ललित सुरजन की कलम से - यदि भ्रष्टाचार रावण तो राम कहाँ ?
'यह बात हम जानते हैं कि रावण का निवास सोने की लंका में था। यदि भ्रष्टाचार से लड़ना है तो सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि यह सोने की लंका कहां है;
'यह बात हम जानते हैं कि रावण का निवास सोने की लंका में था। यदि भ्रष्टाचार से लड़ना है तो सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि यह सोने की लंका कहां है? इसे जानने के लिए बहुत ज्यादा माथापच्ची करने की आवश्यकता नहीं है।
सोने की लंका सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं है। बल्कि उसका विस्तार नेता, अफसर और व्यापारी के त्रिलोक में है। जिन लोगों ने लाइसेंस परमिट राज्य खत्म कर बंधनमुक्त उद्यमशीलता (फ्री इंटरप्राइज) की वकालत की थी, वे ही उदारीकरण के इस युग में अपनी सोने की लंका में अपनी गगनचुंबी अट्टालिकाएं खड़ी कर रहे हैं। इस लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र लांघने की जरूरत है।
पुल बांधने से पहले पुल बांधने की इच्छा शक्ति चाहिए। और उसके भी पहले रास्ता तलाश करने की दृष्टि भी। रावण से लड़ने राम अकेले नहीं गए थे, जनता अपना हृदय टटोलकर देखे कि क्या उसमें राम का कोई अंश है?'
(31 मार्च 2011 को प्रकाशित)
http://lalitsurjan.blogspot.com/2012/04/6_22.html