उर्दू मीडिया के साथ भेदभाव में घिरी भाजपा
पिछले सप्ताह इसी जगह महिला पत्रकारों के साथ हुए भेदभाव पर लिखने की जरूरत पड़ी थी और अब एक बार फिर ऐसा ही दूसरा विषय सामने आ खड़ा हुआ है;
- सर्वमित्रा सुरजन
इस समारोह में दिल्ली कैबिनेट के सारे मंत्री उपस्थित थे। लेकिन द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक पिछली सरकारों की परंपरा को तोड़ते हुए उर्दू मीडिया से जुड़े किसी पत्रकार और उन उर्दू पत्रकारों को भी इस मिलन समारोह में नहीं बुलाया, जो लंबे समय से दिल्ली सरकार और भाजपा को कवर करते आ रहे हैं।
पिछले सप्ताह इसी जगह महिला पत्रकारों के साथ हुए भेदभाव पर लिखने की जरूरत पड़ी थी और अब एक बार फिर ऐसा ही दूसरा विषय सामने आ खड़ा हुआ है। द वायर में फै़याज़ अहमद वजीह की रिपोर्ट है कि दिल्ली की भाजपा सरकार किस तरह उर्दू पत्रकारों के साथ भेदभाव भरा सौतेला व्यवहार कर रही है। खास बात ये है कि भाजपा ने दीपावली जैसे बड़े त्योहार के अवसर पर अपनी संकुचित मानसिकता को जाहिर किया है। हिंदुस्तान में होली, दीपावली, ईद, क्रिसमस केवल धर्मविशेष के त्योहार नहीं हैं, इनका अपना सामाजिक, सांस्कृतिक महत्व है। एक-दूसरे के घर जाकर त्योहार की खुशी मनाई जाती है। मिठाइयों, तोहफों से जीवन में नए उत्साह भरा जाता है। बाजारों में रौनक छा जाती है, लोग दिन भर के काम और थकान के बावजूद बाहर निकलते हैं और इस रौनक का आनंद लेते हैं। यह सब हिंदुस्तान में ही होता है, क्योंकि यहां का संविधान सारे धर्मों को एक बराबर मानता है। राजनैतिक दल भी इन त्योहारों का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व समझते हैं, इसलिए वे भी अपने स्तर पर सार्वजनिक मिलन समारोह आयोजित करते हैं। जो दल सत्ता में होता है, वह सरकार के जरिए विभिन्न तबकों के लोगों तक पहुंचता है, खासकर पत्रकारों से विचारों के आदान-प्रदान का यह अच्छा मौका होता है, इसलिए तकरीबन हर राज्य में सरकारें दीपावली मिलन, होली मिलन या नए साल पर भोज जैसा आयोजन करती हैं।
दिल्ली में भी अरसे से दीपावली मिलन पत्रकारों के लिए आयोजित किया जाता रहा है। इस बार 13 अक्टूबर को दिल्ली सरकार के सूचना एवं प्रचार निदेशालय ने अशोका होटल में 'दीपावली मंगल मिलन' कार्यक्रम रखा, जिसमें प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साथ विशेष संवाद और बातचीत के लिए आमंत्रित किया था। इस समारोह में दिल्ली कैबिनेट के सारे मंत्री उपस्थित थे। लेकिन द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक पिछली सरकारों की परंपरा को तोड़ते हुए उर्दू मीडिया से जुड़े किसी पत्रकार और उन उर्दू पत्रकारों को भी इस मिलन समारोह में नहीं बुलाया, जो लंबे समय से दिल्ली सरकार और भाजपा को कवर करते आ रहे हैं। शायद ये पहला मौक़ा था जब दिल्ली सरकार ने उर्दू मीडिया से दूरी बनाने की कोशिश की। पत्रकारों के बीच इसे अल्पसंख्यक विरोधी क़दम बताया जा रहा है, और इसे उर्दू और उर्दू वालों को छोटा दिखाने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है।
