ललित सुरजन की कलम से - नेहरू बनाम पटेल क्यों?
'एक अन्य आरोप बार-बार लगाया जाता है कि नेहरू-गांधी परिवार के शासनकाल में सरदार पटेल और नेताजी जैसे शीर्ष नेताओं की जानबूझ कर उपेक्षा की गई क्योंकि वे नेहरूजी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी थे;
'एक अन्य आरोप बार-बार लगाया जाता है कि नेहरू-गांधी परिवार के शासनकाल में सरदार पटेल और नेताजी जैसे शीर्ष नेताओं की जानबूझ कर उपेक्षा की गई क्योंकि वे नेहरूजी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी थे। यह भी एक अनर्गल आरोप है।
नेताजी ने तो गांधीजी से नाराज होकर कांग्रेस से अपना नाता तोड़ लिया था। फिर वे भारत की आज़ादी में सहयोग लेने के लिए जर्मनी में हिटलर और जापान में जनरल तोजो के पास भी चले गए थे।
1945 में विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया था। इन तथ्यों की रोशनी में पंडित नेहरू के साथ उनकी प्रतिद्वंद्विता का कोई प्रश्न ही नहीं था। सरदार पटेल और नेहरूजी के संबंधों की चर्चा हम ऊपर कर आए हैं। यहां एक स्मरणीय तथ्य है कि सरदार पटेल की सेवाएं स्वतंत्र देश को मात्र तीन वर्ष तक ही मिल सकीं।
1950 में तो उनका निधन ही हो गया। फिर भी सरदार पटेल हों या नेताजी, मैं नहीं समझता कि इन दोनों का सम्मान करने में देश की जनता ने या जनता के द्वारा चुनी सरकार ने कोई कोताही बरती हो। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि कांग्रेस ने सरदार पटेल की सुपुत्री मणिबेन एवं सुपुत्र डाह्या भाई पटेल दोनों को पहिले लोकसभा में फिर राज्यसभा में भेजा।
मणिबेन तो गुजरात प्रदेश कांग्रेस की उपाध्यक्ष भी रहीं। आज से पैंसठ साल पहले मैं जब स्कूल का विद्यार्थी था तब भी इन दोनों महापुरुषों की जीवनी सरकारी स्कूल की पाठ्य पुस्तकों में शामिल थीं और जहां तक मेरी जानकारी है आज भी वही स्थिति है।'
(देशबन्धु में 06 नवंबर 2014 को प्रकाशित)
https://lalitsurjan.blogspot.com/2014/11/blog-post.html