धर्म का पागलपन और आहत भावनाएं
अमेरिका में सत्तारुढ़ रिपब्लिकन पार्टी के नेता अलेक्जेंडर डंकन ने टेक्सास में लगी भगवान हनुमान की प्रतिमा पर विवादित बयान दिया है;
- सर्वमित्रा सुरजन
धर्म आंतरिक पवित्रता पर जोर देता है, लेकिन इस समय केवल दिखावा और दबंगई धर्म के नाम पर हो रही है। जैसे एक बार फिर नवरात्रि में देश के कई हिस्सों में मांस-मछली, अंडे बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। जबकि बड़ी आबादी सामिष भोजन करती है। मान लें कि नौ दिन वे मांस के सेवन के बिना रह भी लें, लेकिन जो विक्रेता हैं, उन्हें किस बात का अघोषित आर्थिक प्रतिबंध सहना पड़ रहा है। जिन लोगों का घर रोज की कमाई से चलता है।
अमेरिका में सत्तारुढ़ रिपब्लिकन पार्टी के नेता अलेक्जेंडर डंकन ने टेक्सास में लगी भगवान हनुमान की प्रतिमा पर विवादित बयान दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर डंकन ने लिखा- हम टेक्सास में एक झूठे हिंदू भगवान की झूठी मूर्ति क्यों लगने दे रहे हैं? हम एक ईसाई राष्ट्र हैं।
आधिकारिक तौर पर अमेरिका ईसाई राष्ट्र नहीं है, हालांकि वहां ईसाई बहुल आबादी है। अमेरिकी संविधान में एक एस्टेब्लिशमेंट क्लॉज है, जो कहता है कि सरकार किसी धर्म को आधिकारिक धर्म की मान्यता नहीं दे सकती। इस लिहाज से अमेरिका धार्मिक राष्ट्र नहीं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है। ठीक वैसे ही जैसे भारत में हिंदूबहुल आबादी है, लेकिन यह आधिकारिक तौर पर हिंदू राष्ट्र नहीं है। भारत का संविधान किसी धर्म को आधिकारिक धर्म की मान्यता नहीं देता है, बल्कि संविधान की प्रस्तावना में ही बताया गया है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।
यह बात इसलिए याद दिलाने की जरूरत पड़ रही है, क्योंकि डंकन के इस बयान पर कई लोगों की भावनाएं आहत हो गई हैं और कुछ हिंदू संगठनों ने इस का विरोध भी किया है। बता दें कि टेक्सास के शुगर लैंड में 2024 में हनुमान जी की 90 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया गया था। इसे 'स्टैच्यू आफ यूनियन' नाम दिया गया है। इस कांस्य प्रतिमा को श्री अष्टलक्ष्मी मंदिर में स्थापित किया गया है। इसे अमेरिका की तीसरी सबसे ऊंची प्रतिमा माना जाता है। अमेरिका की संस्था हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन ने डंकन के बयान को हिंदू विरोधी बताया है। अब कोई उन्हें बताए कि भारत में जब ऐसा ही पागलपन हर दूसरे दिन देखने मिलता है, तब कितनों की भावनाएं आहत होती हैं। अब तो अपनी आहत भावनाओं का इज़हार भी अपराध बना दिया गया है। अमेरिका में फिलहाल हालात हमसे बेहतर हैं। हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप के रहते कब तक हालात अच्छे बने रहेंगे, कहा नहीं जा सकता। डंकन ट्रंप समर्थक हैं और वो अमेरिका को ईसाई बहुल देश के तौर पर ही देखना चाहते हैं। वैसे ही जैसे भारत में मोदी समर्थक बार-बार इच्छा प्रकट करते हैं कि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए। मोहन भागवत जैसे लोग तो यही मानते हैं कि इस देश में रहने वाले सभी हिंदू हैं।
वैसे अमेरिका में केवल हिंदू संगठनों ने ही नहीं, कई अन्य संगठनों ने भी इसे धार्मिक आस्था पर हमला बताते हुए माफी की मांग की है। बहुत से अमेरिकी नागरिकों ने भी इसकी घोर निंदा की है। और ये वो लोग हैं, जो हर किस्म की धार्मिक कट्टरता का विरोध करते हैं। इन्हीं लोगों के कारण असल में अमेरिका आज उस मुकाम पर पहुंच पाया है, जिसे असल मायने में विश्वगुरु कहते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी, हर किस्म के श्रम का सम्मान, सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा, तकनीकी, विज्ञान, कला, संस्कृति में नित नवाचार से होता विकास, मानवाधिकारों की मजबूती, ऐसे कई कारक हैं, जिनके कारण अमेरिका विकसित हुआ और यहां जीवनस्तर बेहतर हुआ। बेशक हर देश की तरह अमेरिका भी कई किस्म की कमजोरियों और समस्याओं का शिकार है। लेकिन फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कई मायनों में अमेरिका हमसे कहीं आगे है। ऐसा नहीं है कि भारत उस मुकाम पर नहीं पहुंच सकता, आजादी के बाद भारत ने जितनी जल्दी आत्मनिर्भरता हासिल की और विकासशील देशों में अग्रणी बना, उसमें विकसित देश भी भारत बन सकता था, लेकिन मौजूदा शासन वक्त के पहिए को पीछे धकेलने में लगा हुआ है।