बताया जा रहा है कि समारोह में शिरकत के लिए निमंत्रण डीआईपी निदेशक सुशील सिंह द्वारा वॉट्सऐप पर भेजा गया था। लेकिन क्या यह चुनिंदा पत्रकारों को ही भेजा गया या इसमें उर्दू पत्रकारों को जानबूझ कर दूर रखा गया, यह सवाल कायम है। इस आयोजन के बाद मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कुछ तस्वीरों के साथ पोस्ट लिखी है कि आज दिवाली मंगल मिलन समारोह में हमारे मीडिया बंधुओं से आत्मीय संवाद का अवसर मिला। कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्रीगण श्री प्रवेश साहिब सिंह जी, श्री आशीष सूद जी, श्री मनजिंदर सिंह सिरसा जी, श्री रविन्द्र इन्द्राज जी एवं श्री कपिल मिश्रा जी की गरिमामयी उपस्थिति रही। मीडिया के सभी साथियों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। जो तस्वीरें शेयर की गई हैं उनमें इलेक्ट्रानिक मीडिया के भाजपा की तरफ झुकाव वाले पत्रकार नजर आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि रेखा गुप्ता ने हरेक मेज पर जाकर पत्रकारों से चर्चा की। इस दौरान पत्रकारों ने मुख्यमंत्री के सामने अपनी चिंताएं भी रखीं और वरिष्ठ पत्रकारों ने दिल्ली में डीआईपी 'मान्यता समिति' के नवीनीकरण नहीं होने का मामला उठाया। लेकिन इन पत्रकारों ने इस बात को क्यों नहीं उठाया कि उर्दू मीडिया के उनके साथी इस आयोजन में नज़र क्यों नहीं आ रहे। खुद रेखा गुप्ता को यह बात खटकी क्यों नहीं कि उनके किसी आयोजन में उर्दू पत्रकारों को दूर क्यों रखा गया है। याद कीजिए यही सवाल तालिबान सरकार के विदेश मंत्री की प्रेस कांफ्रेंस के वक्त भी उठे थे कि तालिबान ने तो महिला और पुरुष में भेदभाव को जाहिर किया, लेकिन उनकी प्रेस कांफ्रेंस में आमंत्रित पुरुष पत्रकारों ने अपनी महिला साथियों के लिए आवाज क्यों नहीं उठाई। यही सवाल अब हिंदी, अंग्रेजी के पत्रकारों के लिए है कि उर्दू के उनके साथी पत्रकारों के साथ अगर भेदभाव हो रहा है, तो यह बात उन्हें खटक क्यों नहीं रही। क्या सरकार की तरफ से मिली दावत उनके नैतिक मूल्यों पर भारी पड़ चुकी है।
अगर भेदभाव को इतनी आसानी से समाज में जगह बनाने दी जा रही है, तो यह देश के लिए काफी खतरनाक बात है। वहीं पत्रकारों के लिए यह बड़ी शर्म की बात है कि वे जरा से फायदे के लिए अपने मूल्यों को गिरवी रख चुके हैं। वैसे बताया जा रहा है कि सरकार के इस क़दम से नाराज़ कई पत्रकारों ने दिल्ली सरकार के पीआर डिपार्टमेंट में इस मामले को मजबूती उठाने की बात कही है। दावा किया जा रहा है कि भाषा के स्तर पर ऐसे भेदभाव का यह पहला मामला है। लेकिन इस शिकायत का बेहतर असर तब होता, जब पत्रकार भेदभाव को अस्वीकार करते हुए इस आयोजन का बहिष्कार कर देते। अगर दिल्ली के पत्रकार ऐसा करने की हिम्मत दिखाते तो इसका बड़ा संदेश देश और दुनिया में जाता। मगर एक बार फिर यहां भाजपा की कुटिल नीति जीत गई।
इस मामले में कांग्रेस की प्रतिक्रिया अभी देखने नहीं मिली है। लेकिन आम आदमी पार्टी के नेता और पूर्व खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री इमरान हुसैन ने भाजपा पर सांप्रदायिक राजनीति का आरोप लगाते हुए कहा है कि, 'उर्दू पत्रकारों के साथ सौतेला बर्ताव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।' उन्होंने ये भी इल्ज़ाम लगाया कि इससे पहले उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उर्दू के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी की थी, अब ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता उनसे भी आगे निकलना चाहती हैं।'
