'डिनर प्लेट प्लांट' : कनकचंपा

मेरी कॉलोनी के बगीचे में कुछ वर्ष पूर्व वृक्षारोपण किया गया था। बड़े पैमाने पर नगर निगम से आए तरह-तरह के लगभग 50 पेड़-पौधे लगाए गए थे;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-11-17 21:19 GMT
  • डॉ. किशोर पंवार

पत्तल-दोने बनाने के काम में आने वाले पलाश, साल और माहुर बेल के पत्तों को तो उनके पेड़ों से, जब वे हरे होते हैं तभी तोड़ना पड़ता है। वहीं कनकचंपा के पेड़ स्वयं ही अपने पत्ते खिरा देते हैं। इसके पत्ते भी पलाश और साल के पत्तों की तुलना में दुगने, तिगने बड़े हैं। एक-दो पत्तों से ही पूरी डिनर प्लेट बन जाएगी। दोने भी एक ही पत्ते से बिना सिले, बिना जोड़-तोड़ के बन सकते हैं।

मेरी कॉलोनी के बगीचे में कुछ वर्ष पूर्व वृक्षारोपण किया गया था। बड़े पैमाने पर नगर निगम से आए तरह-तरह के लगभग 50 पेड़-पौधे लगाए गए थे। कॉलोनी के लोग जानते थे कि मेरा वनस्पतियों से कुछ नाता है, इसलिए उन्हें व्यवस्थित रूप से लगाने का जिम्मा मुझे सौंपा गया था। इस पौधारोपण के दौरान नीम, आम, जाम, जामुन, अशोक, बेल, बाटलब्रश आदि के पौधे लगाए गए थे। एक-दो पौधे ऐसे भी थे, जिनसे मैं अनजान था।

इस बात को अब लगभग 15 वर्ष हो चुके हैं और अब ये सब फूलने-फलने लगे हैं। चिड़ियों की आमद-रफ़्त भी इन फलदार वृक्षों के कारण बढ़ गई है। पौधे अब 30-40 फीट तक ऊंचे वृक्ष बन चुके हैं। पौधारोपण के समय उन अनजान पौधों को भी बड़े अनमने मन से लगा तो दिया था, यह सोचकर कि बड़ा होने पर देखेंगे यह क्या है, कौन सा है? उनमें से आज एक पेड़ मुझे सबसे ज्यादा अच्छा लगता है।

यह एक लगभग 35 से 40 फीट ऊंचा सदाबहार वृक्ष है। इसकी पत्तियां बहुत बड़ी, लंबी-चौड़ी होती हैं, ऊपर से गहरी हरी, नीचे से हल्की पीली। एक बड़े से डंठल पर शाखों पर लगी हुई, लगभग आयताकार ट्रे जैसी। सबसे ज्यादा आकर्षक मुझे इसके बड़े-बड़े फूल लगते हैं जो सुबह-सुबह पलाश और सेमल की तरह नीचे जमीन पर पड़े मिलते हैं।

इसकी पंखुड़ियां एकदम सफेद, मोटी, मांसल होती हैं। रात में फूल खिलते हैं जिनकी उम्र कुल जमा एक रात होती है। बहुत ही मधुर मीठी सुगंध वाले फूल जिनका परागण निशाचर चमगादड़ों द्वारा होता है। जी हां, वही चमगादड़ जो हमें गंदे, डरावने लगते हैं, पर हैं बड़े उपयोगी। इसके फूल और फल दोनों लगभग 15 सेंटीमीटर लंबे होते हैं। फल एकदम कड़क, लकड़ीनुमा, जिसके फटने पर ढेर सारे पंखदार बीज हवा में उड़ते हैं। शेष भाग जलाने के काम में लाया जा सकता है।

फरवरी के अंतिम सप्ताह में ये बड़े-बड़े पत्ते अपने आप खिर जाते हैं जो हवा में इधर-उधर बड़ी मात्रा में उड़ते रहते हैं। इसके बड़े, लंबे-चौड़े पत्ते मुझे हमेशा लुभाते हैं। कुछ पत्ते तो एक फीट से भी ज्यादा लंबे-चौड़े होते हैं। फूलों का मखमलीपन भी कम नहीं है। पत्तों और फूलों की इन खासियतों के चलते इसका नाम पता लगाना अब तो बहुत ही जरूरी हो चुका था।

