मोदी को जेन जी नेपाल में रंग रोगन करता दिख रहा है सरकार बदलता नहीं दिखा!
देशभक्ति का मतलब है देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा। सुप्रीम सेक्रिफाइज मतलब खुद को बलिदान कर देने की भावना।;
शकील अख्तर
अखिलेश यादव ने बड़ी चेतावनी दी है। समझने की जरूरत है। देश का युवा निराशा में है। महंगी पढ़ाई लिखाई के बाद भी कोई काम नहीं। आपको बताते हैं एमबीबीएस करने के बाद डाक्टर प्राइवेट नर्सिंग होमों में तीस चालीस हजार रुपए महीने की नौकरी करने पर मजबूर हैं। उनके जाब की कोई नीति नहीं। दूसरी तरफ गांवों में डाक्टर नहीं। सरकारी हेल्थ सिस्टम पूरी तरह खत्म हो गया है। सब कुछ प्राइवेट हाथों में।
राष्ट्रवाद देशभक्ति का पर्याय नहीं हो सकता। देशभक्ति का मतलब है देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा। सुप्रीम सेक्रिफाइज मतलब खुद को बलिदान कर देने की भावना। लेकिन राष्ट्रवाद का मतलब है अपने स्वार्थों के लिए दूसरे को तकलीफ देना। परपीड़ा से अपने समर्थकों को सुख का अहसास करना।
सैमुअल जानसन ने ऐसे ही नहीं कहा था कि राष्ट्रवाद दुष्ट की अंतिम शरण स्थली है। जानसन अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार, आलोचक और अंग्रेजी का पहला शब्दकोश बनाने वालों में थे। उन्हें आधुनिक शब्दकोश का जनक भी कहा जाता है। सैमुअल जानसन ने यह प्रसिद्ध उक्ति ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विलियम पिट के संदर्भ में कही थी। जिनके बारे में कहा जाता है कि वे हमेशा श्रेष्ठता का भाव प्रदर्शित करते रहते थे। अपनी कमियों को छुपाने के लिए देशभक्ति का गलत इस्तेमाल करते रहते थे।
यह अठाहरवीं सदी की बात है। वही समय जब दुनिया एक नए दौर में प्रवेश कर रही थी। फ्रांसिसी क्रान्ति का समय जिसने सबसे बड़ा राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन लाया। राजशाही के अंत की शुरूआत हुई। लोकतंत्र की अवधारणा आई और राष्ट्रवाद एवं देशभक्ति में फर्क समझने की शुरूआत हुई।
क्या फर्क है दोनों में? देशभक्ति एक स्वाभाविक सकारात्मक भावना मानी जाती है। अपने देश से प्रेम उसके लिए सम्मान। इसमें यह नहीं कहा जाता कि मेरे आने के बाद देश महान हुआ है। उससे पहले यह शर्मनाक स्थिति में था। मेरे से पहले के प्रधानमंत्रियों ने सब गलत काम किए। मैं जो भी करता हूं सब सही करता हूं।
लद्दाख के गलवान में घुस कर चीन हमारे 20 सैनिकों को शहीद कर जाता है मगर हम कहते हैं कि न कोई घुसा था, न कोई है! पहलगाम में हमारे 26 निर्दोष नागरिकों की पाकिस्तान से आए आतंकवादी हत्या कर देते हैं उसके खिलाफ किए हमारे आपरेशन सिंदूर को अचानक अमेरिका का राष्ट्रपति ट्रंप रोक देता है, फिर पचास प्रतिशत टैरिफ भी लगा देता है और हम फिर भी उसे क्लोज फ्रेंड और नेचुरल पार्टनर बताते हुए उसका समर्थन करते रहते हैं। पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने को भी तैयार हो जाते हैं मतलब सब करते हैं लेकिन हम महान हैं दोष सारा नेहरू और राहुल गांधी का है। इसे देशभक्ति नहीं कहते।
असली देशभक्ति और राष्ट्रवाद का नारा लगाने में यही फर्क है। राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा उदाहरण हिटलर था। दूसरों में कमियां देखना। और उसके जरिए अपने लोगों में उनके प्रति नफरत पैदा करना। यहुदियों के खिलाफ नफरत फैलाना ही उसका मुख्य उद्देश्य था। और यह श्रंृखला एक ऐसी है कि खत्म नहीं होती। अब यहुदियों के नाम पर बना देश इजराइल यही कर रहा है। नफरत का यह सिलसिला वे जारी रखे हुए हैं जो इसके सबसे बड़े शिकार रहे। आज इजराइल दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी देश बना हुआ है। भारी हिचकिचाहट और इधर उधर जाने के बाद मोदी सरकार को भी अभी यूएन में इजराइल के खिलाफ वोट करना पड़ा। नहीं तो अभी तो भारत में वे किसी को फिलिस्तीन का नाम लेने पर जेल भेज रहे थे। लेकिन गलत रास्ते पर हमेशा चलते रहना नहीं हो सकता। मोदी सरकार को चीन और रूस के साथ फिलिस्तिन के साथ आना पड़ा। यह विदेश नीति में देश के हितों के अनुरूप सोचकर किया गया फैसला था, जो देशभक्ति के अंतर्गत आता है। राष्ट्रवाद में फिलिस्तीन का नाम लेने पर उसका झंडा देख लेने पर गिरफ्तारी की जाती है। क्योंकि इससे राजनीतिक लाभ होने की उम्मीद होती है।
