सूरत बता रहा गुजरात के राजनैतिक मॉडल का सूरत-ए-हाल
सूरत लोकसभा सीट पर 7 मई को मतदान होना था, परन्तु भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल को इसके बहुत पहले सोमवार को निर्वाचित होने का सर्टिफिकेट दे दिया गया। कारण है उनका निर्विरोध निर्वाचन;
- डॉ. दीपक पाचपोर
सूरत लोकसभा सीट पर 7 मई को मतदान होना था, परन्तु भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल को इसके बहुत पहले सोमवार को निर्वाचित होने का सर्टिफिकेट दे दिया गया। कारण है उनका निर्विरोध निर्वाचन। कहने को तो उनके खिलाफ कांग्रेस के निलेश कुंभानी, बहुजन समाज पार्टी के प्यारेलाल भारती आदि समेत 11 लोग चुनावी मैदान में थे। इनमें से कुछ स्थानीय छोटे दलों से थे तो कुछ निर्दलीय प्रत्याशी थे।
एक ओर तो तमाम सर्वे बतला रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने खुद के बल पर 370 और अपने गठबन्धन नेशनल डेमोक्रेटिक एलाएंस (एनडीए) के साथ 400 सीटें जीतने का जो लक्ष्य रखा है वह हासिल करने योग्य बिलकुल नहीं है, वहीं दूसरी तरफ़ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत भाजपा के सारे नेता और स्टार प्रचारक जिस प्रकार से कांग्रेस व इंडिया गठबन्धन पर हमलावर हैं- वह भी कमर के नीचे वार करते हुए- उससे भी साफ है कि स्वयं भाजपा जान चुकी है कि यह लक्ष्य पाना नामुमकिन है, लेकिन गुजरात के सूरत में जो हुआ है अगर भाजपा उसी तरीके से चुनाव लड़ने जा रही है तो कहा जा सकता है कि वह 400 तो क्या 4000 सीटें भी पा सकती है, जैसा कि ज़ुबान फिसलने के कारण जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार मोदी की मौजूदगी में ही एक सभा में बोल पड़े थे। वैसे सूरत लोकसभा सीट पर जो सियासी तमाशा हुआ है वह देश के संसदीय इतिहास का अभूतपूर्व मामला है। यह इस बात का भी संकेत है कि भारत की राजनीति किस ओर जा रही है और आने वाले दिनों में देश का सूरत-ए-हाल क्या होगा। चेतावनी की घंटी इसी को कहते हैं। इस घटना से यह पता चलता है कि भाजपा 400 पार जाने के लिये कितनी उतावली है और उससे यह भी समझा जा सकता है कि उसे रोका जाना क्यों आवश्यक है।
सूरत लोकसभा सीट पर 7 मई को मतदान होना था, परन्तु भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल को इसके बहुत पहले सोमवार को निर्वाचित होने का सर्टिफिकेट दे दिया गया। कारण है उनका निर्विरोध निर्वाचन। कहने को तो उनके खिलाफ कांग्रेस के निलेश कुंभानी, बहुजन समाज पार्टी के प्यारेलाल भारती आदि समेत 11 लोग चुनावी मैदान में थे। इनमें से कुछ स्थानीय छोटे दलों से थे तो कुछ निर्दलीय प्रत्याशी थे। यहां तक कि कांग्रेस ने वैकल्पिक उम्मीदवार सुरेश पडसाला को भी खड़ा किया था, पर दोनों के नामांकन खारिज कर दिये गये और 8 उम्मीदवारों ने एक के बाद एक निर्वाचन अधिकारी से यह कहकर अपने नामांकन वापस ले लिये कि उनके नामांकन प्रपत्रों पर जो हस्ताक्षर हैं, वे उनके नहीं हैं। अब ये सारे प्रत्याशी लापता हैं। सोमवार ही नामांकन वापसी की अंतिम तारीख थी। इस सियासी किस्से में कई लोचे हैं।
सवाल तो यह है कि जब नामांकन पत्र पर निर्वाचन अधिकारी यानी डीएम के ही समक्ष दस्तखत होते हैं और प्रस्तावकों की भी भौतिक उपस्थिति में दस्तखत करने होते हैं तो उनके नकली होने का सवाल ही कहां पैदा होता है। आनन-फानन में सर्टिफिकेट देने का मतलब है कि मामले की फाइल अब बन्द हो गई है। जिसे जाना है वह कोर्ट जाये। मजेदार बात तो यह है कि कुंभानी के प्रस्तावकों के हस्ताक्षर फर्जी होने का भी आरोप भाजपा उम्मीदवार की ओर से लगाया गया था। इन प्रस्तावकों में कुंभानी के बहनोई, भतीजा एवं कारोबारी पार्टनर शामिल थे। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि रिश्तेदारों को प्रस्तावक इसीलिये बनाया गया था ताकि परचा ही खारिज हो जाये। कुंभानी द्वारा भाजपा से हाथ मिला लिये जाने की भी बात कही जा रही है और यह भी बताया जा रहा है कि इसकी योजना सूरत के एक बड़े होटल में बनाई गई।
