स्वावलंबी बनने के लिए महिलाओं ने बढ़ाए कदम

पिछले कुछ सालों में देश के कई कोनों में महिलाओं ने आत्मनिर्भरता की राह पकड़ी है;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-09-12 21:29 GMT
  • बाबा मायाराम

कुल मिलाकर, घरेलू हिंसा के खिलाफ अभियान, स्वास्थ्य जागरूकता, किचिन गार्डन, जैविक खेती और महिला नेतृत्व को गांवों में उभारने की कोशिश करना है। हेमलता राजपूत कहती हैं कि अगर आधी आबादी सशक्त बनेगी तो परिवार और समाज भी सशक्त होगा। यह पहल सराहनीय होने के साथ प्रेरणादायक भी है।

पिछले कुछ सालों में देश के कई कोनों में महिलाओं ने आत्मनिर्भरता की राह पकड़ी है। आज इस कॉलम में छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में महिलाओं की पहल के बारे में बताना चाहूंगा। मैं इस इलाके में कई बार गया हूं, महिला समूहों के सदस्यों से बात की है और उनकी लगन व सतत काम को देखा है। महिलाओं ने कई मोर्चों पर कदम बढ़ाए हैं।

इस बदलाव की शुरूआत वर्ष 2016 से हुई है। श्रीजन कल्याण समाजसेवी संस्था का गठन इसी वर्ष हुआ है। कुछ वर्ष पहले संस्था का कार्यालय भी बन गया है। इस कार्यालय की छोटी सी जमीन पर भी जैविक सब्जी बाड़ी है। कुछ फलदार पेड़ भी हैं।

छत्तीसगढ़ का इलाका विविधता के लिए जाना जाता है। यहां पारिस्थितिकीय और सांस्कृतिक विविधता काफी है। यहां विपुल खनिज संपदा के साथ वन संपदा भी बहुतायत में है। मध्य क्षेत्र का मैदानी भाग, जहां से महानदी गुजरती है, वह धान का इलाका है।

महासमुंद जिला, जो श्रीजन कल्याण संस्था का कार्यक्षेत्र है, भी इसी के अंतर्गत आता है। यहां धान की कई किस्में हैं। इसके साथ दलहन, तिलहन, कंद-मूल, फुटू (मशरूम) और फल-फूल, हरी पत्तीदार सब्जियां इत्यादि भी हैं। हालांकि यहां जंगल क्षेत्र भी है, जहां की आबादी की आजीविका जंगल से जुड़ी है। हालांकि धान की संकर (हाईब्रीड) किस्मों के प्रचलन के कारण देसी धान की किस्में लुप्त हो रही हैं।

हेमलता राजपूत बताती हैं कि 'ग्रामीण समाज में महिलाओं के साथ कई तरह भेदभाव देखे जाते हैं। घरेलू हिंसा उनमें एक है। उन्होंने बताया कि उनकी संस्था ऐसी पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए काम करती है। आपस में मामले सुलझाना, कानूनी मदद देना इसमें शामिल है। संस्था द्वारा कानूनी मार्गदर्शन केन्द्र चलाया जाता है, जिसमें लोग समस्याएं लेकर आते हैं।'

इसके अलावा, गांव में बैठक के दौरान भी पीड़िता की पहचान की जाती है। उनको परामर्श दिया जाता है। परिवार से मिलकर पूरे मामले की जानकारी ली जाती है। अगर परिवार व समाज के स्तर पर मामला सुलझाने की कोशिश की जाती है, अगर वहां मामला नहीं सुलझा तो परिवार परामर्श केन्द्र या कोर्ट भेजा जाता है।

भोरिंग गांव की महिला ने बताया कि उनका पति का बीमारी में निधन हो गया। उसके तीन बच्चे थे। उसे ससुराल में प्रताड़ित किया जा रहा था। न तो उसे घर में रहने दिया जा रहा था और न ही परिवार की सम्पत्ति में हिस्सा दिया जा रहा था। यह केस में कानूनी मदद में सहयोग किया गया। अंतत: महिला केस जीत गई। उसे जमीन भी मिली और घर भी।

हेमलता राजपूत बताती हैं कि हम ऐसे माहौल बनाने की कोशिश करते हैं कि जिसमें लोगों को सभी तरह के नशीले पदार्थों, शराब और तम्बाकू, गुटखा आदि छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

इसके साथ सब्जी-बाड़ी (किचिन गार्डन), जैविक खेती, और जंगलों को फिर से हरा-भरा करने की कोशिश की जाती है। संस्था ने जैविक खेती को पुनर्जीवित करने का अग्रणी काम किया है। इसने किसानों को जैविक खेती, प्राकृतिक खेती करने, जंगल को हरा-भरा करने, पारंपरिक बीज संरक्षण, जैविक खाद, जैव कीटनाशक बनाने की दिशा में प्रेरित करने का काम किया है। यह ऐसे समय में जब छोटे किसानों को बाजार की मांग को पूरा करने के लिए एकल खेती की ओर धकेला जा रहा है।