राष्ट्रवाद ऐसी ही विचारधारा है। जिसे अकेले अलग से प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। बल्कि देशभक्ति की आड़ में ही इसे सामने लाया जाता है। जिसे ढाई सौ साल पहले सैमुअल जानसन ने पहचान लिया था। इस पर गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की उक्ति बहुत सटीक है। उन्होंने कहा था राष्ट्रवाद किसी फोड़े को श्रंृगार करके पेश करने जैसा है। इसका मतलब अपनी कमियों को छुपाकर उन्हें भी रंग रोगन के साथ पेश कर देना। जैसा आजकल गोदी मीडिया से करवाया जा रहा है। वह बेरोजगारी की समस्या को ऐसे पेश करता है कि योग्य उम्मीदवार मिलते ही नहीं हैं। लद्दाख और अरुणाचल के बड़े इलाके पर चीन के कब्जे के बाद तो उसने राजनीतिक नेतृत्व को बचाने के लिए सारा दोष सेना पर डाल दिया था कि सीमाओं पर उन्हें रोकने के लिए प्रधानमंत्री थोड़ी आते।
बातें बड़ी बड़ी करके असली मुद्दों को दबाया जाता है। दो साल से ज्यादा हो गया मणिपुर नहीं गए। मगर अब जब कुछ दूसरे मुद्दे तेजी से उभरने लगे तो वहां जाकर मणिपुर को भारत के मुकुट का रत्न बताकर समझ रहे हैं कि बहुत बड़ी बात बोल दी। नेपाल के युवाओं की तारीफ कर दी कि वह वहां रंग रोगन कर रहा है। यह भूलने की कोशिश कर रहे हैं कि उसने वहां सरकार बदल दी!
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बहुत हिम्मत के साथ सही सवाल किया है कि भारत में भी अगर बेरोजगारी की समस्या दूर नहीं की गई तो यहां भी नेपाल जैसी हालत हो सकती है। सारे राजनीतिक नेता यह बोलने से बच रहे हैं। मीडिया के तो बेरोजगारी का सवाल उठाने का सवाल ही नहीं। वह तो पकौड़े तल कर बेचने का प्रोग्राम बनाकर बताता है कि इस में कितना मुनाफा है। और अगर नाले के पास बनाए जाएं, तो वहां की गैस से चाय भी बना कर साथ में दी जा सकती है। मगर यह इतने लकीर के फकीर हैं कि बिल्ली के बाहर जाने के लिए एक छेद और उसके बच्चे के बाहर जाने के लिए दूसरा छेद ही बनाने की सलाह अभी तक दे रहे हैं। केवल चाय नाले के गैस से बनाने की बात करते हैं। पकौड़े नहीं। मतलब चाय उस आग से बन जाएगी, पकौड़े नहीं बन पाएंगे! क्योंकि प्रधानमंत्री ने तो केवल नाले के गैस से चाय बनाने की बात कही है। प्रधानमंत्री जी कह दीजिए कि पकौड़े भी बन जाएंगे तो एक नया और बढ़िया पैकेज टीवी वालों के लिए तैयार हो जाएगा।
देश की आम जनता के मानसिक स्तर को नीचे ले जाने का काम हो रहा है। देशभक्ति में उपर ले जाया जाता है। पिछले 11 साल में आप देख रहे हैं सिवाय नफरत और विभाजन के लोगों के मन में कुछ और नहीं भरा। नतीजा यह हुआ कि आज भयानक बेरोजगारी के बाद भी कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं।
अखिलेश यादव ने बड़ी चेतावनी दी है। समझने की जरूरत है। देश का युवा निराशा में है। महंगी पढ़ाई लिखाई के बाद भी कोई काम नहीं। आपको बताते हैं एमबीबीएस करने के बाद डाक्टर प्राइवेट नर्सिंग होमों में तीस चालीस हजार रुपए महीने की नौकरी करने पर मजबूर हैं। उनके जाब की कोई नीति नहीं। दूसरी तरफ गांवों में डाक्टर नहीं। सरकारी हेल्थ सिस्टम पूरी तरह खत्म हो गया है। सब कुछ प्राइवेट हाथों में।
सोचिए जब देश में सबसे ज्यादा सामाजिक प्रतिष्ठा की डिग्री पाने वालों का यह हाल है तो बाकी डिग्री वालों का क्या होगा।
पहले पढ़ाई सरकारी थी। स्वास्थ्य सुविधाएं सरकारी थीं। मुफ्त। मगर अब सब कुछ उन प्राइवेट हाथों में जो बातें बड़ी बड़ी करने में नेताओं का मुकाबला कर रहे हैं। अभी अडानी ने अपने खिलाफ लिखने पर दिल्ली के एक कोर्ट में क्या कहकर स्टे लिया कि उसके खिलाफ लिखना देश का विरोध करना है। भाजपा, गोदी मीडिया भी यही कहता है कि मोदी सरकार के खिलाफ मतलब देश के खिलाफ!
युवा का नौकरी मांगना भी देश के खिलाफ है! युवा जिसे आज जेन जी कहा जा रहा है क्या करे?
बहुत सारे वास्तविक सवाल हैं। जवाब सब राष्ट्रवाद की अवास्तविक बातों में लिपटे हुए। फ्रांसिसी क्रान्ति से लेकर हिटलर और नेपाल सब यह समझते कि उनके खिलाफ नहीं होगा। लेकिन ऐसा होता नहीं!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)