गुजरात विकास के मॉडल की बात तो काफी पहले से सुनते आये हैं लेकिन 'राजनीति का गुजरात मॉडल' भी लोगों के सामने आ गया है जो सबकी आंखें खोलने के लिये पर्याप्त होना चाहिये। मुकेश दलाल ने अपने पहले संदेश में कहा है- 'पहला कमल नरेन्द्र मोदी के चरणों में समर्पित है। मोदी के 400 के लक्ष्य को पाने के लिये मेरी जीत पहला कदम है।' वे यह भी कहते हैं कि 'कांग्रेस के नामांकन पत्र रद्द हुए और शेष उम्मीदवारों ने मोदी के विकसित भारत की कल्पना को साथ देने के लिये अपने नामांकन वापस लिये हैं। बस, इतनी सी बात है!' वैसे गुजरात के राजनैतिक मॉडल की बानगी कुछ दिनों पहले चंडीगढ़ मेयर के चुनाव में देखने को मिल गई थी जहां कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी का गठबन्धन था। यहां उनके संयुक्त प्रत्याशी का जीतना तय था लेकिन रिटर्निंग ऑफिसर अनिल मसीह ने 8 कांग्रेस प्रत्याशियों के वोट खुद ही खराब कर खारिज करा दिये। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया जहां अदालत ने इसे 'लोकतंत्र की हत्या' कहते हुए दोषी अधिकारी को सजा देने की ज़रूरत बतलाई। शीर्ष न्यायालय के आदेश पर भाजपा उम्मीदवार मनोज सोनकर के निर्वाचन को अवैध घोषित करते हुए आप के कुलदीप कुमार को मेयर घोषित किया गया। यह भी भारत में पहली बार होता देखा गया है कि मेयर की घोषणा देश के सबसे बड़े न्यायालय की ओर से की गई। हालांकि मसीह को अब तक सज़ा नहीं सुनाई गई है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अवधारणा के अनुरूप भाजपा ने सामाजिक व आर्थिक ताकतों पर पूरा एकाधिकार करने का जो कार्यक्रम बनाया है, उसके तहत राजनैतिक शक्ति को पूरी तरह से अपनी मुठ्ठी में लेना उसके लिये परम आवश्यक है। इसलिये भाजपा हर चुनाव को येन केन प्रकारेण जीतने पर आमादा है। फिर वह चाहे ढाई दर्जन सीटों वाली चंडीगढ़ महानगरपालिका हो या सूरत की लोकसभा सीट; और उसके लिये वह न तो किसी कानून की किताब के पन्नों को यह देखने के लिये पलटेगी कि क्या सही है और क्या गलत, न ही वह नैतिकता के मानदंडों पर अपने किसी भी कृत्य को कसने की चिंता करेगी। खुद मोदी के चुनावी मंचों से दिये गये हालिया बयानों को देखें तो एकदम साफ है कि अब जहां एक ओर वे असत्य पर असत्य बोल जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वे साम्प्रदायिकता को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि धु्रवीकरण के जरिये वे अधिक से अधिक सीटें जीत सकें।
कांग्रेस के घोषणापत्र को, जिसे पार्टी ने 'न्यायपत्र' कहा है, पहले तो उन्होंने 'मुस्लिम लीग से प्रभावित' बतलाया। फिर उन्होंने बतलाया कि यूपीए के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में कहा था कि 'देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुस्लिमों का है।' सच्चाई तो यह है कि न्यायपत्र में मुस्लिमों को लेकर कुछ कहा ही नहीं गया है। साथ ही, मनमोहन सिंह के जिस भाषण को तोड़-मरोड़कर मोदी ने पेश किया है, उसका मूल स्वरूप अब वायरल हो रहा है। उन्होंने 'अल्पसंख्यक' कहा था जिसमें अकेले मुस्लिम नहीं आते। मुस्लिमों के अलावा बौद्ध, ईसाई, पारसी तथा सिख भी हैं। साथ ही उन्होंने सभी के समान अधिकारों की बात कही थी। इस चुनाव में भाजपा की हार तक बतलाई जाती है जिससे मोदी अवगत होंगे ही और इसलिये वे बौखलाये हुए हैं। इसी लिये वे मनमाना व मनमर्जी का बोल रहे हैं। फिर वे निर्वाचन आयोग की शक्ति को परख चुके हैं और अपने समर्थकों की उनके प्रति भक्ति को। वे जानते हैं कि निर्वाचन आयोग को खुद उन्होंने इतना कमजोर व लाचार कर दिया है कि वह सीधा खड़ा हो ही नहीं सकता। दूसरे, उनके समर्थकों को भी इसका कोई फर्क नहीं पड़ता कि मोदी व केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी किस कीमत पर सियासी सफलताएं ला रही है। फिर, इसके लिये वे चाहे समग्र लोकतंत्र को कमजोर कर दें या भारत को ही अनैतिक किस्म की राजनीति का अखाड़ा बनाकर रख दें। सूरत एपीसोड भावी तस्वीर है।
(लेखक देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक हैं)