यहां की महिला किसान पारंपरिक खेती की ओर लौट रही हैं। देसी बीजों की प्रदर्शनी लगाई जाती है। जिसमें पारंपरिक देसी बीज, पारंपरिक व्यंजन और जंगल से मिलने वाले खाद्य पदार्थ को प्रदर्शित किया जाता है।

संस्था ने गांवों में देसी बीज बैंक बनाने और जैविक खेती के काम को प्रोत्साहित किया है। कुहरी गांव में श्रीजन सामुदायिक बीज बैंक हैं। इसके अलावा, कई तरह हरी भाजियों की बीज हैं। लाल भाजी, चैंच भाजी, खेड़ा भाजी, पटवा भाजी, अमाड़ी भाजी, पालक भाजी, मखना भाजी, कुसुम भाजी, चौलाई भाजी इत्यादि। बीज बैंक की शुरूआत वर्ष 2016 से हुई है। यहां से किसानों को बीज दिया जाता है, जिसे उन्हें फसल आने पर वापस करना होता है।

कोमा आदि गांवों में जैव कीटनाशक व जैव खाद बनाने का प्रशिक्षण शिविर लगाया गया। बोडरा गांव की श्यामा धु्रव बताती है कि हम देसी बीजों के साथ धान की खेती करते हैं। रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करते है, जिससे हमारी लागत भी कम हो जाती है। इससे हमें आत्मनिर्भर बनने में मदद मिली है।

इसके साथ सब्जी-बाड़ी (किचिन गार्डन), जैविक खेती, और जंगलों को फिर से हरा-भरा करने की कोशिश की जाती है। संस्था ने जैविक खेती को पुनर्जीवित करने का अग्रणी काम किया है। इसने किसानों को जैविक खेती, प्राकृतिक खेती करने, जंगल को हरा-भरा करने, पारंपरिक बीज संरक्षण, जैविक खाद, जैव कीटनाशक बनाने की दिशा में प्रेरित करने का काम किया है। यह ऐसे समय में जब छोटे किसानों को बाजार की मांग को पूरा करने के लिए एकल खेती की ओर धकेला जा रहा है।

कुहरी गांव की कौशल्या बाई कहती हैं कि देसी बीजों में रोग ज्यादा नहीं लगता है, खाने में भी स्वादिष्ट होता है। अगर फसलों में कीट प्रकोप लगता भी है तो जैव कीटनाशक बनाकर छिड़कते हैं। जिसे वे स्थानीय पौधों की पत्तियों से तैयार कर लेते हैं। कर्रा, आक, नीम, कड़वा रोहना, बिरहा आदि की पत्तियों से जीवामृत बनाया जाता है। इसके लिए बोड़रा, बरबसपुर, खैरा, कोमा आदि गांवों में जैव कीटनाशक व जैव खाद बनाने का प्रशिक्षण शिविर लगाया गया। बोडरा गांव की श्यामा धु्रव बताती है कि हम देसी बीजों के साथ धान की खेती करते हैं। रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करते है, जिससे हमारी लागत भी कम हो जाती है। इससे हमें आत्मनिर्भर बनने में मदद मिली है।

उन्होंने बताया कि जंगल से वनोपज के साथ ताजी पत्तीदार सब्जियां, कंद मूल व फल, फूल पत्तियां व मशरूम भी मिलते हैं। कुझियारी, चरौंटा, बोहार,खेकसी, पीपरी, कोसम, कोलियारी भाजी जंगल से मिलती है। घनबहेर फूल, सेमरा फूल, नीम फूल, अमली फूल इत्यादि। कई तरह के फुटू मिलते हैं- जैसे बियासी फुटू , भिमोरा फुटू , भदेली, घुटुल, दशहरा फुटू , कनकी फुटू इत्यादि।

वे आगे कहती हैं कि भेदभाव से पीड़ित महिलाओं के लिए कानूनी और संवैधानिक अधिकार हैं, पर यह तभी सार्थक होते हैं जब वास्तविक जीवन की स्थिति को बदलने के लिए प्रयास किए जाएं। यही हमारी कोशिश है। महिलाओं को सम्मानजनक तरीके से जीने के लिए उन्हें आत्मनिर्भर बनाना जरूरी है, और यही कोशिश उनकी संस्था कर रही है।

कुल मिलाकर, घरेलू हिंसा के खिलाफ अभियान, स्वास्थ्य जागरूकता, किचिन गार्डन, जैविक खेती और महिला नेतृत्व को गांवों में उभारने की कोशिश करना है। हेमलता राजपूत कहती हैं कि अगर आधी आबादी सशक्त बनेगी तो परिवार और समाज भी सशक्त होगा। यह पहल सराहनीय होने के साथ प्रेरणादायक भी है।

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