दिल सैयारा हो गया

जब मदारी हमारे गांव में तमाशा दिखाने आता था, तो उसके साथ में एक नटखट छोकरा भी होता था;

By :  Deshbandhu
Update: 2025-08-02 21:00 GMT

- सुरेश सौरभ

जब मदारी हमारे गांव में तमाशा दिखाने आता था, तो उसके साथ में एक नटखट छोकरा भी होता था। जिसे लोग जमूरा-जमूरा कह कर पुकारते थे। जब मदारी अपना खेल-तमाशा शुरू करता, तब वह जमूरा, कभी हंसता, कभी रोता चिल्लाता, कभी गाता-गुनगुनाता। तमाम मसखरी के अनोखे करतब करता हुआ, वह लोगों का भरपूर मनोरंजन करता था। तब बड़ा मजा आता था। मदारी और जमूरे का वह अनूठा करिश्माई करतब देखकर, सब हैरत में पड जाते थे।

साहेबान, मेहरबान, कद्रदान आइए हमारे पास, दिखाते हैं, अभी आपको बंगाल का मशहूर काला जादू... बनाते हैं, इस छड़ी को अभी सांप और लाते हैं, अभी आगरे का फेमस यहां ताज, गिली-गिली अप-अप...ऐसे कई जुमले कई दिनों तक दिलोदिमाग पर नाचते रहते थे।

मदारी के बिना इशारे इतने अनोखे दिलचस्प करतब जमूरा कैसे कर पाता है, यह हम कतई जान न पाते थे, पर जब थोड़ा बड़ा हुआ-तब बड़े लोगों ने हमें बताया कि सब माया का खेला होता है, जमूरे और मदारी के फिक्स बिजनेस का यह सब रेला होता है।

सैयारा फिल्म देखने के बाद थियेटर के बाहर और अंदर जिस तरह के इमोशनल करतब, लड़के-लड़कियां दिखा हैं, मुझे तो बरबस उस जमूरे की याद आ रही है, जो कभी अपनी शर्ट उतार कर बेहद भावुक होकर आँसू बहाते हुए, नाचता था, गाता था। चिल्लाता था। वह जमाना भी क्या, मनोरंजन का मजेदार जमाना था। अब सयाने लोग तो सैंयारा का पूरा मामला जमूरे और मदारी वाले उसी मैच फिक्सिंग का बता रहे हैं, कैसे कोई रोयेगा, कैसे कोई गायेगा, किस एंगल्स से कहां कौन जमूरा अधनंगा होकर दहाड़ेगा, चिल्लाएगा, मदारी ने पहले से ही यह सब फिक्स करके रखा है। और वह मदारी है, महोदय माया का। तगड़ी मार्केटिंग का। पेड मीडिया-सोशल मीडिया का। अब इन जमूरों की देखा-देखी कुछ नादान, ब्रेकअप से चोटिल-घायल हो चुके दिल भी फुदकने-मचलने लगे हैं,और मजे लेने वाले, दांत चियारते हुए उनकी रील बनाने लगे, सैयारा सैयारा जमूरे सा वह भी फालतू में गाने लगे।

विकसित देशों के युवा नयी-नयी खोज कर रहे हैं, नये-नये अविष्कार करके अपने देश को नित नई ऊंचाइयों तक पहुंचा रहे हैं, और हमारे यहां के युवा चंद जमूरो और मदारियों चक्कर में आकर घनचक्कर बनकर लवेरिया का राग अलाप रहे हैं।

कहते हैं, जिधर जवानी चलती है, उधर जमाना चलता है, हमारे यहां के अगर तमाम जवान लड़के-लड़कियों का दिल सैयारा-सैयारा हो रहा है, तो ऐसा लगता है कि देश में टूटे दिलों को जोड़ने के लिये, उनकी संवेदनाओं को संजोने के लिए सरकार को एक राष्ट्रीय आयोग बनाना चाहिए, रोजगार अशिक्षा, भ्रष्टाचार, सामाजिक भेदभाव से बड़ी, अगर कोई समस्या है तो वह हमारे यहां चोट खाए टूटे तड़पते दिलों की ही है।

 

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