अपनी धार्मिक कट्टरता को जायज ठहराने के लिए वेद-पुराणों के नाम पर धार्मिक घपले किए जा रहे हैं और अंधश्रद्धा में डूबे लोग अपने धर्म का मजाक बनते देख रहे हैं। इन लोगों ने मान लिया है कि हिंदुओं को जगाने का काम भाजपा ने किया है। जबकि हिंदुओं को अंधभक्ति के नशे में डुबोने का काम किया जा रहा है। अभी नवरात्रि में ही कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं। जैसे नागपुर में गरबा आयोजन में पहचान-पत्र दिखाकर प्रवेश दिया जा रहा है, ताकि गैरहिंदुओं यानी मुस्लिमों को आने से रोका जा सके। एक गरबा समिति ने नियम रखा है कि लोग प्रवेश करें तो पहले पूजा करें और इस के साथ-साथ उन पर गौमूत्र का छिड़काव भी होगा। गुजरात में एक गरबा मैदान में एक युवती ने बुर्का पहना और उसके साथ चेहरे पर भूतिया किस्म का मेकअप कर डरावना चेहरा बनाया, ताकि अपने हिंदुत्व को इस्लाम से बेहतर बता सके। अब हिंदू धर्म का कोई ज्ञाता यह बताए कि किस ग्रंथ में, वेद या पुराण में यह लिखा है कि अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने के लिए दूसरे धर्म को डरावना बताया जाए।
ऐसा नहीं है कि केवल इस साल ऐसा धार्मिक उन्माद देखने मिल रहा है। यह सिलसिला बहुत सालों से चल रहा है और पिछले 11 सालों से इसमें तेजी आ गई है। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में धर्मांधता को जी भर के बढ़ावा मिला है। इस दौरान जितनी धर्म संसदें हुईं, धार्मिक जुलूस निकले, सार्वजनिक पूजा पाठ के कार्यक्रम हुए, सबमें किसी न किसी तरह अल्पसंख्यकों को अपमानित करने का काम किया गया। ईद के वक्त मस्जिदों के सामने शोर, क्रिसमस के वक्त चर्चों के सामने तमाशे किए गए और अब इस बात का बुरा माना जा रहा है कि अमेरिका के एक शहर में लगी हनुमानजी की मूर्ति पर किसी अमेरिकी नेता ने बयान क्यों दिया। धार्मिक आजादी और मानवता किसी भी लिहाज से यह बात सही नहीं है, लेकिन इस कड़वी सच्चाई को मानना पड़ेगा कि जैसे कई हिंदू दूसरे धर्म के ईश्वरों, देवदूतों को मान्यता नहीं देते, सम्मान नहीं देते, वैसे ही दूसरे धर्म के लोग हिंदू धर्म के भगवानों, देवताओं के साथ ऐसा कर सकते हैं। कोई भी धर्म अनुयायी किसी अन्य धर्म अनुयायी की आस्था और विश्वास को ठेस न पहुंचाए, वही आदर्श स्थिति है। सारे धार्मिक ग्रंथ यही शिक्षा देते हैं। लेकिन राजनैतिक लाभ और सत्ता की खातिर धर्म की गलत व्याख्या की जा रही है।
धर्म आंतरिक पवित्रता पर जोर देता है, लेकिन इस समय केवल दिखावा और दबंगई धर्म के नाम पर हो रही है। जैसे एक बार फिर नवरात्रि में देश के कई हिस्सों में मांस-मछली, अंडे बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। जबकि बड़ी आबादी सामिष भोजन करती है। मान लें कि नौ दिन वे मांस के सेवन के बिना रह भी लें, लेकिन जो विक्रेता हैं, उन्हें किस बात का अघोषित आर्थिक प्रतिबंध सहना पड़ रहा है। जिन लोगों का घर रोज की कमाई से चलता है, उन लोगों को नौ दिनों तक फाकाकशी में रहना पड़े, यह किस भगवान को मंजूर होगा। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोईत्रा ने भोपाल में ऐसे ही प्रतिबंध पर लिखा धार्मिक बहुलता वाले शहर भोपाल को कैसे सिर्फ इसलिए मछली, मांस और अंडे छोड़ने पर मजबूर किया जा सकता है क्योंकि कुछ लोग साल के बाकी दिनों में किए गए अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए कुछ समय के लिए शाकाहारी बनने का फ़ैसला करते हैं? मध्यप्रदेश- यही पागलपन आपको तब मिलता है जब आप भाजपा को वोट देते हैं।
हालांकि ये पागलपन केवल मध्यप्रदेश नहीं बल्कि पूरे देश में फैल चुका है। कौन क्या खाएगा, क्या पहनेगा, कौन सी जुबान बोलेगा, किस तरह अभिवादन करेगा, इस पर अब धर्मांधता से भरे फरमान आने लगे हैं। भीड़ की हत्या के मामले थम नहीं रहे हैं। कायदे से सरकार को इस पर चिंतित दिखना चाहिए, लेकिन सरकार इस धर्मोन्माद पर बेफिक्र दिख रही है। इस पागलपन के लक्षण पहले भी देश में देखे जाते थे, लेकिन उसे राजनैतिक मंजूरी देकर आधिकारिक नहीं बनाया जाता था। लोगों में धर्मनिरपेक्षता को छोड़ने पर एक किस्म का संकोच और शर्म का भाव होता था, लेकिन लिहाज के वो सारे पर्दे अब उतार दिए गए हैं और खुलकर कट्टरता को मान्य किया जा रहा है। इसे देशभक्ति कहा जा रहा है।