे शाम को ही निकलते हैं। उन्हें समूहों में बैठने से भी रोका जा रहा है। दूकानें व साग-भाजी उपलब्धता का समय दोपहर तीन बजे के बाद रखा गया है। हमारे यहां नियमित मुनादी की व्यवस्था है। नवरात्रि के सारे कार्यक्रम रद्द कर दिये गये पर लोगों ने कोई आपत्ति नहीं की।

लोगों को राशन दिया जा रहा है। यहां निराश्रितों को कोई समस्या नहीं आने दी जा रही है।

 

                                                                                                                   - रामनारायण साहू

                                                                                                                           सरपंच

                                                                                                           सिपकोना (आबादी करीब 1500)


 

बच्चों के लिये सूखा राशन 

यहां की हम चार मितानिनें और तीन आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से लोगों को वायरस से बचने का उपाय बताती हैं। बच्चों को उनके मिड डे मील के बराबर के हिस्से का सूखा राशन उनके घरों में दिया जा रहा है।

 

                                          

                                                                                                                                                               - सतीबाई साहू,

                                                                                                                            मितानिन, सिपकोना


 

राशन घरों में बांटा गया

बीमारी की अवस्था में कचना उप स्वास्थ्य केंद्र है। हम लोगों को कोरोना से बचाव के सारे तरीकों की जानकारी लोगों को दे रहे हैं। राशन नवागांव से लाकर यहां घर-घर में बांटा जा रहा है।

                                                                                                                         - रमेश निषाद

                                                                                                                             उप सरपंच

                                                                                                                 कानामुका (आबादी करीब 800)


 

  लोग जागरूक हैं 

स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोरोना के बाबत जो भी आदेश या परामर्श आता है, हम तत्काल लोगों को मुनादी द्वारा सूचित करते हैं। लोग इस बाबत पूरे जागरूक हैं। 

 

                                                                                                                        - पूरणदास मानिकपुरी

                                                                                                                           कोटवार, कानामुका


 

सिपकोना में न सीएम आए हैं न बघेल

ग्रामवासियों को इस बात का रंज है कि पाटन से मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव में मुख्यमंत्री बनने के बाद से भूपेश बघेल अब तक नहीं आए हैं, न ही यहां के सांसद विजय बघेल। यह गांव उनके इलाके में पड़ता है। यहां रास्ते व स्वास्थ्य की समस्या तो है ही, हाईस्कूल की भी ज़रूरत है।  

सरपंच रामनारायण साहू बताते हैं कि किसी के बीमार होने पर पाटन सा तरीघाट ले जाना पड़ता है। यह बड़ा गांव है इसलिये यहां उप स्वास्थ्य केंद्र खुलना चाहिये। अभी यहां 8वीं तक की ही पढ़ाई होती है। यहां 10वीं तक की शिक्षा के लिये शाला खुलनी चाहिये।


 

डाक्टर आए नहीं, मरीज इंतजार में

रायपुर से पाटन के रास्ते में करीब 15 किलोमीटर पर झीय गांव पड़ता है। यहां नया अस्पताल बना है। यहां जब संवाददातागण पहुंचे तो समय हो रहा था सुबह के करीब 10 बजे का और प्रभारी डॉ. भुवनेश्वर कुठौतिया का कोई पता नहीं था। बताया गया कि वे कुम्हारी से आते हैं। उनका वक्त सुबह नौ से दोपहर एक बजे तक रहता है। अस्पताल में पोंछा लगाया जा रहा था।  

अस्पताल में कुछ मरीज आ चुके थे। एक मितानिनलक्ष्मी बंधे पूनम यादव नामक गर्भवती महिला को लेकर आई थी। एक सुधा मेश्राम भी अमलेश्वर से आई थीं। वहां मौजूद वार्ड ब्वॉय सुमन कुमार और धनलाल कोई भी बताने की स्थिति में नहीं था कि चिकित्सक महोदय कहां हैं और कब आएंगे। उनसे मिलने का उद्देश्य ग्रामीण अस्पतालों में कोरोना वायरस पीड़ितों के आने की स्थिति में उपलब्ध मदद की जानकारी लेना था। करीब आधे घंटे तक का इंतजार हो जाने के बाद अपना विजिटिंग कार्ड छोड़कर रवानगी की गयी, इस निवेदन के साथ कि वे हमें फोन कर लें ताकि अस्पताल के बाबत कुछ जानकारी मिल जाये और यह भी ज्ञात हो सके कि कोरोना से निपटने के लिये उस अस्पताल की ओर से कैसे लोगों को जागरूक किया जा रहा है।

 

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक डॉक्टर का कोई फोन नहीं आया है। यह इसलिये गंभीर बात है कि कोरोना के बढ़ते संकट को कारण मरीज शासकीय अस्पतालों पर ही निर्भर हैं। यह सही है कि कोरोना का इलाज ऐसे छोटे अस्पताल में संभव नहीं है लेकिन उन्हें परामर्श देने का काम तो अस्पताल कर ही सकता है।


 

दुबई-पंजाब में पुत्र हैं सुरक्षित

कानामुका गांव के शिवप्रसाद निषाद के चार बेटों में से एक दुबई में है और एक पंजाब में। दोनों सुरक्षित हैं। दोनों से लगातार बातें होती हैं और उन्हें वहां रहने-खाने की कोई दिक्कत नहीं है। उनके नियोक्ता ही उन्हें सारी मदद कर रहे हैं।

शिवप्रसाद भी पहले पंजाब के जालंधर ज़िले में स्थित लिछाड़ा गांव की एक बिस्कुट फैक्ट्री में काम करते थे। बाद में उन्होंने अपने तीन लड़कों जानू, पूनाराम व धर्मा को भी उसी कंपनी में लगवा दिया। पत्नी भी वहीं चली गयी। करीब डेढ़ माह पहले ही पूनाराम को दुबई में नौकरी मिल गयी। स्थिति खराब होने के पहले ही सबसे छोटा लड़का धर्मा गांव लौट आया था। अब शिवप्रसाद की पत्नी तथा जानू (सबसे बड़ा) ही पंजाब में हैं। वहां अच्छी तनख्वाह एवं रहने-खाने की सुविधा अच्छी होने से वे पंजाब में नौकरी करना पसंद करते हैं। चूंकि पूनाराम को दुबई गये ज्यादा समय नहीं हुआ है, वह एक साल बाद आयेगा। उन्हें उम्मीद है कि तब तक हालत सुधर जायेंगे।

वैसे दोनों लड़कों से नियमित बातचीत होने के कारण वे निश्चिंत हैं कि दोनों बच्चे व पत्नी सुरक्षित हैं। एक और पुत्र जयपाल वेल्डिंग का काम करता है, जबकि धर्मा बिजली का काम जानता है। निश्चिंतता के बाद भी शिवप्रसाद चाहते हैं कि लॉकडाऊन जल्दी खत्म हो ताकि वे अपने परिवार से जाकर मिलें या उन्हें गांव बुला लें।

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