ललित सुरजन की कलम से - जीएसटी : परेशानियों का अंबार

द इकॉनामिस्ट के इस अंक में भारत के वर्तमान परिदृश्य पर तीन लेख हैं। एक लेख में कहा गया है कि जीएसटी का स्वागत है;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-09-04 20:34 GMT

द इकॉनामिस्ट के इस अंक में भारत के वर्तमान परिदृश्य पर तीन लेख हैं। एक लेख में कहा गया है कि जीएसटी का स्वागत है, किन्तु यह अनावश्यक रूप से जटिल और लालफीताशाही से ग्रस्त है जिसके कारण इसकी उपादेयता बहुत घट गई है।

पत्रिका यह भी कहती है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही जोरदार प्रचार के साथ बहुत सी योजनाएं प्रारंभ कर दी हों, लेकिन इनमें से अनेक तो पहले से चली आ रही थीं। जीएसटी का प्रस्ताव भी पुराना था।

पत्रिका नोट करती है कि अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए जिस व्यवस्थित रूप में कार्य होना चाहिए उसे नरेन्द्र मोदी करने में समर्थ प्रतीत नहीं होते। जीएसटी की चर्चा करते हुए द इकानॉमिस्ट का कहना है कि अब पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा फार्म भरना पड़ेंगे। इसके अलावा जीएसटी वाले अन्य देशों में जहां टैक्स की सिर्फ एक दर है वहां भारत में शून्य से लेकर अठ्ठाइस तक दरें तय की गई हैं।

इसके चलते सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में जो दो प्रतिशत की वृद्धि अनुमानित की गई थी वह अब शायद एक प्रतिशत भी न बढ़ पाए।

(देशबन्धु में 13 जुलाई 2017 को प्रकाशित)

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