साहित्यकार के घर की रद्दी
पत्नी का इशारा पा वे पत्रिकाओं को चोरी के माल की तरह धड़ा धड़ कट्टे में भरने लगे;
- दिनेश विजयवर्गीय
पत्नी का इशारा पा वे पत्रिकाओं को चोरी के माल की तरह धड़ा धड़ कट्टे में भरने लगे । मैं उन्हें अब क्या करूं क्या न करूं के भाव से चुप चुप देखता रहा । तभी गली से कबाड़ी की आवाज सुनाई दी। पत्नी ने उत्साही कदमों से बाहर जाकर उसे रोककर रद्दी ले जाने को कहा । देखते-देखते सारी रद्दी के ठेले पर लद गई। पत्नी मन ही मन मुस्काती पांच सौ रुपए का नोट अंटी में दबा किचन की ओर चल पड़ी।
दिवाली पर मुझे अपनी पत्र पत्रिकाओं को लेकर हर वर्ष होने वाली घर की सफाई पर चिंता होने लगती है। इसी चिंता के चलते रात को देर से नींद आई । दो घंटे के बाद ही शातिर चिंता ने नीद चुरा ली। फिर करवट बदल बदल कर भी नींद नहीं आई ।
दिन में खाना खाकर सोने का मन बनाया। कुछ देर नई आई पत्रिका को देखने ही लगा था कि झपकी लग गई । एक घंटे की नींद लेकर उठा तो देखता हूं कि मेरे चारों ओर फर्श पर ढेर सारी पत्रिकाएं पड़ी हैं। लगता है आज वह दिन आ गया जिसका मुझे डर था। लगता है स्टडी रूम की दोनों अलमारियां खाली कर दीं। मैं इन्हें बचाने की बारे में कोई जुगाड़ बिठा ही रहा था कि तभी पत्नी आकर बोली 'जल्दी से इन पत्रिकाओं में से जो आर्टिकल रखने हों उन्हें अलग निकाल लें। '
मैं पत्रिका से आर्टिकल निकालने के बारे में सोच ही रहा था कि पत्नी चाय का गिलास लिए आ गई। और चेतावनी वाले शब्दों में दो टूक बात कह डाली। 'चाय पीकर अपने मनचाहे आर्टिकल निकाल कर सारी रद्दी इस प्लास्टिक के कट्टे में डाल देना । अभी शाम को कबाड़ी आयेगा उसे बेच देंगे।'
मैंने फर्श पर पड़ी पत्रिकाओं की ओर भावुक हो ऐसे निहारा जैसे घर से बेटी विदा हो रही हो । आज वर्षों से मेरा साहित्यिक भंडार सजा कर रखने वाली पत्रिकाएं बस पल दो पल में ही यहां से चल कर कबाड़ी के पास जाकर रद्दी की भाषा में परिणित हो जाएंगी। मैंने चाय पी और पत्रिकाओं में से अपनी प्रकाशित तथा अन्य कोई मेरी पसंद की रचनाएं निकालने लगा । तभी भाप के इंजन सी सूंसा करती झाड़ू लिए पत्नी आ धमकी। 'अभी तक पढ़ाई ही चल रही है क्या ? अरे ! छोड़ो इन्हें, जाने भी दो रद्दी में । जो लिखा छपा है अब उससे क्या मोह ?' ' कई बार प्रकाशित रचनाओं को देखने पढ़ने का मन करता है। इसलिए इनके प्रति मोह बना हुआ है।' 'अच्छा ,एक बात बताइये ,पूरा एक साल गुजर गया , कौन सी पत्रिका अलमारी में से निकाल कर पढ़ी ? जिसे लिखने का शौक है वह पीछे मुड़कर नहीं देखता,। कुछ नया लिखने की सोचता है । अब बंद करो और इन सब पत्रिकाओं को और इस कट्टे में डाल दो।' तभी दो बच्चे कहीं से खेलते कूदते वहां आ खड़े हुए।
पत्नी का इशारा पा वे पत्रिकाओं को चोरी के माल की तरह धड़ा धड़ कट्टे में भरने लगे । मैं उन्हें अब क्या करूं क्या न करूं के भाव से चुप चुप देखता रहा । तभी गली से कबाड़ी की आवाज सुनाई दी। पत्नी ने उत्साही कदमों से बाहर जाकर उसे रोककर रद्दी ले जाने को कहा । देखते-देखते सारी रद्दी के ठेले पर लद गई। पत्नी मन ही मन मुस्काती पांच सौ रुपए का नोट अंटी में दबा किचन की ओर चल पड़ी।
मैंने बाहर निकल कर देखा , कबाड़ी पास वाले गुप्ता जी के यहां से भी रद्दी समेट रहा था । रद्दी वाले ने मेरी और देखा जैसे मुझे चिढ़ा रहा हो।**