वहीं उर्दू अख़बार 'हमारा समाज' के संपादक सादिक शेरवानी ने द वायर को बताया, 'दिल्ली की पिछली भाजपा सरकार के समय भी उर्दू मीडिया के साथ इस तरह का सुलूक नहीं किया गया था, बल्कि मदन लाल खुराना और सुषमा स्वराज उर्दू-प्रेमी समझे जाते थे। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं और ऐसा माना जाता है कि भाजपा हर वो काम करती है, जो उसके तुष्टीकरण की राजनीति को मज़बूत कर सकती है।' उन्होंने कहा, उर्दू 'सिर्फ़ मुसलमानों की ज़बान नहीं है, लेकिन भाजपा ऐसा संदेश देना चाहती है कि ये मुसलमानों की ज़बान है।'
सादिक यह भी कहते हैं कि अगर ये 'चूक' है तो कैसे मुमकिन है कि उर्दू मीडिया से जुड़े किसी भी पत्रकार को निमंत्रण नहीं मिला। अगर ये चूक होती तो किसी एक मीडिया संस्थान के पत्रकार तो इस समारोह में होते। 'हमारा समाज' से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार संजय गोयल ने पूछा कि आख़िर उर्दू भाषा से जुड़े पत्रकारों की अनदेखी क्यों की गई, जबकि उर्दू दिल्ली की दूसरी आधिकारिक भाषा है।' श्री गोयल ने भी भाजपा की पिछली सरकारों को याद करते हुए कहा कि, '1993 से 1998 तक दिल्ली में पहली बार भाजपा सरकार बनी थी, जिसमें मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और कुछ महीनों के लिए सुषमा स्वराज भी मुख्यमंत्री थीं, तब न सिर्फ सरकारी स्तर पर, बल्कि पार्टी स्तर पर भी उर्दू के साथ कभी कोई भेदभाव नहीं हुआ।'
'हिंदुस्तान एक्सप्रेस' से जुड़े पत्रकार फरहान यह्या ने द वायर को बताया, 'मैं 2007 से एक्रीडेटेड पत्रकार हूं, और इससे पहले जब शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल की सरकारें थीं तो हमेशा दीपावली और दूसरे मौकों पर कभी ऐसा नहीं हुआ कि भाषा की बुनियाद पर पत्रकारों के साथ भेदभाव किया गया। पहली बार ऐसा हुआ है कि उर्दू के किसी सहाफ़ी को नहीं बुलाया गया।' वो कहते हैं, 'उर्दू पत्रकारों को इस बात का दु:ख नहीं है कि उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया, बल्कि उन्हें इस बात से ठेस पहुंची है कि इस सरकार ने भाषा के नाम पर पत्रकारों को बांटने की कोशिश की है।' फरहान का दावा है कि 'बहुत जल्द उर्दू मीडिया से जुड़े पत्रकार दिल्ली के उपराज्यपाल से मुलाक़ात करेंगे।'
अगर उर्दू मीडिया के पत्रकार अपनी शिकायत दर्ज करवाते हैं, तो यह उनका हक है, लेकिन यहीं बाकी पत्रकारों पर सवाल खड़े होते हैं कि क्या हक की इस लड़ाई में वो उर्दू पत्रकारों के साथ खड़े रहेंगे। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक मासूम मुरादाबादी ने बताया, 'सरकार का जो रवैया उर्दू के साथ है वही रवैया उर्दू के पत्रकारों और अखबारों के साथ भी है, मौजूदा व्यवस्था में उर्दू के लिए कोई जगह नहीं है। आम आदमी पार्टी की सरकार तक उर्दू अख़बारों को इश्तिहार मिलता था, वो अब नदारद है। ये पूर्वाग्रह और संकीर्णता है, और इनका जो एजेंडा है उसमें ये कोई हैरतअंगेज बात भी नहीं है।'
रेखा गुप्ता भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के संरक्षण में इन आरोपों से निपटने में सक्षम हैं और हो सकता है कि ये मुद्दा कुछ दिनों में दब भी जाए। लेकिन समाज इस भेदभाव की अनदेखी करता रहेगा, तो खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी मारेगा।