मेरे पास लेखक और फिल्मकार प्रदीप कृष्ण की एक किताब थी- 'ट्रीज ऑफ डेल्ही, ए फील्ड गाइड।' बस, उसमें मैंने इसे एक दिन ढूंढ ही लिया। इसकी पत्तियां और इसके फूलों के सहारे इसके कई नाम पता चले - कनकचंपा, कठचंपा, मुचकुंद, 'मेपल लीफ बियर।' इसका अंग्रेजी नाम भी बड़ा ही सार्थक है, जो उसकी लंबी-चौड़ी पत्तियों की ओर इशारा करता है-'डिनर प्लेट ट्री।' इसका वैज्ञानिक नाम है- 'टैरोस्पर्मम ऐसरी फोलियम।' इस नाम का शाब्दिक अर्थ है, पंखदार बीज वाला और ऐसर की पत्तियां जैसा वृक्ष।

यह पेड़ सामान्यत: अपने मूल स्थान, यानी हिमालय में सदाबहार है। मध्यप्रदेश और उड़ीसा में इसके पेड़ जंगलों में मिलते हैं। बाग-बगीचों में लगाने के लिए यह एक सुंदर, उपयोगी पेड़ है। इसके औषधि महत्व भी हैं, पर मेरा ध्यान तो इसके बड़े-बड़े प्लेटनुमा पत्तों पर ही ज्यादा है जो सूखने पर कड़क और चमड़े जैसे हो जाते हैं और फाड़ने पर भी आसानी से फटते नहीं हैं।

जब हम ऐसे पेड़ों की बात करते हैं जिनसे पारंपरिक रूप से पत्तल-दोने बनाए जाते हैं तो उनमें पलाश, साल और माहुर बेल का नाम आता है। इनका उपयोग बड़े पैमाने पर किया भी जा रहा है, पर मुझे तो लगता है कि जो पेड़ अपने आप अपने सारे पत्ते खिरा देता है, उसकी खाने की थाली और कटोरियां बेहतर। प्लास्टिक और थर्माकोल की हानिकारक तथा पर्यावरण की दुश्मन प्लेटों की बजाए।

पत्तल-दोने बनाने के काम में आने वाले पलाश, साल और माहुर बेल के पत्तों को तो उनके पेड़ों से, जब वे हरे होते हैं तभी तोड़ना पड़ता है। वहीं कनकचंपा के पेड़ स्वयं ही अपने पत्ते खिरा देते हैं। इसके पत्ते भी पलाश और साल के पत्तों की तुलना में दुगने, तिगने बड़े हैं। एक-दो पत्तों से ही पूरी डिनर प्लेट बन जाएगी। दोने भी एक ही पत्ते से बिना सिले, बिना जोड़-तोड़ के बन सकते हैं। ये पत्ते इतने कड़क और वाटरप्रूफ हैं कि इनमें आपको अन्य पत्तों की तरह पॉलिथीन की लेयर भी लगाने की जरूरत नहीं है।

कहां लगाएं 'डिनर प्लेट प्लांट?' ग्रीन-बेल्ट, सड़कों के किनारे, बाग-बगीचों, सरकारी उपक्रमों, स्कूल-कॉलेज में पड़ी खाली जगहों पर इसे बड़े पैमाने पर लगाना चाहिए। अशोक, नीम, करंज, बाटलब्रश, चंदन, गुलमोहर आदि के पत्तों का तो कोई उपयोग नहीं होता, परंतु अगर इसे बड़े पैमाने पर लगाया जाए तो इसके पत्तों का उपयोग पत्तल-दोना बनाने जैसे गृह-उद्योग में किया जा सकता है और इससे स्थानीय स्तर पर ही उपयोगी सामग्री उपलब्ध कराई जा सकती है।

इस अनजाने से पेड़ पर दोना-पत्तल बनाने की दृष्टि से ध्यान दिए जाना जरूरी है। क्या पता एक नया व्यवसाय चल निकले। एक नया स्टार्टअप, एक नया गृह-उद्योग। यूं भी आजकल इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल चीजों का जमाना है। प्लास्टिक और थर्माकोल के खतरे को हम जान ही चुके हैं, तो उनसे दूरी और कनकचंपा से दोस्ती करने का यह सही समय है।

(लेखक पर्यावरण के विविध पहलुओं पर लिखते हैं। वे इन्दौर के होल्कर सॉइस कॉलेज से सेवा निवृत्त प्राध्यापक हैं।)

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